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अड़ा विपक्ष,सेबी प्रमुख माधवी बुच का इस्तीफा की मांग

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सनत जैन

हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में जो आरोप लगाए गए हैं। उन आरोपों को सेबी प्रमुख माधवी बुच ने अपने खंडन में एक तरह से स्वीकार कर लिए हैं। सेबी का पूर्ण कालिक डायरेक्टर और अध्यक्ष बनने के पहले उनका पैसा निवेश था। वह तब सिंगापुर की नागरिक थी। डायरेक्टर बनने के पहले उन्होंने अपने शेयर अपने पति के नाम पर ट्रांसफर कर दिए थे। 2018 में इस फंड को अनिल आहूजा की सलाह पर उन्होंने निवेश किया है। अब अनिल आहूजा ने कहां निवेश किया है। इस जिम्मेदारी से बुच दंपति ने अपना पल्ला झाड़ लिया है।

आरोप का खंडन करते हुए उन्होंने कहा, उनके द्वारा कोई प्रत्यक्ष निवेश अदानी समूह में नहीं किया गया है। उनके पति धवल ने यह भी स्वीकार किया है। 2019 में ब्लैक स्टोन फंड से जुड़े थे, लेकिन वह फंड की रियल स्टेट विंग में नहीं थे। एक तरह से उन्होंने हिडनबर्ग के आरोपों को स्वीकार कर लिया है। अपने बचाव मे यह जरूर कहा, सेबी ने जो नोटिस जारी किया था। उसका जवाब हिडनबर्ग ने नहीं दिया है, उल्टा आरोप लगा दिए हैं। माधवी बुच ने 16 मार्च 2022 तक अगोरा पार्टनर्स सिंगापुर में 100 फ़ीसदी भागीदारी के बारे में कोई खंडन नहीं किया है। हिडनबर्ग की दूसरी रिपोर्ट में जो आरोप लगाए गए हैं।

रिपोर्ट के साथ जो दस्तावेज सार्वजनिक किए गए हैं। उन दस्तावेजों और आरोपों को माधवी और उनके पति धबल बुच ने स्वीकार कर लिया है। उस निवेश को नियमानुसार सही ठहरने का प्रयास किया है। इस सफाई के बाद भी हिडनबर्ग की दूसरी रिपोर्ट का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। सारा विपक्ष एकजुट होकर सेबी प्रमुख माधवी बुच से इस्तीफा मांग रहा है। इस्तीफा नहीं देने पर सरकार से निलंबन की मांग की जा रही है। विपक्ष का कहना है, सेबी प्रमुख के पद पर माधवी के रहते हुए जांच संभव नहीं है। विपक्ष का आरोप है, सेबी प्रमुख ने सुप्रीम कोर्ट को अंधेरे में रखा। जांच को अटकाने और भटकाने का काम किया है। कांग्रेस पार्टी, टीएमसी, आम आदमी पार्टी सहित इंडिया गठबंधन के सभी राजनीतिक दलों के नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट से स्वतः संज्ञान लेकर मामले की सुनवाई करने की मांग की है।

आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी इस्तीफा मांग लिया है। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली कमेटी ने सेबी प्रमुख माधवी बुच की नियुक्ति की थी। जब पहली बार हिडनबर्ग की रिपोर्ट आई थी। उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गौतम अडानी के बचाव में पूरी ताकत लगा दी थी। जिन-जिन लोगों ने गौतम अडानी के बारे में संसद के अंदर और संसद के बाहर सवाल किए थे। उन सब को सरकार द्वारा प्रताड़ित किया गया। अतः जेपीसी के माध्यम से ही शेयर बाजार में हुई गड़बड़ी की निष्पक्ष एवं पारदर्शी जांच संभव है। राहुल गांधी ने भी 20000 करोड रुपए की ऑफशोर फंडिंग मे पैसा किसका था। इसका जवाब अभी तक की जांच में नहीं मिला है। उन्होंने भी जेपीसी की मांग की है। हिडनबर्ग का भारत से प्रत्यक्ष रूप से कोई लेना-देना नहीं है। सेबी ने जो नोटिस जारी किया था।

उसका जवाब देना उसके लिए आवश्यक नहीं है। सेबी का मानना था, वह कोई जवाब नहीं देगा, इस मामले को रफादफा कर दिया जाएगा। लेकिन यह दांव सेबी पर उल्टा पड़ गया। हिडनबर्ग ने दूसरी बार की रिपोर्ट में सेबी प्रमुख और अडानी के बीच के संबंधों को उजागर कर दिया। भारत की नियामक संस्था, सेबी प्रमुख द्वारा किस तरह से अडानी समूह को बचाया जा रहा है। अदानी समूह और सेबी प्रमुख के रिश्ते उजागर हो गए हैं। दूसरी रिपोर्ट के दस्तावेजों के आधार पर जांच कराए जाने का दबाव सरकार और सुप्रीम कोर्ट पर बढ़ गया है। जिस तरह से यह मामला तूल पकड़ रहा है। उसको लेकर शेयर बाजार में भारी घबराहट है। रविवार के दिन सरकार, सेबी और कारपोरेट जगत ने बाजार को गिरने से रोकने के लिए रणनीति तैयार कर ली थी। सोमवार को जब शेयर बाजार खुला, गिरावट के साथ कारोबार शुरू हुआ। सभी वित्तीय संस्थानो और कारपोरेट जगत के सहयोग से बाजार को गिरने से रोका गया। विदेशी निवेशक लगातार शेयर बाजार से पैसा निकाल रहे हैं। उससे ज्यादा पैसा भारत सरकार की वित्तीय संस्थाएं शेयर बाजार में निवेश कर रही हैं।

बाजार में भारी पैसा निवेश किया है। डीमेट के माध्यम से करोड़ों आम लोगों ने म्युचुअल फंड में निवेश किया है। सोमवार को बाजार की गिरावट को, किसी तरीके से रोक लिया गया है। अदानी समूह के शेयरों में गिरावट के साथ कारोबार हो रहा था। जिस तरह की घबराहट आम निवेशकों में है। विदेशी निवेशक बाजार छोड़कर बाहर जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में शेयर बाजार की गिरावट को रोक पाना सरकार और कॉर्पोरेट कंपनियों के वश की बात नहीं रह गई है। शेयर बाजार को बचाए रखने के लिए सेबी प्रमुख माधवी को स्वयं इस्तीफा देकर निवेशकों का विश्वास बढ़ाना होगा। सरकार को निष्पक्ष जांच कराने के लिए जेपीसी की जांच को स्वीकार करना चाहिए। भारतीय शेयर बाजार में बैंकों, भारतीय जीवन बीमा निगम, म्युचुअल फंड और अन्य फंड शेयर बाजार में बड़ी मात्रा में निवेश हैं। निष्पक्ष तरीके से जांच और छोटे निवेशकों की सुरक्षा को पुख्ता नहीं किया गया, तो देश में भयानक आर्थिक संकट की आशंका अर्थशास्त्रियों द्वारा व्यक्त की जाने लगी है। शेयर बाजार के निवेशकों को हर्षद मेहता घोटाले की याद आने लगी है। 1990 से 1992 के बीच में इसी तरह शेयर बाजारों मे कृत्रिम तेजी बनाई गई थी। वही घबराहट अब निवेशकों में दिखने लगी है।

वर्तमान घोटाले की तुलना में हर्षद मेहता का घोटाला ऊंट की तुलना में जीरे के समान है। शेयर बाजार अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कारोबार कर रहा है। 1992 में जो घोटाला हुआ था। उस समय देश का पैसा देश के पास था। अब मुनाफा वसूली के जरिए विदेशों में चला गया है। ऐसी स्थिति में शेयर बाजार की गड़बड़ी देश की आर्थिक स्थिति को अर्श से फर्श में पहुंचा सकती है। 1992 के शेयर बाजार के घोटाले में सरकार बचाव की मुद्रा में नहीं थी। वर्ष 2023 एवं 2024 में सरकार घोटालेबाजों का बचाव कर रही है। अब विपक्ष एकजुट हो गया है। 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद विपक्ष की शक्ति काफी बढ़ गई है। ऐसी स्थिति में सरकार बहुत लंबे समय तक घोटालेबाजों का संरक्षण नहीं कर सकती है। एकमात्र विकल्प जेपीसी का गठन है। इससे राजनैतिक एवं आर्थिक हितों को सुरक्षित किया जा सकता है। इसके अलावा अन्य कोई विकल्प सरकार के पास नहीं है।

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