राकेश अचल
इस समय गंगा खतरे के निशान के ऊपर बह रही है । गंगा सिर्फ एक नदी ही नहीं बल्कि एक संस्कृति है । एक संस्कार है । एक मुहावरा है और एक कहावत भी। मै जिस गंगा की बात कर रहा हूँ ,वो हिमालय की बेटी गंगा भी है धरती पर बहने वाली गंगा से इतर फाइलों में बहने वाली भ्रष्टाचार की गंगा भी है। गंगा जब सीधी बहती है तब शुभ मानी जाती है लेकिन गंगा जब उलटी बहने लगती है तो उसे अशुभ कहा जाता है। आजकल गंगा जमीन पर भी उलटी बह रही है और सरकारी फाइलों में भी। पटना से हमारे दोस्तों ने बताया है की राज्य में दोनों गंगाएं खतरे के निशान से ऊपर बह रहीं हैं।
देश में जब-जब भ्रष्टाचार की गंगा उलटी या सीधी बहती है तब-तब हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आ जाती है।अमेरिकी रिसर्च कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपनी एक रिपोर्ट में भारत में सिक्योरिटी मार्केट रेगुलटर (नियामक) सेबी की मौजूदा चेयरमैन माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच पर वित्तीय अनियमितता का आरोप लगाया है। पिछले 18 महीने में भारत के कारोबारी और वित्तीय बाज़ार में कथित वित्तीय अनियमितता को लेकर जारी की गई उसकी ये दूसरी रिपोर्ट है। इससे पहले जनवरी 2023 में इसने भारत के प्रमुख औद्योगिक घराने अदानी समूह पर रिपोर्ट जारी कर हलचल मचा दी थी।
मुझे लगता है की हिंडनबर्ग राष्ट्रद्रोही रिसर्च करती है। उसे अपनी रिपोर्ट्स हिडन रखना चाहिए , भाजपा और संघ के एजेंडे की तरह ,लेकिन हिंडनबर्ग है कि मानता ही नहीं। बार-बार रिपोर्ट्स जारी कर देता है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट झूठी है या सच्ची ये हम नहीं जानते,किन्तु सब इस रिपोर्ट की प्रतीक्षा करते है। विपक्ष के लिए हिंडनबर्ग की रिपोर्ट एक हथियार होती है और सत्तापक्ष के लिए एक भयानक वार। रिपोर्ट आने की भनक मिलते ही सरकार ने संसद का सत्र समय से पहले ही लपेट दिया,अन्यथा इस रिपोर्ट को लेकर देश में,संसद में जमकर हंगामा होता। हमारी सरकार किसी भी हंगामा में यकीन नहीं रखती। वैसे भी हमारी बैशाखियों पर टिकी सरकार हंगामा -प्रूफ सरकार है।
हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में जिन बुच दम्पत्ति का जिक्र किया गया है सरकार और सेबी उनके पीछे ढाल बनकर खड़ी हो जाती है। सेबी की नजर में बुच दम्पत्ति और सरकार की नजर में दोनों पूरी तरह पाकीजा हैं। हमारे मध्यप्रदेश में भी किसी जमाने में एक बुच दम्पत्ति हुआ करते थे । ईमानदारी के मामले में उनका डंका बजता था। डंका तो माधवी और धवल भी बज रहा है ,लेकिन उसकी ध्वनियाँ अलग तरह की हैं उनका नाम ऐ-२ से जोड़ा जा रहा ह। फिलहाल ऐ-१ का नाम इस रपट में नहीं आया है।
बुच दम्पत्ति का दुस्साहस देखिये कि सेबी की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच ने दो पन्नों का एक बयान जारी कर हिंडनबर्ग के दावों को ख़ारिज कर दिय। बुच दम्पत्ति का कहना है कि रिपोर्ट में जिस फ़ंड का ज़िक्र किया गया है, उसमें 2015 में निवेश किया गया था और ये माधबी के सेबी का सदस्य बनने से दो साल पहले का मामला है।स्वाभाविक रूप से इस रिपोर्ट के प्रकाश में कांग्रेस ने समूचे मामले की मांग की ह। कांग्रेस चाहती है की इस मामले कीजांच के लिए संयुक्त संसदीय जांच समिति गठित की जाये।
सेबी की रिपोर्ट और उससे हुए खुलासे से आम जनता को कोई ख़ास फर्क नहीं लड़ता ,क्योंकि उसे पता है कि सरकार न सिर्फ सेबी को सेव् करने के लिए उसके पीछे पहाड़ बनकर खड़ी होगी ,वरन हमलावर कांग्रेस से भी जूझ लेगी। क्योंकि भ्र्ष्टाचार की गंगा में सेबी या बुच दम्पत्ति अलग नहीं है। ऐ-२ भी कहीं न कहीं इस गंगा में डुबकी लगा रहे हैं। दरअसल सरकार न इस गंगा का कुछ बिगाड़ सकती है न उस गंगा का कुछ बिगाड़ सकती है। दोनों के बीच बिगाड़ का रिश्ता है ही नहीं।
बेवश सरकार को देखकर ही गंगा अपने तेवर बदलती है। बिहार के आरा में गंगा के जलस्तर में लगातार वृद्धि हो रही है जिसके कारण गंगा के तटवर्ती इलाकों में बाढ़ का खतरा अब मंडराने लगा है. गंगा का पानी खतरे के निशान से 53.08 को पार कर अब 53.20 सेंटीमीटर हो चुका है, जोखतरे के लाल निशान से करीब 12 सेंटीमीटर ऊपर बह रहा है। गंगा को देख सोन नदी भी कहर ढाना सीख गयी है। जमीन पर बहने वाली गंगा की तरह भ्र्ष्टाचार की अदृश्य गंगा के खतरे के निशान का कोई उल्लेख नहीं है। इसलिए आज मेरे लिए ये कहना मुमकिन नहीं है कि भ्रष्टाचार की गंगा खतरे के निशान के ऊपर है या नहीं।
गंगा किनारे रहने वाले हमारे शुभचिंतकों ने सूचना दी है कि गंगा के बढ़ते जलस्तर से गंगा तटवर्ती के कई गांव के संपर्क पथ के ऊपर से बाढ़ का पानी बह रहा है, जिससे गांव के लोगों को आने जाने में काफी परेशानी हो रही है। वहीं सरकारी स्कूलों के अंदर भी बाढ़ का पानी प्रवेश कर चुका है, जिससे स्कूल पूरी तरह से बंद हो चुके हैं। इधर बाढ़ के पानी से खेतों में लगी फसल तो बर्बाद हो ही रही है और तेज बहाव से सड़कें भी छतिग्रस्त होने लगी हैं। इसके अलावा तटवर्ती इलाकों में कटाव भी शुरू हो चुका है और इसकी जद में कई पेड़, पौधे, घर सब अब पानी में जमींदोज हो रहे हैं।
हम सब जानते हैं की गंगा से हमारा गहरा नाता है। सरकार के मुखिया तो खुद गंगा पुत्र है। गंगा की पुकार पर ही वे 2014 में गुजरात छोड़कर बनारस आये थे। बनारस में भी अब गंगा खतरे के निशान की तरफ बढ़ रही है । 2024 के लोकसभा चुनाव में गंगा-पुत्र को मिले वोट इस बात का सबूत हैं। गंगा जमीन पर बहने वाली हो या फाइलों में बहने वाली है तो गंगा ही। गंगा उलटी बहे या सीधी ये गंगा की मर्जी । गंगापुत्र गंगा से कुछ नहीं कह सकते । वे कहते भी नहीं हैं और आगे भी नहीं कहेंगे ,फिर चाहे हिंडनबर्ग दस सिर के हो जाएँ ।गंगा का काम सबके पाप धोना है। गंगा एक सरकारी लाउंड्री है। लेकिन इस गंगा को आप किसी जाम में मिलाकर शराब को पाकीजा नहीं बना सकते,ऐसा बाबा गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं ।
शिव की जटाओं में उलझी गंगा भगीरथ के प्रयास से जमीन पर आयी है लेकिन उसके समानांतर भ्र्ष्टाचार की गंगा इंसान ने खुद प्रकट की है और खुद उसके प्रवाह को बढ़ाया है , भ्र्ष्टाचार की गंगा अब खतरे के निशान पर है । ये देश को पांच ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था बनने में सबसे बड़ी बाधा है। भ्र्ष्टाचार की गंगा को आगे बढ़ने से रोकने के लिए माइक्रो लेबिल से काम शुरू करना होगा। अन्यथा आज सरकार बैशाखियों पर टिकी है,कल ये सरकार औंधे मुंह गिर भी सकती है। सरकार ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने से पहले ही संसद का सत्रावसान कर फिलहाल तो अपनी लाज बचा ली है ,लेकिन कहते हैं की – बकरे की माँ आखिर कब तक खैर मनाएगी ? भ्र्ष्टाचार की वेदी पर मौजूदा सरकार को आज नहीं तो कल शहीद होना ही पडेगा। हर-हर गंगे।