अग्नि आलोक
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अद्भुत शक्तियां देता है ध्‍यान का हठयोग ‘त्राटक’

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            डॉ. विकास मानव 

*त्राटक क्‍या है?*

* त्राटक शब्द ‘त्रि’ के साथ ‘टकी बंधने’ की संधि से बना है। वस्तुत: शुद्ध शब्द त्र्याटक है, जिसकी व्युत्पत्ति है ‘त्रिवारं आसमन्तात् टंकयति इति त्राटकम्’। अर्थात् जब साधक किसी वस्तु पर अपनी दृष्टि और मन को बांधता है, तो वह क्रिया त्र्याटक कहलाती है। त्र्याटक शब्द ही आगे चलकर त्राटक हो गया। किसी वस्तु को जब हम एक बार देखते हैं, तो यह देखने की क्रिया एकटक कहलाती है। उसी वस्तु को जब हम कुछ देर तक देखते हैं, तो द्वाटक कहलाती है। किन्तु जब हम किसी वस्तु को निनिर्मेष दृष्टि से निरंतर दीर्घकाल तक देखते रहते हैं, तो यह क्रिया त्र्याटक या त्राटक कहलाती है। दृष्टि की शक्ति को जाग्रत करने के लिए हठयोग में इस क्रिया का वर्णन किया गया है।

* त्राटक एकटक देखने की विधि है.

यदि आप लंबे समय तक, कुछ महीनों के लिए, प्रतिदिन एक घंटा ज्योति की लौ को अपलक देखते रहें तो आपकी तीसरी आंख पूरी तरह सक्रिय हो जाती है। आप अधिक प्रकाशपूर्ण, अधिक सजग अनुभव करते हैं।

      एकटक देखने की विधि असल में किसी विषय से संबंधित नहीं है, इसका संबंध देखने मात्र से है। क्योंकि जब आप बिना पलक झपकाए एकटक देखते हैं, तो आप एकाग’ हो जाते हैं। और मन का स्वभाव है भटकना। यदि आप बिलकुल एकटक देख रहे हैं, जरा भी हिले-डुले बिना, तो मन अवश्य ही मुश्किल में पड़ जाएगा। मन का स्वभाव है एक विषय से दूसरे विषय पर भटकने का, निरंतर भटकते रहने का। यदि आप अंधेरे को, प्रकाश को या किसी भी चीज को एकटक देख रहे हैं, यदि आप बिलकुल एकाग’ हैं, तो मन का भटकाव रुक जाता है। क्योंकि यदि मन भटकेगा तो आपकी दृष्टि एकाग’ नहीं रह पाएगी और आप विषय को चूकते रहेंगे। 

     जब मन कहीं और चला जाएगा तो आप भूल जाएंगे, आप स्मरण नहीं रख पाएंगे कि आप क्या देख रहे थे। भौतिक रूप से विषय वहीं होगा, लेकिन आपके लिए वह विलीन हो चुका होगा, क्योंकि आप वहां नहीं हैं–आप विचारों में भटक गए हैं।

      एकटक देखने का, त्राटक का अर्थ है–अपनी चेतना को भटकने न देना। और जब आप मन को भटकने नहीं देते तो शुरू में वह संघर्ष करता है, कड़ा संघर्ष करता है, लेकिन यदि आप एकटक देखने का अयास करते ही रहे तो धीरे-धीरे मन संघर्ष करना छोड़ देता है। कुछ क्षणों के लिए वह ठहर जाता है। 

     जब मन ठहर जाता है तो वहां अ-मन है, क्योंकि मन का अस्तित्व केवल गति में ही बना रह सकता है, विचार-प्रकि’या केवल गति में ही बनी रह सकती है। जब कोई गति नहीं होती, तो विचार-प्रकि’या खो जाती है, आप सोच-विचार नहीं कर सकते। क्योंकि विचार का मतलब है गति–एक विचार से दूसरे विचार की ओर गति। यह एक स्‍वाभाविक प्रक्रिया है।

* यदि आप निरंतर एक ही चीज को एकटक देखते रहें, पूर्ण सजगता और होश से…क्योंकि आप मृतवत आंखों से भी एकटक देख सकते हैं, तब आप विचार करते रह सकते हैं–केवल आंखें, मृत आंखें, देखती हुई नहीं। मुर्दे जैसी आंखों से भी आप देख सकते हैं, लेकिन तब आपका मन चलता रहेगा। इस तरह से देखने से कुछ भी नहीं होगा। त्राटक का अर्थ है–केवल आपकी आंखें ही नहीं बल्कि आपका पूरा अस्तित्व आंखों के द्वारा एकाग्र हो। तो कुछ भी विषय हो–यह आपकी पसंद पर निर्भर करता है। यदि आपको प्रकाश अच्छा लगता है, ठीक है; यदि आपको अंधेरा अच्छा लगता है, ठीक है। विषय कुछ भी हो, असली बात है मन को एक जगह रोकने का, उसे एकाग’ करने का, जिससे कि भीतरी गतियां, भीतरी कुलबुलाहट रुक सके, भीतरी कंपन रुक सके। आप बस देख रहे हैं–निष्कंप। इतनी गहराई से देखना आपको पूरी तरह से बदल जाएगा। वह एक ध्यान बन जाएगा।

* इसी मन के अन्दर छुपी होती है अलौकिक दिव्य और चमत्कारिक शक्तियाँ। बाह्यमन जब सुप्तावस्था में होता है तब अंर्तमन सक्रिय होने लगता है और इसी अवस्था को ध्यान कहा जाता है। मन को बेलगाम घोड़े की संज्ञा दी गई है क्योंकि मन कभी एक जगह स्थिर नही रहता तथा शरीर की समस्त इद्रियों को अपने नियंत्रण में रखने की कोशिस करता है। मन हर समय नई -नई इच्छओं को उत्पन्न करता है।

* अंर्तमन का स्वभाव है शांत निर्मल और पवित्र जो मनुष्य को हमेशा अच्छे कार्यो के लिए प्रेरित करता है एक इच्छा पूरी नही हुई कि दुसरी इच्छा जागृत हो जाती है। और मनुष्य उन्ही इच्छाओं की पुर्ति की चेष्टा करता रहता है। जिसके लिए मनुष्य को काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय, पीड़ा इत्यादि से गुजरना पड़ता है। इसके बावजुद भी जब मनुष्य की इच्छाओं की पूर्ति नही हो पाती तब मन में क्लेश तथा दुख होने लगता है। यदि मन को किसी तरह अपने वश में कर एकाग्रचित कर लिया जाय तब मनुष्य की आत्मोन्ती होने लगती है तथा समस्त प्रकार के विषय विकारों से उपर उठने लगता है और अंर्तमन में छुपे हुये उर्जा के भंडार को जागृत कर अलौकिक सिद्धियों का स्वामी बन सकता है।

* मन को नियंत्रित करना थोड़ा कठिन है परंतु कुछ प्रयासो के बाद मन पर पूर्ण रूप से नियंत्रण प्राप्त किया जा सकता है। मन को साधने के लिए शास्त्रों में अनेकों प्रकार के उपाय हैं जिसमे से सबसे आसान व तेज तरीका है त्राटक। त्राटक साधना के माध्यम से कुछ ही दिनों या महिनो के प्रयास से साधक अपने मन पर पूरी तरह नियंत्रण रखने में समर्थ हो सकता है.

* त्राटक साधना से मन की एकाग्रता धीरे-धीरे बढ़ने लगती है। मनुष्य के शरीर की सुप्त शक्तियाँ जागृत होने से शरीर पूर्णतः पवित्र निर्मल तथा निरोग हो जाता है।

* त्राटक के द्वारा मन की एकाग्रता, वाणी का प्रभाव व दृष्टि मात्र से उपासक अपने संकल्प को पूर्ण कर लेता है। इससे विचारों का संप्रेषण, दूसरे के मनोभावों को ज्ञात करना, सम्मोहन, आकर्षण, अदृश्य वस्तु को देखना, दूरस्थ दृश्यों को जाना जा सकता है।

* प्रबल इच्छाशक्ति से साधना करने पर सिद्धियाँ स्वयमेव आ जाती हैं। तप में मन की एकाग्रता को प्राप्त करने की अनेकानेक पद्धतियाँ योग शास्त्र में निहित हैं। इनमें ‘त्राटक’ उपासना सर्वोपरि है। हठयोग में इसको दिव्य साधना से संबोधित करते हैं। त्राटक के द्वारा मन की एकाग्रता, वाणी का प्रभाव व दृष्टि मात्र से उपासक अपने संकल्प को पूर्ण कर लेता है।

* त्राटक के द्वारा मन की एकाग्रता और वाणी के प्रभाव एवं द्रष्टि मात्र से मनुष्य अपने संकल्प को पा लेता है इससे विचारों का संप्रेषण एवं एक दूसरे के मनोभावो को आप ज्ञात कर सकते है इसके द्वारा सम्मोहन आकर्षण एवं अद्रश्य वास्तु को देखना ,दूर बेठे द्र्श्यो को भी जाना जा सकता है अगर जो व्यक्ति प्रबल इच्छा शक्ति से साधना करे तो सिद्धियाँ स्वयमेव आ जाती है .तन में मन की एकाग्रता को प्राप्त करने की ये विध्या सर्वोपरि है इसे हठयोग भी कह सकते है यह साधना तीन माह तक नियमित करने से साधक को उसके प्रभाव का अनुभव प्राप्त होने लगता है इसमें श्रद्धा धर्य और पवित्रता की भी आवश्यकता है .

*त्राटक की विधियॉ :*

         1. दीपक त्राटक :

* यह सिद्धि रात्रि में अथवा किसी अँधेरे वाले स्थान पर करना चाहिए। प्रतिदिन लगभग एक निश्चित समय पर बीस मिनट तक करना चाहिए। स्थान शांत एकांत ही रहना चाहिए। साधना करते समय किसी प्रकार का व्यवधान नहीं आए, इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए। शारीरिक शुद्धि व स्वच्छ ढीले कपड़े पहनकर किसी आसन पर बैठ जाइए।

* अपने आसन से लगभग तीन चार पॉच फुट की दूरी पर मोमबत्ती अथवा दीपक को आप अपनी आँखों के सामने रखिए। अर्थात एक समान दूरी पर दीपक या मोमबत्ती, जो जलती रहे, जिस पर उपासना के समय हवा नहीं लगे व वह बुझे भी नहीं, इस प्रकार रखिए। इसके आगे एकाग्र मन से व स्थिर आँखों से उस ज्योति को देखते रहें। जब तक आँखों में कोई अधिक कठिनाई नहीं हो तब तक देखते रहिये। यह क्रम प्रतिदिन जारी रखें। धीरे-धीरे आपको ज्योति का तेज बढ़ता हुआ दिखाई देगा। कुछ दिनों उपरांत आपको ज्योति के प्रकाश के अतिरिक्त कुछ नहीं दिखाई देगा।

* इस स्थिति के पश्चात उस ज्योति में संकल्पित व्यक्ति व कार्य भी प्रकाशवान होने लगेगा। इस आकृति के अनुरूप ही घटनाएँ जीवन में घटित होने लगेंगी। इस अवस्था के साथ ही आपकी आँखों में एक विशिष्ट तरह का तेज आ जाएगा। जब आप किसी पर नजरें डालेंगे, तो वह आपके मनोनुकूल कार्य करने लगेगा।

* इस सिद्धि का उपयोग सकारात्मक तथा निरापद कार्यों में करने से त्राटक शक्ति की वृद्धि होने लगती है। दृष्टिमात्र से अग्नि उत्पन्न करने वाले योगियों में भी त्राटक सिद्धि रहती है। इस सिद्धि से मन में एकाग्रता, संकल्प शक्ति व कार्य सिद्धि के योग बनते हैं। कमजोर नेत्र ज्योति वालों को इस साधना को शनैः-शनैः वृद्धिक्रम में करना चाहिए।

पंखा बंद रखे जिससे कि दीपक की लौ ना हिले। दीपक की लौ एक सेण्‍टीमीटर से छोटी रखे। बडी लौ बिना हवा के ही हिलती रहती है जिससे कि बार बार हमारा मन भटक जाता है।

*2. बिन्‍दु त्राटक :*

     उपर बताई गयी दीपक त्राटक विधि से ही बिन्‍दु त्राटक किया जाता है मगर इसमें दीपक के स्‍थान पर बिन्‍दु का इस्‍तेमाल करते है। उसके लिये किसी सफेद कागज पर एक सेण्‍टीमीटर से छोटा बिन्‍दु बना कर अपनी आंखों के सामने चार छह फीट की दूरी पर टांग ले या दीवार पर बिन्‍दु बना ले। अब उस बिन्‍दु को उपर बताइ गयी दीपक त्राटक विधि के अनुसार देखना प्रारम्‍भ करे। दोनों विधियों का एक ही प्रभाव है। बिन्‍दु त्राटक दिन में व दीपक त्राटक रात में करे।

*3. दर्पण त्राटक :*

* अपने कमरे के दरवाजे बंद कर लें, और एक बड़ा दर्पण अपने सामने रख लें। कमरे में अंधेरा होना चाहिए। और फिर दर्पण के बगल में एक छोटी सी लौ–दीपक, मोमबत्ती या लैंप की–इस प्रकार रखें कि वह सीधे दर्पण में प्रतिबिंबित न हो। सिर्फ आपका चेहरा ही दर्पण में प्रतिबिंबित हो, न कि दीपक की लौ। फिर लगातार दर्पण में अपनी स्वयं की आंखों में देखें। यह चालीस मिनट का प्रयोग है, और दो या तीन दिन में ही आप अपनी शकल को बदलता हुआ महसूस करेंगे

* आंखों में देखते रहें, अपनी ही आंखों में। और दो या तीन दिन में ही आप एक बहुत ही विचित्र घटना से अवगत होंगे। आपका चेहरा नये रूप लेने लगेगा। आप घबरा भी सकते हैं। दर्पण में आपका चेहरा बदलने लगेगा। कभी- कभी बिलकुल ही भिन्न चेहरा वहां होगा, जिसे आपने कभी नहीं जाना है कि वह आपका है। पर असल में ये सभी चेहरे आपके हैं। अब अचेतन मन का विस्फोट होना प्रारंभ हो रहा है। ये चेहरे, ये मुखौटे आपके हैं। यदि आपने इसे जारी रखा, तो दो तीन सप्ताह के बाद, किसी भी दिन, सबसे विचित्र घटना घटेगी: अचानक दर्पण में कोई भी चेहरा नहीं है। दर्पण खाली है, आप शून्य में झांक रहे हैं। वहां कोई भी चेहरा नहीं है। बस …!

* यही क्षण है : अपनी आंखें बंद कर लें, और अचेतन का सामना करें। जब दर्पण में कोई चेहरा न हो, बस आंखें बंद कर लें–यही सबसे महत्वपूर्ण क्षण है–आंखें बंद कर लें, भीतर देखें, और आप अचेतन का साक्षात करेंगे। आप नग्न होंगे–बिलकुल नग्न, जैसे आप हैं। सारे धोखे तिरोहित हो जाएंगे।

* यही सच्चाई है, पर समाज ने बहुत सी पर्तें निर्मित कर दी हैं ताकि आप उससे अवगत न हो पाएं। एक बार आप अपने को अपनी नग्नता में, अपनी संपूर्ण नग्नता में जान लेते हैं, तो आप दूसरे ही व्यक्ति होने शुरू हो जाते हैं। तब आप अपने को धोखा नहीं दे सकते। तब आप जानते हैं कि आप क्या हैं। और जब तक आप यह नहीं जानते कि आप क्या हैं, आप कभी रूपांतरित नहीं हो सकते, क्योंकि कोई भी रूपांतरण केवल इसी नग्न वास्तविकता में ही संभव है; यह नग्न वास्तविकता किसी भी रूपांतरण के लिए बीज-रूप है। कोई प्रवंचना रूपांतरित नहीं हो सकती। आपका मूल चेहरा अब आपके सामने है और आप इसे रूपांतरित कर सकते हैं। और असल में, ऐसे क्षण में रूपांतरण की इच्छा मात्र से रूपांतरण घटित हो जाएगा।

*4. आज्ञाचक्र ध्‍यान अथवा अंतर-त्राटक :*

जिसे हम ध्‍यान कहते है वो आज्ञा चक्र ध्‍यान ही है मगर इसको सीधे ही करना लगभग असम्‍भव है उसके लिये साधक को पहले त्राटक करना चाहिये और एकाग्रता हासिल होने पर ध्‍यान का अभ्‍यास आरम्‍भ करना चाहिये।

* सर्व प्रथम साधक ब्रह्ममुहूर्त मे उठकर अपने पूजा स्थान अपने सोने के कमरे अथवा किसी निर्जन स्थान में सिध्दासन या सुखासन में बैठ कर ध्यान लगाने का प्रयास करे, ध्यान लगाते समय अपने सबसे पहले अपने आज्ञा चक्र पर ध्यान केद्रित करे तथा शरीर को अपने वश मे रखने का प्रयास करें बिल्कुल शांत निश्चल और स्थीर रहें, शरीर को हिलाना डूलना खुजलाना इत्यादि न करें। तथा नियम पुर्वक ध्यान लगाने का प्रयास करें। साधना के पहले नहाना आवश्‍यक नही है प्रयास करे कि उठने पर जितनी जल्‍दी साधना आरम्‍भ कर दे उतना ही लाभ दायक रहता है क्‍योंकि सो कर उठने पर हमारा मन शान्‍त रहता है मगर फिर वो धीरे धीरे चलायमान हो जाता है जितना देर में आप ध्‍यान में बैठेंगे उतना ही देर में वो एकाग्र हो पायेगा।

* साधक जब ध्यान लगाने की चेष्टा करता है तब मन अत्यधिक चंचल हो जाता है तथा मन में अनेकों प्रकार के ख्याल उभरने लगते हैं। साधक विचार को जितना ही एकाग्र करना चाहता है उतनी ही तिव्रता से मन विचलित होने लगता है तथा मन में दबे हुए अनेकों विचार उभर कर सामने आने लगते हैं। त्राटक के बिना सीधे ही ध्‍यान लगाना मुश्किल है इसलिये त्राटक से शुरूआत करके आज्ञा चक्र ध्‍यान पर आइये। बस आंखों को बंद कर लीजिये व आंख के अंदर दिखने वाले अंधेरे को देखते रहिये। जो कुछ दिखे देखते रहिये कोई विश्‍लेशण मत कीजिये। कुछ समय बाद आपको अपनी आंखों के अदर प्रकाश के गोले से दिखना शुरू हो जायेंगे हल्‍के प्रकाश के छोटे गोले आयेंगे वो एक जगह एकत्र होते हुये तेज प्रकाश में बदलते जायेंगे आपस में मिलते जायेंगे। कुछ दिन बाद आपको उनमें कुछ सीन दिखाई देना शुरू हो जायेंगे। एकदम फिल्‍म की तरह। बस उसको देखते रहिये। शुरूआत में ये सीन हमारे मनचाहे नही होते। कुछ भी दिख सकता है अनदेखा दिख सकता है कल्‍पना नही है वो सब विश्‍व में कही ना कही मौजूद है। फिर अभ्‍यास बढ जाने पर एकाग्रता बढ जाने पर हम मनचाहे सीन देख सकते है वो अपना या किसी का भूत भविष्‍य वर्तमान सबकुछ हो सकता है जो आप सोच सकते है वो हो सकता है हजारों लाखों साल पुराना देख सकते है या भविष्‍य मे घटने वाली घटनायें भी देख सकते है।

यह विधि आप अंधेरे में आखे खोल कर देखते हुये भी कर सकते है। उसके लिये कमरे में एकदम अंधेरा होना चाहिये। बस अंधेरे में ध्‍यान से देखते रहिये। इसका वही प्रभाव है जो आज्ञाचक्र घ्‍यान या तीसरे नेत्र पर ध्‍यान का है।

*त्राटक के नियम व सावधानियॉ :*

    पलकों पर ध्‍यान न दीजिये पलकों को जबरदस्‍ती खुला रखने का प्रयत्‍न न कीजिये। 

    पलक झपकती है तो झपकने दीजिये। जबरदस्‍ती आंखे खोले रखने पर आंखों की नमी सूख जाती है. अंधापन तक आ जाता है।

  त्राटक के बाद आंखों को सादे पानी से अवश्‍य धो ले।

यदि आंखों में किसी प्रकार का कष्‍ट महसूस हो तो ये क्रिया कुछ दिनों के लिये रोक दे। 

     यदि आंख में इंफेक्‍शन वाली कोई मौसमी बीमारी है तो उस समय त्राटक न करें क्‍योंकि उस दशा में आंखों पर अतिरिक्‍त दबाव पडता है. 

    बीमारी की दशा में आंखों की नसों में सूजन आ जाती है। आपके द्वारा त्राटक का अभ्‍यास करने पर वो आपको और नुकसान करेगा।

   जिन लोगों की नजर कमजोर है वो त्राटक का समय दस मिनट से शुरू करे व धीरे धीरे समय बढाएं. धीरे धीरे नजर ठीक हो जायेगी। 

     धैर्य की आवश्‍यकता है. त्राटक ध्‍यान में किसी प्रकार की जोर जबरदस्‍ती अपने शरीर के साथ ना करें. ये आपको स्‍थाई रूप से नुकसान पहुचा सकती है।

*ध्यान कोई भी करें, मगर जरा संभल कर :*

     संकल्पित ध्यान आपको भौतिक लक्ष्य और अ- संकल्पित ध्यान आपको परम लक्ष्य की ओर स्वतः खींच लेता है. कुछ नही करना पड़ता सब कुछ ध्यान करता है. ध्यान महाविज्ञान है. यह विनाश और विकास दोनों कर सकता है. 

   इसका उपयोग किसी दक्ष व्यक्ति के संस्पर्श मे ही करें अन्यथा  हानि होने की संभावना होती है. ध्यानजनित ऊर्जा को अगर रूपांतरित नहीं किया गया तो वह एक जगह एकाग्रचित नही रह सकती. उसके लिए बहाव अति आवश्यक है. उद्घाटक, विकासक, नियंत्रक के बिना विस्फोट तय है।

     ध्यान ऊर्जा विकास का माध्यम है. ज्यादातर लोग ध्यान में आगे ही नहीं बढ़ पाते. यह इसीलिए भी मुश्किल है कि उससे पैदा नव-ऊर्जा को नियंत्रित, विकसित करना आसान नही है. जिसने यह कर लिया उसके लिए समाधि यानी परमतृप्ति के रास्ते खुल जाते है.

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