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भारत में सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र स्थापित करने का रास्ता बीपी मंडल ने खोला

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डॉ. सिद्धार्थ

डॉ. आंबेडकर ने संविधान सभा के सामने संविधान प्रस्तुत करते हुए कहा था कि आज से हम राजनीतिक लोकतंत्र के युग में प्रवेश कर रहे हैं, लेकिन सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र कायम करना अभी बाकी है। जिस व्यक्ति ने भारत में सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र स्थापित करने का व्यवस्थागत और संस्थागत रास्ता सुझाया उस व्यक्ति का नाम बीपी मंडल है। उनके नेतृत्व में बने कमीशन ने जो 40 सिफारिशें की थीं, यदि वह लागू हो जातीं, तो भारत में राजनीतिक लोकतंत्र के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र भी कायम हो जाता। जिसका सपना डॉ. आंबेडकर ने देखा था। यहां मैं साफ कर दूं कि सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र का मतलब समाजवाद नहीं।

मंडल कमीशन की स्थापना 1जनवरी, 1979 को हुई थी। कमीशन ने एक साल के अंदर ही अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी। 10 सालों तक कांग्रेस सरकार रिपोर्ट पर कुंडली मारकर बैठी रही। 1990 में वीपी सिंह की सरकार ने इसे लागू करने की घोषणा किया। वीपी सिंह की सरकार ने भी 40 सिफारिशों में सिर्फ एक सिफारिश लागू करने की घोषणा की। सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में 27 आरक्षण। दो सालों तक इस पर सुप्रीम कोर्ट कुंडली मारकर बैठा रहा, तब जाकर बहुत सारे प्रतिबंधों और शर्तों के साथ इसे क्रियान्वित करने की इजाजत दी। 2006 में कांग्रेस सरकार ने इसकी दूसरी सिफारिश लागू की। सार्वजनिक और सरकारी शिक्षा संस्थानों में 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करने की सिफारिश।

पहले तो प्रथम पिछड़े वर्ग कमीशन (काका कालेलकर) की रिपोर्ट को कूडे़दान में डाल दिया गया। आजादी के 33 सालों बाद दूसरा कमीशन बना। फिर उस कमीशन की एक सिफारिश लागू करने में 42 साल लग गए। फिर दूसरी सिफारिश लागू करने में 56 साल लग गए। 

तमाम प्रतिबंधों और शर्तों के साथ नौकरियों और शिक्षा संस्थानों के मामले में, जो दो सिफारिशें लागू हुईं, उसने भारतीय समाज को कितना समावेशी बनाया। किस हद तक सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र का विस्तार किया, इस पर बहुत सारी रिपोर्टें आ चुकी हैं। जो इसकी सकारात्मक भूमिका को रेखांकित करती हैं। हालांकि पहली सिफारिशों के भी कई हिस्से लागू नहीं किए गए। जैसे पदोन्नति में आरक्षण। इसके अलावा मंडल कमीशन ने क्रीमीलेयर की कोई बात नहीं की थी, न ही वीपी सिंह ने लागू करने की घोषणा के समय यह प्रतिबंध लगाया था। क्रीमीलेयर का प्रतिबंध सुप्रीमकोर्ट ने लगाया।  

नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में आरक्षण के अलावा शिक्षा क्षेत्र में पिछड़े वर्गों के छात्रों के लिए कई अन्य महत्वपूर्ण सिफारिशें मंडल कमीशन ने की थीं। जैसे बडे़ पैमाने पर पिछड़े वर्गों के छात्रों के लिए हॉस्टल, जिनमें खाने, रहने की मुफ्त सुविधाएं हों, पिछडे़ वर्गों की घनी आबादी वाले इलाकों में आवासीय विद्यालय, देश-विदेश में पढ़ाई के लिए छात्र-वृत्ति, प्रोफेशनल इंस्टीट्यूशन्स और कोचिंग संस्थान आदि की सिफारिश की गई थी। आयोग ने किसी भी तरह से सरकारी सहायता प्राप्त निजी संस्थानों में आरक्षण लागू करने करने की भी सिफारिश की थी। इसमें से कुछ भी नहीं लागू नहीं किया गया।

किसी तरह दो सिफारिशों को आधे-अधूरे तरीके से लागू किया गया, उसके दायरे में बहुलांश मध्यवर्गीय या ज्यादा से ज्यादा कुछ निम्न मध्यवर्गीय समूह आते हैं, लेकिन अन्य महत्वपूर्ण सिफारिशें हैं, वे हैं, जो उत्पादक, कारीगर और मेहनतकश समूहों की जिंदगी में गुणात्मक परिवर्तन ला देतीं। लेकिन उन सिफारिशों की न तो चर्चा की जाती है, न ही उन्हें लागू करने के बारे में कोई बात होती है। यहां तक कि जो समूह या वर्ग इन दो सिफारिशों के लागू होने से लाभान्वित हुआ, वह ही अन्य मुख्य सिफारिशों की कोई चर्चा नहीं करता है। स्वयं आयोग ने कहा था कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण से बहुत छोटे हिस्से की जिंदगी में परिवर्तन आएगा। शिक्षा क्षेत्र से जुड़ी अधिकांश सिफारिशें भी तो लागू ही नहीं की गईं।

इन सिफारिशों के अलावा वे कौन-कौन सी अन्य चार-पांच सिफारिशें थीं, जो यदि लागू हो जातीं तो भारत में सचमुच सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र कायम हो जाता। ये सिफारिशें निम्न थीं- 

उत्पाद संबंधों में ढांचागत परिवर्तन लाने वाले भूमि सुधार की सिफारिश

मंडल कमीशन ने जो सबसे बड़ी सिफारिश मेहनतकश उत्पादकों और गरीबों के लिए की थी। वह थी, प्रगतिशील भूमि सुधार। आयोग ने साफ-साफ शब्दों में भूमिहीन समूहों को खेती योग्य भूमि देने की बात की थी। आयोग इससे देश भर के मौजूदा उत्पादन संबंधों में ढांचागत एवं प्रभावी बदलाव लाने की बात करता है। इसके लिए सीलिंग लागू करने की सिफारिश करता है। 

यह सिफारिश भारत के बहुसंख्यक लोगों की जिंदगी बदल देती। खासकर पिछड़े वर्गों में सेवक, दस्तकार और कारीगर जातियों की। जिसमें अधिकांश को आज की तारीख में अति पिछड़ा कहा जाता है। भूमि सुधार भारतीय पूंजीवादी विकास और बाजार को कितना बड़ा बना देता इस संदर्भ में बहुत कुछ लिखा जा चुका है और बहुत सारी रिपोर्टें आ चुकी हैं। भारत का मध्यवर्गीय दायरा और लोगों की क्रय शक्ति कितनी बढ़ जाती, इसके भी बहुत सारे आंकड़े हैं। लेकिन मंडल कमीशन की भूमि सुधार की सिफारिश पर न तब चर्चा हुई, न अब होती है। अब तो यह कहा जाता है कि अब भूमि सुधार की जरूरत ही नहीं है। बीपी मंडल खुद ही एक बडे़ भूस्वामी थे, लेकिन उन्होंने अपनी सिफारिश में इन भूमि स्वामियों की जगह भूमिहीनों को केंद्र में रखा। अब भूमि सुधार और उत्पादन संबंधों में ढ़ांचागत एवं प्रभावी बदलाव को कुछ सिरफिरे क्रांतिकारी लोगों या कुछ एक संगठनों की सिरफिरी मांग कहने का रिवाज चल पड़ा है।

छोटे और मझोले उद्योगों की सबके अधिक बढ़ावा देने की सिफारिश

मंडल आयोग भूमि सुधार के बाद सबसे अधिक जोर छोटे और मझोले उद्योगों को बढ़ाने पर जोर देता है। इसके लिए सरकार से यह मांग करता है कि इन उद्योगों को पूंजीगत सहायता के साथ तकनीकी सहायता भी मुहैया कराई जाए। आयोग की नजर में छोटे और मझोले उद्योगों का व्यापक विस्तार और विकास ही देश के बहुसंख्यक लोगों की जिंदगी में समृद्धि ला सकता है। आज भी यही उद्योग देश में कृषि के बाद सबसे अधिक रोजगार यानी रोजी-रोटी उपलब्ध कराते हैं, हालांकि पिछले 10 सालों में इन्हें तबाह और बर्बाद किया गया है। छोटे और मझोले उद्योगों का सिकुड़ना देश में बेरोजगारी का सबसे बड़ा कारण है, करीब सभी अर्थशास्त्री इससे स्वीकार करते हैं। मंडल आयोग 1980 में पुरजोर तरीके से इसकी वकालत करता है। बीपी मंडल और मंडल आयोग की बात करने वालों ने भी कभी इसकी कोई जोर देकर चर्चा नहीं की। जबकि भूमि सुधार के बाद लोगों के जीवन में गुणात्मक परिवर्तन लाने का यह सबसे बड़ा उपाय साबित होता।

देशव्यापी स्तर पर पेशेगत समूहों की सहकारी समितियां

मंडल आयोग की सिफारिशों को देखकर लगता है कि आयोग को इस बात का गहरा अहसास था कि सहकारी समितियां देश और बहुसंख्य लोगों की समृद्धि और उनके जीवन में गुणात्मक विकास के लिए अपरिहार्य हैं। आयोग पेशेगत समूहों की सहकारी समितियों की बात करता है, जैसे दुग्ध उत्पादक सहकारी समिति, जो देश में एक कारगर सहकारी समिति आज है। आयोग इसी तरह के अन्य उत्पादकों की सहकारी समितियां बनाने की सिफारिश करता है। इस सिफारिश पर भी चुप्पी साध ली गई।

ग्रामीण करीगरों को व्यवसायिक परीक्षण और वित्तीय एवं तकनीकी सहायता 

आयोग लोहार, बढ़ई, तेल निकालने वालों, बर्तन बनाने वालों ( कुम्हार-ठठेरा) आदि व्यवसायिक प्रशिक्षण देने और वित्तीय एवं तकनीकी सहायता देने की सिफारिश करता है। यह कदम ग्रामीण अर्थव्यवस्था को समृद्ध बनाती ही, साथ में लोगों को कुशल कारीगर में तब्दील कर देती। लोगों की क्रय शक्ति बढ़ती और देशव्यापी स्तर पर मांग बढ़ती। जो पूरे देश की समृद्धि और लोगों के जीवन में गुणात्मक परिवर्तन का कारक बनती।

ये सिफारिशें ऐसी सिफारिशें थीं, जो लागू हो जातीं तो भारत आज कमोबेश चीन की अर्थव्यवस्था के आस-पास खड़ा होता, कम से कम मिडिल इनकम देशों की श्रेणी में होता। मध्यवर्ग का दायरा आज की तुलना में कई गुना बड़ा होता। निम्न मध्यवर्गीय और गरीब कहे जाने वाले लोगों का जीवन भी आज की तुलना में गुणात्मक तौर पर भिन्न होता। देश सच्चे अर्थों में एक आर्थिक शक्ति होता, जुमलेबाजी में नहीं। अगर मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू होतीं तो भारत में आज राजनीतिक लोकतंत्र के साथ सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र भी कमोबेश कायम हो चुका होता।

आज मंडल कमीशन की बुनियादी बातें अपनी जगह बुनियादी तौर पर सही हैं भले उन्हें लागू करने के तरीकों मे कुछ परिवर्तन लाना पड़े।

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