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किसानों के कल्याण का मोदी सरकार का दावा झूठा

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– डॉ. ज्ञान पाठक

नई घोषित योजनाएं निश्चित रूप से कृषि और ग्रामीण क्षेत्र में बहुत कम आय वाले रोजगार या बेरोजगारी की समस्या को खत्म नहीं कर सकती हैं, क्योंकि ये योजनाएं रोजगार पर केंद्रित नहीं हैं, बल्कि किसी और चीज पर केंद्रित हैं, जिसमें रोजगार केवल एक उप-उत्पाद है। नयी घोषित योजनाएं अपने आप में अच्छी लगती हैं, लेकिन मोदी सरकार का यह दावा झूठा है कि ये किसानों का कल्याण कर सकती हैं।

किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए कानूनी गारंटी की मांग कर रहे हैं, लेकिन केंद्र ने उसकी अनदेखी करते हुए 2 सितंबर को कृषि क्षेत्र के लिए 14,000 करोड़ रुपये की 7 नयी बड़ी योजनाओं की घोषणा की है। मोदी सरकार ने कहा कि ये योजनाएं किसानों के कल्याण के लिए हैं, लेकिन किसान कह रहे हैं कि उनकी भलाई उनकी फसलों के कानूनी रूप से सुनिश्चित न्यूनतम मूल्य पर निर्भर करती है, जिसे वे पारंपरिक रूप से अनेक बार बहुत कम कीमत पर, यहां तक कि अपनी उत्पादन लागत से भी कम पर बेचने के लिए मजबूर हैं।

किसान इसके खिलाफ सुरक्षा चाहते हैं, लेकिन मोदी सरकार कह रही है कि किसानों का कल्याण केवल उन कानूनों और नीतियों के माध्यम से सुरक्षित किया जा सकता है जिन्हें वे लागू करना चाहते हैं। किसान उन्हें इस आधार पर खारिज करते हैं कि सरकार का मतलब केवल व्यापार और कॉर्पोरेट के लिए कृषि-अर्थव्यवस्था का विकास करना है, जबकि सरकार का कहना है कि उनकी योजनाओं से किसानों की आय बढ़ेगी। किसानों ने कानूनी तौर पर एमएसपी की गारंटी मांगी, लेकिन केंद्र ने 3 सितंबर को एग्रीश्योरफंड लॉन्च किया। संक्षेप में, मोदी सरकार और किसान दो अलग-अलग धु्रव हैं – किसान कृषि और अपनी फसलों के लिए लाभकारी मूल्य पर ध्यान केंद्रित करते हैं, लेकिन सरकार का ध्यान कृषि-अर्थव्यवस्था पर है जो व्यापार और कॉर्पोरेट लाभप्रदता को बढ़ावा देती है।

मोदी सरकार ने स्पष्ट रूप से कृषि और ग्रामीण विकास की उपेक्षा की है, अन्यथा यह कैसे हो सकता था कि दोनों विभागों में पूर्णकालिक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री भी तैनात नहीं किये गये हैं? शिवराज सिंह चौहान को कृषि और किसान कल्याण के साथ-साथ ग्रामीण विकास दोनों मंत्रालय सौंपे गये हैं। यह किसानों और ग्रामीण लोगों के वास्तविक कल्याण के लिए सरकार की कम प्राथमिकताओं को दर्शाता है। इसलिए यह आरोप प्रथम दृष्टया सही है कि मोदी सरकार आर्थिक विकास के नाम पर मुख्य रूप से व्यापार और कॉर्पोरेट लाभप्रदता पर ध्यान केंद्रित कर रही है, और इस भरोसे में है कि वे अधिक निवेश और रोजगार लायेंगे, जिसमें वे पिछले एक दशक में विफल रहे हैं।

किसानों, ग्रामीण लोगों और बेरोजगारी की स्थिति दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण तथा ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 3 सितम्बर को एग्रीश्योर का शुभारंभ किया, जो स्टार्ट-अप और ग्रामीण उद्यमों के लिए एक कृषि कोष है, जिसके बारे में सरकार ने कहा कि यह एक अभिनव कोष है, जो भारत में कृषि परिदृश्य में क्रांति लाने की दिशा में एक अग्रणी कदम है। मोदी सरकार हमेशा किसानों की समृद्धि पर जोर देती रही है, लेकिन कुछ खास नहीं कर रही है। मोदी सरकार का 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वायदा एक उदाहरण है, जो सरकार की दोषपूर्ण नीतियों और तथाकथित किसान कल्याण योजनाओं के कारण पूरी तरह विफल हो गया, जिससे कृषि उपज और उत्पादों में कॉरपोरेट और व्यवसायों को भारी मुनाफा हुआ, लेकिन किसानों को नुकसान हुआ।

एग्रीश्योर के लॉन्च से एक दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली केंद्रीय कैबिनेट समिति ने किसानों के कल्याण के नाम पर 13,966 करोड़ रुपये की 7नयी बड़ी योजनाओं को मंजूरी दी थी। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि कैबिनेट का फैसला भारत के कृषि क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए है। मोदी सरकार का यह फैसला केंद्र द्वारा 28,602 करोड़ रुपये की 12 औद्योगिक स्मार्ट सिटी परियोजनाओं को मंजूरी दिये जाने के एक सप्ताह बाद आया है। कई लोगों को यह उद्योग बनाम कृषि क्षेत्र के बीच संतुलन बनाने जैसा लगा, लेकिन यह आंशिक रूप से ही सही है, क्योंकि किसानों के कल्याण के नाम पर शुरू की गयी योजनाएं किसानों की आय बढ़ाने के बजाय कृषि-व्यवसाय के हितों की बेहतर सेवा करती हैं। अगर ऐसा नहीं होता, तो सरकार बढ़ती इनपुट लागत को ध्यान में रखते हुए किसानों को न्यूनतम मूल्य का आश्वासन क्यों नहीं देती?

फिर भी, कृषि क्षेत्र की योजनाओं के लिए 7 नयी बड़ी घोषणाएँ हैं: फसल विज्ञानखाद्य एवं पोषण सुरक्षा के लिए 3,979 करोड़ रुपये; कृषि शिक्षा, प्रबंधन के लिए 2,291 करोड़ रुपये; डिजिटल कृषि मिशन के लिए 2,817 करोड़ रुपये; पशुधन स्वास्थ्य एवं उत्पादन के लिए 1,702 करोड़ रुपये; बागवानी के सतत विकास के लिए 860 करोड़ रुपये; कृषि विज्ञान केंद्र प्रबंधन के लिए 1,202 करोड़ रुपये; तथा प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के लिए 1,115 करोड़ रुपये।

डिजिटल कृषि मिशन को डिजिटल कृषि पहलों का समर्थन करने के लिए एक व्यापक योजना के रूप में परिकल्पित किया गया है, जैसे कि डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (डीपीआई) का निर्माण, डिजिटल सामान्य फसल अनुमान सर्वेक्षण (डीजीसीईएस) का कार्यान्वयन, तथा केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, तथा शैक्षणिक एवं अनुसंधान संस्थानों द्वारा अन्य आईटी पहलों को अपनाना।

नयी घोषित योजनाएं निश्चित रूप से कृषि और ग्रामीण क्षेत्र में बहुत कम आय वाले रोजगार या बेरोजगारी की समस्या को खत्म नहीं कर सकती हैं, क्योंकि ये योजनाएं रोजगार पर केंद्रित नहीं हैं, बल्कि किसी और चीज पर केंद्रित हैं, जिसमें रोजगार केवल एक उप-उत्पाद है। नयी घोषित योजनाएं अपने आप में अच्छी लगती हैं, लेकिन मोदी सरकार का यह दावा झूठा है कि ये किसानों का कल्याण कर सकती हैं, खासकर तब जब सरकार स्वामीनाथन की सिफारिश और किसानों की मांग के अनुसार फसलों के लिए इनपुट लागत को ध्यान में रखते हुए कानूनी रूप से बाध्यकारी न्यूनतम मूल्य देने के लिए भी तैयार नहीं है।

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