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भ्रष्ट जेल सिस्टम के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हो गए थे यतींद्रनाथ दास

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इलिका प्रिय 

 27 अक्टूबर, 1904 को जन्मे क्रांतिकारी राह को अपनी जिंदगी बनाने वाले क्रांतिकारी यतींद्रनाथ दास 24 वर्ष की उम्र में 13 सितम्बर, 1929 को जेल में 62 दिनों के भूख हड़ताल के बाद 63 वें दिन अपनी अंतिम सांस तक भ्रष्ट सिस्टम के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हो गए थे। इनकी शहादत ने पूरे देश में हलचल मचा दी थी, इस शहीद के अंतिम दर्शन के लिए सड़कों पर लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी थी, एक अनुमान के मुताबिक करीब पांच लाख लोगों ने उनके अंतिम संस्कार में भाग लिया था। हावड़ा रेलवे स्टेशन पर सुभाष चन्द्र बोस के साथ पचास हजार लोगों ने इन्हें श्रद्धांजलि दी थी। यह इतिहास का एक अहम पन्ना बन गया।

भूख हड़ताल का मर्म

यह भूख हड़ताल जेल के खाने के घटिया क्वालिटी और बदतर रख रखाव के खिलाफ शुरू हुआ था, जो भारतीय बंदियों को भी यूरोपीय बंदियों की तरह बंदी सुविधाएं प्रदान करने, इन्हें राजनीतिक बंदी का दर्जा देने से लेकर पढ़ने के लिए अखबार, काॅपी कलम देना, कपड़े साफ देना, खाने लायक भोजन होना इत्यादि जैसे कुछ मूलभूत मांगों के साथ चला और अंततः एक क्रान्तिकारी के शहादत के साथ सफलता हासिल करके ही खत्म हुआ।

इस भूख हड़ताल का प्रभाव पूरे देश में ऐसा रहा कि अंततः इनके मांगों को मान लेने के लिए ब्रिटिश सरकार मजबूर हो गई थी। यह 1929 की बात है। आज जेल बंदियों के लिए जो अधिकार कानून की किताबों में दर्ज है उसमें इस शहादत के अहम योगदान को नहीं भूलाया जा सकता। पर क्या आज ये अधिकार बने हुए है?

वर्तमान भारत में जेलों की स्थिति

भूख हड़ताल कोई शौक से नहीं करता, और अपने प्राण की आहूति देने तक तो कतई नहीं। जिस जीत को हमारे शहीद यतींद्रनाथ दास ने अपने प्राण देकर हासिल कराई थी, बड़े अफसोस के साथ यह कहना पड़ रहा है कि उसकी आज की भ्रष्ट जेल व्यवस्था में हम धज्जी उड़ता देख रहे हैं।

हम कह सकते हैं क्रांतिकारी विचार जो कि समाज में शोषण शासन के वर्ग आधारित भेदभाव और दमन के खिलाफ सशस्त्र युद्ध करने वाले, जिसे कानून की नजर में शुरू से ही आतंकवाद के श्रेणी में रखा जाता है, उन ब्रिटिश साम्राज्य के द्वारा भी अपनी मांगों पर मजबूर कराकर बंदी अधिकारों को स्वीकार करा लिया था। आज उन्हीं अधिकारों से देश के सामान्य बंदी भी वंचित है, आज उसे पाने के लिए इन राहों पर चलने वाले यानि इस तरह के भूख हड़ताल पर प्रशासन की क्या प्रतिक्रिया होती है एक बार इसे देखने की जरूरत है।

आज के जेलों की भूख हड़ताल की स्थिति

आज भले ही हम अपने दिनचर्या में इस दिन को भूल जाएं, मगर भारत के कई जेलों में कई बंदियों के द्वारा आज के दिन इस शहादत के नाम पर एक दिन का भूख हड़ताल रख कर इसे याद रखा जाता है। आज के लगभग जेलों में भ्रष्टाचार व्याप्त है, पर इसका प्रमाण कोई नहीं दे सकता, क्योंकि इससे या तो बंदी जानते हैं या जेल प्रशासन। बंदियों के जरिये उनके परिजन बस इस सच्चाई से रूबरू होते हैं।

आज जेल मेन्युअल के हिसाब से भी बंदियों के अधिकार उपलब्धता नगण्य है, जो गरीब तबके के बंदी है उनका दबंग बंदियों द्वारा जेल के अंदर शोषण का रास्ता खुला हुआ है जिसमें कोई बंदिश नहीं है। यहां हर चीज ऊंचे दामों में बिकते है, जो धनाड्य होते हैं वह हर सुविधाएं अपने हिसाब से खरीद लेते हैं जो गरीब होते हैं वे तबाह रहते हैं क्योंकि जरूरतों को खरीदना उनकी मजबूरी बन जाती है, जहां हर चीज बिकाऊ है वहां सिस्टम से उपलब्ध होने वाली चीजें उपलब्ध नहीं होती। जेल प्रशासन इतनी खराब सुविधाएं देती है कि बिना खरीदे काम नहीं चल सकता। कई लोगों के जेल डायरी में भी हमें यह पढ़ने को मिलता है।

कुछ बंदी इन्ही भ्रष्टाचार के खिलाफ जेल में सुधार की पहल करते हैं। जेलों में बंदी आवेदन पत्र होता है जिसमें कोई बात लिखकर न्यायालय को दी जा सकती है जिसपर न्याय के लिए न्यायालय कदम उठा सकती है, पर ये बंदी आवेदन पत्र जेल प्रशासन के मार्फत ही कोर्ट तक पहुंचने की प्रक्रिया है, कई जेलों में बंदी आवेदन पत्र ही नहीं मिलता, या मिलता भी है तो अपनी ही व्यवस्था की शिकायत वाले आवेदन जेल प्रशासन कोर्ट तक पहुंचाती ही नहीं, कोई बंदी किसी तीसरे व्यक्ति द्वारा यदि बंदी आवेदन पत्र न्यायालय भिजवा भी दे, तो जेल प्रशासन के मार्फत न होने पर आवेदन रिजेक्ट हो जाते हैं, न्यायालय तक जेलों में बंद बंदी अपनी आवाज कैसे पहुंचाए, लगभग जेलों की यह एक समस्या है। कोई अन्य रास्ता न होने के कारण बंदियों के पास वही रास्ता बचता है, जो वर्षों पहले हमारे इन क्रांतिकारियों का रास्ता था भूख हड़ताल।

पर आज के समय में भूख हड़ताल करके भी अधिकार हासिल नहीं होती, क्योंकि जैसे ही भूख हड़ताल की जाती है कुछ आरोपों के साथ, जेल अपराध बनाकर इनका ट्रांसफर दूसरे जेलों में कर दिया जाता है, इनपर आरोप कुछ भी हो सकते हैं, जेल में बंदियों को भड़काने की, गवाहों को धमकाने की, आपत्तिजनक सामान रखने की या जो आरोप सटीक लगे, न ही आरोप का स्पष्टीकरण कोई मांगता है न ही देने की जरूरत होती है, इसलिए एक ही दिन में यह सब हो जाता है। कोर्ट द्वारा भी कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाता क्योंकि ये प्रशासनिक मामला होता है।

गंभीर आरोपों के बहाने प्रशासनिक मामले कब न्याय का गला घोंट देते हैं पता ही नहीं चलता। फिर चाहे इस ट्रांसफर से उन बंदियों को परेशानियों का सामना करना पड़े चाहे उनके परिवार को, कोई मायने नहीं रखता क्योंकि जब वे एक बड़े खतरे के रूप में चिन्हित कर दिए जाते हैं तो उन्हें उनके उन्हीं अधिकारों को जो कानून ने दिए है, उसे देने की बात बड़े खतरनाक शंकाओं में गौण कर दी जाती है चाहे वे संविधान प्रदत्त मूल अधिकार हो चाहे मानवाधिकार, चाहे बंदी अधिकार।

फिर चाहे वास्तव में वह बंदी समाज का पढ़ा-लिखा, समाज के भ्रष्टाचार को बदलने के लिए अपनी समझदारी से, कलम से सच की, वास्तविकता की बात करने वाला, समाज में एक प्रतिष्ठित पहचान पाया हुआ व्यक्ति ही क्यों न हो, गंभीर धाराएं लगाकर सिर्फ उसकी चेतना पर ही अंकुश नहीं लगा दिया जाता बल्कि उसकी पहचान भी बदलकर लगे आरोपों के हिसाब से एक खतरे के रूप में स्थापित कर दी जाती है फिर प्रशासन उसके साथ जो करे सब सही।

समय बदल गया है, समाज गतिशील होता है बहुत कुछ बदले है, पर न ही वर्गों के बीच का यह भेद बदला है न ही एक बेहतर समाज की बात करने वाले पर खतरे का चिन्ह लगाने का सिलसिला।

जेल सुधार हमारी पहल

यह कटु सच है कि किसी भी समयकाल में एक सुंदर व्यवस्था के लिए काम करने वाले उस वक्त की सरकार द्वारा दंडित किए जाते रहे हैं। पर सच यह भी है कि व्यवस्था में जबतक भ्रष्टाचार चलता रहेगा इसे मिटाने, व्यवस्था को बेहतर बनाने के सपने आने वाली पीढ़ियां देखती रहेंगी। उसके लिए संघर्ष करती रहेंगी। चाहे समय कितना ही आगे क्यों न बढ़ जाए, ऐसा समय कभी नहीं आ सकता कि किसी आंखों में सुंदर सपने न पले, कोई धड़कन अच्छी व्यवस्था के लिए न धड़के, कोई जज्बा संघर्ष के लिए अपनी जिंदगी दाव पर लगाने के लिए तैयार न हो।

आज जेलों की जो स्थिति है यह हमारे शहीद यतींद्रनाथ दास की शहादत को मिटा देने के बराबर है। आज जेलों में कई बंदी शहीद यतींद्रनाथ दास की इस शहादत को बचाने व बंदी अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे है। पर अपने बंदी अधिकारों के लिए संघर्ष के रूप में भूख हड़ताल भूख हड़ताल से जेल ट्रांसफर की यह प्रक्रिया ही चल रही है, जो अफसोसनाक है। सामान्यतः इससे ज्यादा इन बंदियों के साथ कुछ नहीं होता। आज जरूरत है कि इस शहादत को बचाते हुए बंदी अधिकारों को दिलाने में हम इनका साथ दें, इन अधिकारों को दिलवाने के लिए कानून ने जो भी तरीके उपलब्ध कराएं है उसके साथ हम सकारात्मक उपयोग करें।

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