अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

4 कविताएं

Share

पाबंदी का इतिहास / प्यासी पृथ्वी कब से तरसे / मेरा सपना पूरा होगा / पिंजरे में कैद चिड़िया

पाबंदी का इतिहास

दीपा लिंगड़िया
गनीगांव, उत्तराखंड

क्यों ज़मीं पर पांव रखते ही,
ज़ंजीरों में उलझा दिया गया,
क्या मेरा होना पाप था?
तो जन्म होने ही क्यों दिया?
मैंने क्या देखा था, क्या जाना था?
आंखे खुलते ही धुंधला सा लगा,
मुझे लगा शायद ऐसा ही होगा संसार,
मैंने जब सोचना शुरू किया,
तो महसूस होने लगा,
कि ये संसार में हर जगह,
तो अंधेरा ही अंधेरा है,
मन में बस यही था,
कभी तो उजाला होगा,
पर इस उजाले को तो,
हमेशा छुपाया जाता था,
जब उससे लड़ना चाहा तो,
उसी अंधेरे में धकेल दिया गया,
सदियों बाद कुछ ऐसा हुआ,
जब वो निकल पड़ी तो,
उसे क्यों अजीब लगा?
वो सोचती थी मेरी मां के भी,
तो कुछ सपने और अरमान होंगे?
वो तो अपने उन अरमानों को,
इस दुनिया की वजह से छोड़ आई,
पर मैं ऐसा कभी नहीं करूंगी,
अपनी मां के सपनों को लेकर,
आगे मंजिल तक जरूर जाऊंगी।।

प्यासी पृथ्वी कब से तरसे

पल्लवी भारती
मुजफ्फरपुर, बिहार

प्यासी पृथ्वी कब से तरसे,
नभ से मोती का झरना,
टिप-टिप हौले हौले बरसे,
वर्षा की बूंदों का एहसास,
प्यासी पृथ्वी कब से तरसे,
पूछो उस बंजर धरती से,
उस जीव उस पेड़ से,
बादल के छाने पर मोर से,
वर्षा की एक बूंद गिरे तो पत्तों से,
भूमि पे जल पड़ते ही,
मिट्टी की फैले सुरभि अनुपम,
पानी से ही पुनीत मानस,
दिखे निसर्ग कितना हरितम,
सरिता का बहना भी,
वर्षा की बूंदों से बने,
धूप के बाद वर्षा का एहसास,
प्यासी पृथ्वी कब से तरसे।।

मेरा सपना पूरा होगा

मीनाक्षी दानू
कन्यालीकोट, उत्तराखंड

एक ही लक्ष्य है हमारा,
देश को बदल कर दिखाएंगे,
भले कोई ना दे साथ हमारा,
हम खुद मंजिल चढ जाएंगे,
उम्मीद एक बांधी है मैंने,
हम ये सब कर दिखाएंगे,
वो वर्दी होगी मेरे बदन पर,
जिसकी हम शान कहलाएंगे,
मत कर मेरे वतन फिक्र तू,
हम रक्षक बनकर आएंगे,
बनकर जब सैनिक हम,
अपने गांव में आएंगे,
तब अपने मां-बाबा की,
शान हम कहलाएंगे,
मत समझ हमें कमजोर जमाना,
हम तुझे पछाड़ कर दिखाएंगे,
भले कोई ना दे साथ हमारा,
हम खुद मंजिल चढ़ जाएंगे।।

पिंजरे में कैद चिड़िया

अंशु कुमारी
मुजफ्फरपुर, बिहार

जहां थे पहले खेत-खलिहान,
वहां है अब एक महल आलीशान,
जिसमें कैद है एक नन्ही-सी चिड़िया,
जो कल तक थी खेतों की परियां,
पिंजरे में मिलता है दाना उसको,
जिसे मजबूरन खाना है उसको,
खेतों के दिन याद आते हैं उसे,
जिसमें मिलते थे दाने-ही-दाने,
पिंजरे का वह छोटा कमरा,
जिसमें कैद है नन्ही चिड़िया,
याद अपने साथियों को करती,
जिनके साथ थी वह हंसती गाती,
खिड़की से देखती जब चिड़ियों के झुंड को,
मन उसका भी तिलमिला जाता है,
पंख तो हैं उसके पास, पर,
न जा सकती वो झुंड के साथ,
आसमान की वो रोमांचकारी सैर,
पल-पल वो इन यादों में ही रहती,
इनके सहारे अब वो ज़िन्दा रहती,
ऐसे पिंजरों की चारदीवारी में,
न जाने क़ैद हैं कितनी चिड़ियां,
जिनके आसमान के मजेदार,
सैर का सपना रह गया अधूरा।।

चरखा फीचर्स

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें