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सत्चरित्र और सतीत्त्व की दिव्य आभा  से दमकती अमर-स्त्री अरुंधति

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           नीलम ज्योति 

क्या आज आप ऐसी स्त्री की कल्पना भी कर सकते हैं, जो सिर्फ़ एक पुरुष तक सीमित हो? असंभव. कल्पना भी असंभव, सच की तो बात हो छोड़ दो.

     हलांकि ज्यादातर मामलों में पुरुष की नामर्दी ही स्त्री की बदचलनी के लिए जिम्मेदार है : यह अलग बात है.

      कभी सप्तर्षि तारामंडल में वशिष्ठ को ध्यान से देखिये, उनके निकट एक कम प्रकाश वाली तारिका दिखाई देगी। वह अरुंधति हैं। महर्षि वशिष्ठ की पत्नी अरुंधति. महर्षि कर्दम और देवहूति की संतान अरुंधति. महर्षि कपिल की बड़ी दीदी अरुंधति. सप्तर्षि तारामंडल में अपने पति के साथ युगों युगों से विराजमान एकमात्र स्त्री। 

     भारतीय सभ्यता ने कितने हजार वर्षों पूर्व उन सात तारों के समूह को सात महान ऋषियों का नाम देकर सप्तर्षि कहा, यह ज्ञात नहीं। पर तब से अब तक वशिष्ठ और अरुंधति में सूत भर भी दूरी नहीं बढ़ी, यह तय है। परम्परा में है कि नवविवाहित जोड़े को वशिष्ठ और अरुंधति की तरह साथ-साथ युगों युगों तक चमकने का आशीर्वाद दिया जाता है। 

       दक्षिण में एक परम्परा है कि विवाह के समय वर वधु को अरुंधति की पहचान कराता है। यह परम्परा हमारी ओर भी है, पर इधर वर-वधु ध्रुवतारा देखते हैं। वैसे मुझे लगता है अपने साथी के साथ वशिष्ठ-अरुंधति को निहारना ज्यादा रोमांटिक है। है न?

       कल्पना कीजिये कि चांदनी रात में आप किसी पार्क में या छत पर अपने साथी का हाथ पकड़ कर टहल रहे हैं, और आपके साथ साथ आपके माथे पर टहल रहे हैं दुनिया के सबसे बुजुर्ग पति-पत्नी वशिष्ठ और अरुंधति. केवल सोच कर देखिये, आपको लगेगा कि आपके साथ रात मुस्कुरा रही है।

       किसी का साथ होना, किसी के साथ चलना स्वयं में ही एक पूर्ण भाव है। और यदि समाज ने दो लोगों को हाथ पकड़ा कर साथ चलने की अनुमति दी है, तो इस भाव को पूरी तरह से जी लेना चाहिए। किसी भी कारण से यदि आप एक दिन के लिए भी इस साथ को छोड़ते हैं, या दूर होते हैं तो आप अपनी ही हानि करते हैं।

       वशिष्ठ और अरुंधति दो युग्म तारे हैं, जो एक दूसरे की परिक्रमा करते हैं। ठीक वैसे ही, जैसे एक दूसरे का हाथ पकड़ कर गोल गोल घूमती दो लड़कियां। कितना मनोहर है न? एक आदर्श गृहस्थ जीवन ऐसा ही होता है जहाँ पति-पत्नी दोनों एक दूसरे की परिक्रमा करें। 

    एक दूसरे की सुनें, उनकी मानें. यदि दोनों में कोई एक, हमेशा दूसरे के पीछे पीछे चले तो यह दासत्व होता है, पर दोनों यदि साथ चलें तो वह गृहस्थी आदर्श हो जाती है। जभी तो फेरों के समय बारी बारी से दोनों आगे चलते हैं। जिस विषय में जो गाइड कर सकता है वही करे. जहाँ पुरुष कर सकता है वहाँ पुरुष, जहाँ स्त्री कर सकती है वहाँ स्त्री.

      अरुंधति महर्षि वशिष्ठ के गुरुकुल की संचालिका थीं, उनके सभी छात्रों की माता। वे उनकी प्रतिष्ठा का आधार थीं। किसी भी स्त्री या पुरुष की प्रतिष्ठा उससे अधिक उसके साथी के व्यवहार से तय होती है। 

       पति पत्नी का कोई जोड़ा युवा अवस्था में जितना सुन्दर दिखता है, और बुढ़ापे में उतना ही पवित्र। युवा दम्पति को साथ देख कर प्रेम का भाव उपजता है, तो बुजुर्ग दम्पत्ति को साथ और सुखी देख कर श्रद्धा उपजती है। इस श्रद्धा को भी समय समय पर अपने अंदर उतारते रहना चाहिए।

      तो अब जब भी रात में पति/पत्नी के साथ छत पर बैठिए, तो एक बार साथ निहारिये उस जोड़े को.

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