अग्नि आलोक
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जरा इनसे पूछो ! / कब तक होगा यह अत्याचार? / नारी को न समझ बेकार / अपना रास्ता ख़ुद बनाउंगी

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जरा इनसे पूछो !

चांदनी
सुराग, गरुड़
बागेश्वर, उत्तराखंड

ज़रा इन सुगंधित फूलों से पूछो,
क्या ऐसे सुगंध फैलाओगे?
ज़रा इन खुले आसमान से पूछो,
क्या ये हमेशा ऐसे ही नीले रहेंगे?
हमारी प्यास बुझाने वाले पानी से पूछो,
क्या ऐसे ही हमारी प्यास बुझाएंगे?
ज़रा इन लहलहाती फसलों से पूछो,
क्या हमेशा ऐसे ही उगते रहेंगे?
ज़रा इन हरे भरे पेड़ों से पूछो?
क्या ऐसे ही खिलते रहेंगे?
ज़रा इन इंसानों से भी तो पूछो,
क्या ऐसे ही धरती की रक्षा करेंगे॥

कब तक होगा यह अत्याचार?

श्रेया जोशी
कपकोट, बागेश्वर
उत्तराखंड

मेहनत कर कुछ करने गई,
हिंसा ने अपना रूप दिखाया,
इतनी क्रूर हरकत देखकर,
छिपने पर मजबूर कराया,
कब तक होगा यह अत्याचार?
क्या हमारा वजूद मिट जाएगा?
कब तक सोए रहोगे तुम लोग?
क्या कोई हमें न्याय नहीं दिलाएगा?
जो तुमको जीवन दे जाती है,
हर वक्त यह तुम्हें बचाती है,
पर अपनी इज्जत के खातिर,
क्यों हर बार झुक जाती है?
कब तक रोएगी घुट घुट कर?
कोई इन दोषियों को सजा नहीं सुनाएगा?
कब तक घूमेंगे ये लोग ऐसे ही?
क्या फिर कोई और शिकार बन जाएगा?
जब जब हमारे साथ अन्याय होता है,
तब तब आवाज़ें उठती हैं,
फिर कुछ दिन में सब भूल जाते हैं,
फिर नए केस बन जाते हैं।।

नारी को न समझ बेकार

रेनू
गरुड़, उत्तराखंड

लगा लाख जंजीरे तू,
मैं कहां उनमें उलझूंगी,
हसरतें तेरी अधूरी रहेगी,
देख फिर से मैं सुलगूंगी,
दरिया समझ लिया है तूने,
मैं सागर सी बह जाउंगी,
इस सीमा से उस सीमा तक,
ज़माने में फिर लहरा उठूंगी,
तू भेद करेगा नर-नारी का,
मैं ज्वाला सी दहकूँगी,
तू चल समय के अनुकूल मगर,
शिखरों पर मैं ही दिखूंगी,
उस दिन होंगे अल्फ़ाज़ तेरे,
मगर बातों मैं ही महकूंगी,
तेरी नज़र होगी ज़मीन पर,
और आसमान में मैं झलकूँगी,
उस दिन मैं ज़माने से कहूँगी,
नारी हूं ना कि कोई व्यापार,
न समझ तू नारी को बेकार,
मुझ में बुराई देख ना तू,
मैं हूँ खुशियों का भंडार॥

अपना रास्ता ख़ुद बनाउंगी

आंचल आर्य
सिमतोली, उत्तराखंड

मंज़िल तक जाना है,
सपनों को पूरा करना है,
आसमान पर मुझे झलकना है,
रुकावटों की दीवारों को लांघ कर,
दुनिया की भीड़ से आगे निकलना है,
लोग उठाएंगे उंगलियां, तो उठाएं,
मुझे नहीं किसी के आगे झुकना है,
मुझे आगे बढ़ना और आगे ही,
रुकना नहीं, बढ़ते चले जाना है,
लोग मुझे खींचेंगे पीछे की ओर,
पर मुझे नहीं घबराना है,
क्यों सुनूंगी मैं लोगों की बातें?
हर बातों से आगे निकल जाना है,
मुझे आगे बढ़ते जाना है और,
सपनों को पूरा करते जाना है॥

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