सीमांचल यानी बिहार का 4 जिला! किशनगंज, अररिया कटिहार और पूर्णिया। नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार के दस सबसे पिछड़े और गरीब जिलों में सीमांचल के ये चारों जिले आते हैं। विकास पुरुष के तौर पर पहचान रखने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कई बार बिहार के सीमांचल क्षेत्र को लेकर कह चुके हैं कि सीमांचल की चिंता सरकार हर तरह से कर रही है और इस क्षेत्र विशेष के लिए कई योजना चला रही है।
बिहार के जिस क्षेत्र को आमतौर पर लोग ‘सीमांचल’ के नाम से जानते हैं, उसे देश के गृह मंत्री अमित शाह पूर्णिया की रैली में ‘सीमांत’ और ‘सीमावर्ती’ कहते हैं। सीमांचल बिहार का ऐसा इलाका है, जो एक तरफ पश्चिम बंगाल तो दूसरी तरफ नेपाल से लगा हुआ है। इस पूरे इलाके में अल्पसंख्यक आबादी की बहुलता है। इसलिए भाजपा इस क्षेत्र के जरिए बिहार की राजनीति में सम्प्रदायवाद की राजनीति करती रहती है। नीति आयोग की रिपोर्ट में विकास के मामले में सीमांचल के फिसड्डी साबित होने के बाद कई संगठन इसे अलग राज्य बनाने की भी मांग कर रहे हैं।
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार राजेश ठाकुर बताते हैं कि बिहार के अन्य क्षेत्र की तुलना में आज भी कोसी और सीमांचल का विकास ज्यादा नहीं हुआ है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर इस तरह का इल्जाम भी लगाया जाता है कि उन्होंने अपने गृह जिला राजगीर और नालंदा का विकास इन क्षेत्रों की तुलना में बहुत ज्यादा किया है।
डूबता बचपन-बढ़ता पानी है सीमांचल की कहानी
लगभग हर बरसात में सीमांचल में बाढ़ आ जाती है। 90 प्रतिशत से ज्यादा आबादी कृषि पर निर्भर रहने वाले सीमांचल क्षेत्र में यह काफी भयानक आपदा है। अररिया जिला स्थित घोराघाट गांव के रहने वाले देवेश बताते हैं कि हमारा अररिया गरीब जिलों में एक है, ऐसे में बाढ़ग्रस्त इलाके में रहने वाले मजदूर व गरीब लोग, जो रोज कमाते खाते हैं, उनकी मुसीबतें बहुत ज्यादा बढ़ जाती हैं। दिल्ली में काम कर रहे मजदूर परिवार की चिंता को लेकर वापस बिहार आ जाते हैं। हर साल वही बाढ़ का तमाशा होता है और सरकार खामोश रहती है। जब तक बाढ़ और सुखाड़ जैसे प्राकृतिक आपदा पर सरकार काम नहीं करेगी तो कुछ नहीं हो पाएगा इस क्षेत्र का।”
किशनगंज के मोहम्मद जाकिर पटना में नौकरी करते हैं। वह बताते हैं कि, “जानबूझकर सरकार सीमांचल के लोगों को हर वर्ष बाढ़ की गंभीर विभीषिका को झेलने पर मजबूर करती है। एक नदी को दूसरे नदी से आपस में जोड़ने व बाढ़ के स्थाई समाधान के लिए महानंदा बेसिन पर कोई काम नहीं हुआ। अगर ये काम हो जाता तो निश्चित रूप से सीमांचल को इस बाढ़ की त्रासदी से राहत ही नहीं बल्कि स्थाई समाधान मिल जाता।”
विकास से ज्यादा राजनेताओं के रैली में खर्च होता है
सीमांचल के रहने वाले आम जन कहते हैं कि, “मुस्लिम क्षेत्र होने की वजह से इस इलाके को राजनीति का अड्डा बना दिया गया है। सीमांचल में चाय, ड्रैगन फ्रूट और अनानास की खेती होती है, जो राज्य के अन्य क्षेत्रों की तुलना में बहुत ज्यादा है। इसके बावजूद इस फसल को लेकर यहां कोई प्रोसेसिंग यूनिट नहीं है। यहां विकास से ज्यादा राजनेताओं के रैली में खर्च होता है।” भाजपा के कई नेता सीमांचल के बारे में बयान दे चुके हैं कि यहां जनसंख्या काफी तेजी से बढ़ रही है। जबकि जनगणना 2011 के मुताबिक बिहार के मधेपुरा जिले में किशनगंज और अररिया की तुलना में जनसंख्या वृद्धि दर अधिक है।
किशनगंज स्थित ठाकुरगंज नगर पंचायत के मुख्य पार्षद सिकंदर पटेल बताते हैं कि, “नेता और मीडिया जानबूझकर किशनगंज को संप्रदायिकता में उलझाना चाहते हैं जबकि यहां की असली समस्या गरीबी है। भौगोलिक कारणों से बाढ़ से यहां की अधिकांश आबादी लड़ाई लड़ती है। सरकार को उस पर ध्यान देना चाहिए।”
आंकड़ा क्या कहता है?
सीमांचल क्षेत्र में मुस्लिमों की संख्या अच्छी खासी है। एनएसएसओ (राष्ट्रीय आदर्श सर्वेक्षण संगठन) के 68वें दौर के सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक 2011-12 में बिहार में मुस्लिम बहुसंख्यक इलाके में अधिक विकास नहीं हुआ है। 2020 के विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल ने इस क्षेत्र के लिए ‘सीमांचल विकास आयोग’ गठन करने का वादा किया था।
हाल में ही ADRI की रिपोर्ट आई है। रिपोर्ट में सीमांचल के चार जिलों के 16 पंचायत और 32 गांव के 4205 लोगों को शामिल किया गया है। इसमें 60.66% मुस्लिम समुदाय और 39.34% हिन्दू समुदाय के है। रिपोर्ट के मुताबिक 43.32% मुस्लिम परिवार आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं जिन्हें EBC की श्रेणी में रखा गया है और 24.92% हिन्दू परिवार EBC में आते हैं, जिसमें से 49.22% परिवार दलित है। पढ़ाई की बात करें तो मुसलमानों में पढ़ाई की दर काफ़ी कम है। ग्रेजुएशन (स्नातक) तक की डिग्री लेने वालों की आबादी महज़ 0.82% है। चारों जिले में 37% महिलायें और 29% पुरुष निरक्षर हैं।
इन जिलों में आय का प्रमुख स्रोत कृषि है। लेकिन 35% मुस्लिम किसान और 41% मुस्लिम किसानों के पास खेती के लिए ख़ुद की ज़मीन नहीं है। 73% घरों में पीने का साफ़ पानी नहीं है। कई घरों को पानी भरने के लिए कम से कम आधे घंटे का रास्ता तय करना पड़ता है। 33.46% घरों में शौचालय नहीं नहीं रहने की वजह से खुले में शौच करने जाना पड़ता है। 65.44% परिवार आज भी खाना बनाने के लिए गैस नहीं बल्कि लकड़ी का इस्तेमाल करते हैं। 5% मुस्लिम आबादी के पास किसी भी तरह का पहचान पत्र मौजूद नहीं है।