~ डॉ. विकास मानव
_मनुष्य एक सात मंजिला मकान है, ए सेवन-स्टोरी हाउस : लेकिन हम एक मंजिल में ही जीते और मर जाते हैं।_
◆जिस मंजिल में हम जीते हैं, उस मंजिल का नाम कांशस चेतन है।
◆उस मंजिल के ठीक नीचे दूसरी मंजिल है, जो तलघरे में है। जमीन के नीचे है, अंडरग्राउंड है। उस मंजिल का नाम है अनकांशस अचेतन।
◆उस मंजिल के भी और नीचे पाताल की तरफ तीसरी मंजिल है। उसका नाम है कलेक्टिव अनकांशस यानी समष्टि अचेतन।
◆उसके नीचे भी एक चौथी मंजिल है,और भी नीचे। उस मंजिल का नाम है कॉस्मिक अनकांशस यानी ब्रह्म-अचेतन।
◆जिस मंजिल पर हम रहते हैं उसके ऊपर भी एक मंजिल है। उस मंजिल का नाम है सुपर-कांशस यानी अति-चेतन।
◆उसके ऊपर एक मंजिल है जिसको कहें कलेक्टिव कांशस यानी समष्टि चेतन।
◆उसके भी ऊपर एक मंजिल है जिसे कहें काॅस्मिक कांशस यानी ब्रह्म-चेतन।
_जहां हम हैं उसके ऊपर तीन मंजिलें हैं और उसके नीचे भी तीन मंजिलें हैं। यह मनुष्य का सात मंजिलों वाला मकान है।_ लेकिन~
हममें से अधिक लोग चेतन मन में ही जीते और मर जाते हैं।
_आत्मबोध/पूर्णत्व/परमानंद/परमतृप्ति/मोक्ष का अर्थ है, इस पूरी सात मंजिल की व्यवस्था से परिचित हो जाना। इसमें कुछ भी अपरिचित न रह जाये, इसमें कुछ भी अनजाना न रह जाये।_ क्योंकि~
इसमें यदि कुछ भी अनजाना है तो मनुष्य अपना मालिक, अपना सम्राट कभी भी नहीं हो सकता।
_साधना एक डेप्थ है, गहराई है; और सिद्धि एक पीक है, ऊंचाई है। अपने में ही जो नीचे उतरेगा वह अपने में ही ऊपर जाने की उपलब्धि को पाता चला जाता है। सीधे ऊपर जाने का उपाय नहीं है। सीधे तो नीचे जाना पड़ेगा।_
कांशस से~
अनकांशस में।
अनकांशस से~
कलेक्टिव अनकांशस में।
कलेक्टिव अनकांशस से~
कास्मिक अनकांशस में।
●प्रतिबार जब आप चेतन से अचेतन में जायेंगे तब अचानक आप पायेंगे कि ऊपर का भी एक दरवाजा खुल गया–सुपर कांशस का, अतिचेतन का दरवाजा खुल गया।
●जब आप कलेक्टिव अनकांशस में जायेंगे तो पायेंगे, ऊपर का एक दरवाजा और खुल गया–वह जो समष्टिगत चेतन है, उसका दरवाजा खुल गया।
●जब आप कास्मिक अनकांशस में जायेंगे, ब्रह्म अचेतन में जायेंगे तब अचानक आप पायेंगे कि ब्रह्म चेतन का, कास्मिक कांशस का दरवाजा भी खुल गया।
_जितने आप गहरे उतरते हैं उतने आप ऊंचे उठते जाते हैं। इसलिए ऊंचाई की फिक्र छोड़ दें, गहराई की फिक्र करें। जिस जगह हम हैं वहां से हम कैसे जागें : इस बात का ध्यान रखें।_