देश की एकता बनाए रखने में भारत रत्न सरदार वल्लभ भाई पटेल का योगदान भी अहम है। सरदार पटेल के आनेवाले जन्मदिन के मौके पर पेश है 18 जनवरी 1948 को, मुंबई में दिए उनके भाषण का एक अंशः
हमें हिंदुस्तान को एक महान देश है तो पाकिस्तान जैसे छोटे टुक आप क्यों डरते हैं? इसमें क्या है लेकिन हमें दिमाग से काम लेना चाहिए और समझ-बूझकर आपस में संगठित होकर हिंदुस्तान को ऊंचा उठाना चाहिए। तब हम सारे एशिया की लीडरशिप ले सकते हैं। इसे लेकर मेरे दिल में कोई शक नहीं है, इसलिए मेरी कोशिश है कि हिंदुस्तान को एक बना लो। कुछ लोगों को अंदेशा था कि ऐसा नहीं होगा कुछ राजाओं के दिल में भी शंका थी कि अब न जाने क्या होगा? कुछ हमारे सोशलिस्ट भाई भी शंका करते थे कि हिंदुस्तान में राजाओं को पोजिशन मिल जाएगी।
कुछ लोग तो कहते थे कि अब तो राजा जो चाहे सो करेंगे और हमारी कुछ भी नहीं चलेगी। मैंने कहा कि भाई, धीरज रखो। हम आजाद हुए राजा भी आजाद हुआ है उसको भी अपने मुल्क का खाल आएगा उसके दिल में भी स्वाभिमान पैदा होगा, कुछ खुद का अभिमान पैदा होगा हमारे हिंदुस्तान में बुद्ध भगवान पैदा हुए। उनकी कितनी छोटी रियासत थी वह रियासत भी उन्होंने छोड़ दी। अपने पास न बंदूक रखी, न तोप रखी।
लेकिन हिंदुस्तान के बाहर तक वह पहुंच गए। वह चीन और जापान तक पहुंच गए। वह सीलोन और बमां में पहुंचे। आप क्यों घबराते हो? इसी तरह से मैं कहता हूं कि हिंदुस्तान में जो धन धरतो में भरा है, उसे खोद खोदकर हमें निकालना है। यहां इतना धन भरा है, जो कभी किसी ने नहीं देखा होगा। दूसरे मुल्कों में इतना धन नहीं, जितना हमारी धरती में भरा है। उसे हमें निकालना है लेकिन इसके लिए हमें मेहनत करनी पड़ेगी। एक तरफ आप मजदूरों से कहें कि काम कम करो और दाम ज्यादा मांगे। इस तरह तो आप इनसॉल्वेंसी (दिवाला) निकालोगे। इस तरह देश का काम नहीं चलेगा। मैं तो असल में मजदूरों का भी भला चाहता हूं। लेकिन भला कैसे होगा ? भला इस तरह होगा कि हम रुपया पैदा करें और फिर उसे आपस में बंट लें लेकिन अगर हम कुछ पैदा ही नहीं करें तो न तो कुछ मजदूर को मिलेगा, न धनी को मिलेगा, न हमें मिलेगा।
बार-बार कहा जाता है कि हमें लीडरशिप चाहिए। नेतागीरी तो आज मुल्क में रास्ता बन गया है। किसी को नेता बनना हो तो पहले कोई स्पीच दो कैपिटलिस्ट लोगों को गाली दो उसके बिना तो चलता नहीं लोग मानते ही नहीं। एक-दो गाली राजाओं को बस फिर लीडरशिप मिल गई। लेकिन इस तरह की लीडरशिप से किसी का क्या भला होगा? मैं राजाओं से भी कह सकता हूं और बहुत खरी बातें उन्हें सुनाता हूं। इसी तरह कैपिटलिस्टों से भी मुहब्बत करता हूं, लेकिन उन्हें कड़ी बात भी सुनाता हूं। अगर मुझे समझ आ जाए कि हमारे मुल्क में एक-एक कैपिटलिस्ट की कैपिटल खत्म कर देने से हिंदुस्तान का भला होगा तो उसे खत्म कर देने में मेरा नंबर पहला होगा, मैं पीछे नहीं रहूंगा।
मुझे सोशलिजम सिखाने की किसी को जरूरत नहीं है जब से मैंने गांधी का साथ दिया है, आज इस बात को बहुत साल हो गए, तभी से मैने फैसला किया था कि अगर पब्लिक लाइफ में काम करना हो तो अपनी मिल्कियत नहीं रखनी चाहिए। सोचिए जरा, तब से आज तक मैंने अपनी कोई चीज़ नहीं रखी। न मेरा कोई बैंक अकाउंट है, न मेरे पास कोई जमीन है और न मेरे पास कोई अपना मकान है मैं यह सब कुछ रखना ही नहीं चाहता हूं। अगर मैं रखूं मैं: तो इसे पाप समझता हूं। मुझे कोई सोशलिजम का पाठ सिखाए तो उसे फिर से सीखना पड़ेगा कि पब्लिक लाइफ किस तरह चलानी है। बातें बहुत चलती हैं। किसी ने मेरा नाम सरदार कर दिया। अब यहां बंबई (अब मुंबई) में जो सरदार-गृह है, उसके बारे में कलकत्ता (अब कोलकाता) के एक अखबार में छपा कि सरदार के पास बंबई में बड़े- बड़े मकान है। वे उसके नाम पर हैं।
सरदार नाम से अब इस तरह मेरी इज्जत तो बहुत बढ़ती है और शायद उससे मुझे क्रेडिट पर रुपया भी मिल
जाए। हमारे देश में ऐसी धोखेबाजी बहुत चलती है। मगर मैं आपसे यह कहना चाहता हूं कि आज हमारा काम धरती हूं में से धन पैदा करना और बड़े-बड़े कारखाने बनाना है। मैंने आपसे कहा था कि अगर हमें अपने मुल्क की रक्षा करनी है तो उसके लिए हमें अच्छी फौज रखनी पड़ेगी। उसके लिए हमें सेंट्रल गवर्नमेंट को मजबूत बनाना होगा। उसकी रक्षा करनी होगी मजबूत बनाने से मतलब यह है कि देशभर के लोग उसके पीछे होने चाहिए। अगर आप
जदूरों से कहना चाहिए कि अपनी फौज के लिए आपको तोप, बंदूक, गोला, एम्युनिशन (गोला-बारूद ) सब चीज बनानी चाहिए तोप, बंदुक के लिए स्टील चाहिए। हमारे मुल्क में हमारी धरती में बहुत लोहा पड़ा है। आज तक लोहा अंग्रेज बाहर से लेकर आता था और हमारा धन ले जाता था। अब स्वराज के बाद क्या हम लोहा बाहर से लाएंगे? नहीं, वह अब हमें इधर पैदा करना है। हमारे यहां एक कारखाना टाटा का है। देशभर में मकान बनाने के लिए जितना लोहा चाहिए उतना भी उससे पूरा नहीं पड़ता तो हम अपनी आर्मी के लिए कहां से लोहा लाएं? उसी के लिए आज स्टील पर कंट्रोल है और वह तोड़ा नहीं जा सकता अनाज का, कपड़े का, चीनी का कंट्रोल हम तोड़ सकते है लेकिन स्टील का कंट्रोल नहीं तोड़ सकते। हमारे यहां बहुत कम स्टील है। तो जहां ज्यादा से ज्यादा जरूरत होती है, वहीं हम देते हैं।
आज टाटा के कारखाने में भी बार-बार स्ट्राइक होती है। अगर नया सरकारी कारखाना बनाना हो तो उसमे स्ट्राइक होनी ही नहीं चाहिए। हमें पेट्रोल चाहिए। हमें कोयला चाहिए। बताने की बहुत-सी बाते हैं। लेकिन जब मैं कहता हूं तो वे कहते हैं कि यह हमारा बिटर क्रिटिसिजम (कड़ी आलोचना) करता है। मैं विटर क्रिटिसिजन नहीं करता, मैं आपके दिल में घुसना चाहता हूं और आपको यह बताना चाहता हूं कि कितनी सदियों के बाद आज आपको यह मौका मिला है। एक हजार साल बाद आज हमारा हिंदुस्तान जितना संगठित हो गया है, उतना वह पहले कभी नहीं था। अपने इतिहास को पढ़ो तो सही।
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