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फंस गए अजित पवार: महाराष्ट्र में चुनावी मुद्दा बन ही गए गौतम अडाणी

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गंगाधर ढोबले

 BJP चाहे या न चाहे, लेकिन उद्योगपति गौतम अडाणी महाराष्ट्र में चुनावी मुद्दा बन ही गए। अजित पवार के एक राजनीतिक भंडाफोड़ ने तहलका मचा दिया है। उनका निशाना चाचा शरद पवार थे, लेकिन उसकी जद में अडाणी भी आ गए। अजित दादा ने पोल खोली कि 2019 में राज्य में सत्ता का जो खेल हुआ था, उसके पीछे शरद पवार ही थे। इसी के चलते उन्होंने देवेंद्र फडणवीस से मिलकर सरकार बनाई थी, जो 80 घंटे ही चली, क्योंकि अजित अचानक पीछे हट गए। सत्ता के इस खेल में अडाणी का नाम इसलिए उछला, क्योंकि उन्होंने ही शरद पवार और अमित शाह की बैठकें करवाई थीं। अब इससे कोई इनकार नहीं करता।

खुलासे का कारण

प्रश्न केवल यह है कि पांच साल चुप रहने के बाद ऐन चुनाव के मौके पर अजित पवार ने यह गुगली क्यों फेंकी? इसके दो कारण हो सकते हैं। पहला, उन पर लगा गद्दारी का कलंक धोना और गेंद शरद पवार के पाले में उछाल देना क्योंकि दोनों का वोटबैंक लगभग एक ही है। लोकसभा चुनाव में बगावत का ठीकरा उनके सिर फूटा, जिसका खामियाजा उन्हें और उनके गुट को भुगतना पड़ा। शरद पवार की छवि शालीन बनी रही और चुनाव में उन्हें फायदा मिला। इस चुनाव में अजित दादा यह स्थिति उलट देना चाहते हैं। वह अब खुद टारगेट नहीं बनना चाहते, बल्कि चाचा को निशाना बनाना चाहते हैं। वह साबित करना चाहते हैं कि वह निर्दोष है और सारा किया-कराया शरद पवार का है।

छवि बदलना

दूसरा कारण यह है कि बारामती में वह खुद चुनाव मैदान में हैं। लोकसभा चुनाव में उनकी पत्नी सुनेत्रा को शरद पवार ने हरवाया और अपनी बेटी सुप्रिया सुले को जितवाया। अबकी बार शरद पवार ने ही अजित दादा के सगे भतीजे युगेंद्र को उनके खिलाफ खड़ा किया है। जनता में बात यह गई है अजित ने पवार परिवार में बंटवारा कराया। लोकसभा चुनाव में यह बात उन पर भारी पड़ी थी। इस बार वह इस स्थिति को बदलना चाह रहे हैं।

अडाणी की एंट्री

घटनाओं को ठीक से समझने के लिए 2019 में चलें। BJP-शिवसेना ने युति बनाकर चुनाव लड़ा था। गठबंधन को तो बहुमत मिल गया, लेकिन कोई पार्टी अकेले दम पर सरकार बनाने लायक स्थिति में नहीं पहुंची थी। पेच फंसा मुख्यमंत्री पद पर। उद्धव को सीएम बनाने के लिए BJP तैयार नहीं हुई। आखिर में गठबंधन टूट गया। शरद पवार और BJP नेतृत्व अन्य विकल्पों की तलाश में जुट गए। दोनों के योग से 159 का स्पष्ट बहुमत बनता था। इसी मोड़ पर अडाणी पिक्चर में आए।

बैठकों की कहानी

अडाणी का BJP नेतृत्व और शरद पवार, दोनों से स्नेहपूर्ण संबंध था। इसलिए उनको बातचीत की पहल करने के लिए चुना गया। BJP ने ही शायद इसमें पहल की। इन बैठकों के बारे में गोपनीयता बरती गई। तय हुआ कि देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री और अजित पवार उपमुख्यमंत्री होंगे। रातभर में राष्ट्रपति शासन हटा दिया गया और तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने भोर में ही फडणवीस और अजित को शपथ दिला दी। शरद पवार के कान खड़े हो गए। फिर क्या था, 80 घंटे में ही अजित दादा इस्तीफा देकर चाचा के पास लौट आए। सरकार गिर गई, लेकिन बगावत का धब्बा माथे पर लग गया।

कई उलटफेर

इस मोड़ पर शरद पवार की चतुराई काम कर गई। उद्धव ठाकरे और कांग्रेस को जोड़कर उन्होंने महाविकास आघाड़ी बनवाई। अजित दादा का उपमुख्यमंत्री पद फिर कायम रहा। ढाई साल बाद फिर एक भूचाल आया और उद्धव की पार्टी टूट गई। एकनाथ शिंदे शिवसेना के 40 से अधिक विधायक लेकर BJP के साथ चले गए। कुछ माह बाद अजित पवार भी लगभग उतने ही विधायक लेकर शरद पवार से अलग हो गए। लगभग सभी बड़े नेता शरद पवार से कन्नी काट गए, लेकिन लोकसभा चुनाव में उनका फिर उदय हुआ। अब अजित गुट का उस ओर पलायन शुरू हुआ है। शायद अडाणी-शरद पवार रिश्तों का हौवा खड़ा कर अजित बाजी संभालना चाहते हैं।

डैमेज कंट्रोल

अब शरद पवार और अजित पवार, दोनों का डैमेज कंट्रोल चल रहा है। शरद पवार कहते हैं कि बैठकें हुईं, लेकिन अडाणी ने चर्चा में हिस्सा नहीं लिया। अजित दादा ने पलटी मारकर लगभग यही बात कही है। BJP ने मौन साध लिया है। लेकिन, अजित दादा के धमाके से वह असहज लगती है। शिंदे के लिए भी यह परेशानी का सबब है। शरद पवार की यह भी सफाई है कि 2019 में वह इसलिए पीछे हट गए क्योंकि उन्हें BJP के आश्वासन पर भरोसा नहीं था। उनके साथी इसलिए BJP के साथ जाना चाहते थे ताकि उनके खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियों की जांच बंद हो। इस जांच के दायरे में अजित दादा भी थे।

पुरानी दोस्ती

शरद पवार और अडाणी की दोस्ती किसी से छिपी नहीं है। शरद पवार ने 2015 में छपी अपनी आत्मकथा ‘लोक माझे सांगाती’ (लोग मेरे साथी) में अडाणी से अपनी दोस्ती का विस्तार से वर्णन किया है। 2008 में मुंबई में हुए आतंकवादी हमले के दौरान ताज होटल में फंसे अडाणी को सुरक्षित बाहर निकालना हो, जनवरी 2023 में अडाणी ग्रुप के खिलाफ आई हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर बचाव करना हो या चंद्रपुर में ताप बिजलीघर के लिए कोयले का स्लॉट दिलवाना हो- शरद पवार ने अडाणी का साथ हमेशा दिया है।

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