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वैभव की आमद से राहुल बुरे पराभव की ओर

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सुसंस्कृति परिहार 

दमोह विधानसभा सभा उपचुनाव बहुत ही दिलचस्प हो गया जब उनके चचेरे भाई एडवोकेट वैभव सिंह ने निर्दलीय प्रत्याशी बतौर चुनाव लड़ने का फैसला लिया ।वे अपने चुनाव चिन्ह चप्पलें गले में टांगे इस बात को प्रचारित कर रहे हैं कि 1842 के क्रांतिकारी  राजा ऐंहिरदेशाह लोधी परिवार के सदस्य राहुल सिंह ने दलबदल कर ना केवल परिवार की आन बान शान को चोट पहुंचाई है बल्कि लोधी समाज को भी गद्दारी के तमगे से दोचार कराया है जिसका प्राश्चियत करने वे राहुल की खिलाफत में उतरे हैं।साथ ही साथ वे पिछड़े वर्ग के भी राष्ट्रीय हैसियत के नेता हैं और पिछड़े वर्ग को आबादी के अनुपात में आरक्षण दिलाने प्रतिबद्ध हैं इसके लिए वे लगभग 138 दिन का अनशन दमोह, सागर में कर चुके हैं।इस नाते उनकेसाथ राष्ट्रीय स्तर के लोग भी जुड़े हैं।

लोधी समाज के साथ तमाम पिछड़े वर्ग के लोगों से भी उन्हें अपेक्षाएं हैं कि उनका मत वे हासिल कर लेंगे। बहरहाल दोनों भाइयों की जंग दमोह को एक नई सोच दे रही है।ज्ञातव्य हो इसी खानदान से राहुल के एक और चचेरे भाई प्रद्युन्न सिंह भी मंत्री का दर्जा लिए हैं और कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आए थे।एक घर से दो दो मंत्री भी प्रद्युन्न की राह में बाधक हो सकते हैं इसीलिए उनकी मदद राहुल को मिलती नज़र नहीं आती।            

  इस बीच अभाना के दतला निवासी इंकलाबी नेता द्रगपाल सिंह लोधी का नाम दमोह से चुनाव लड़ने के लिए उछला पर चुनाव लड़ने की उम्र पूर्ण ना होने के कारण वे चुनावी मैदान में तो नहीं है पर द्रगपाल और उनके इंकलाबी साथी राहुल सिंह को घेरने गांव गांव अपनी आवाज़ पहुंचा रहे हैं विदित हो द्रगपाल और उनके साथी सुनील राजपूत ने राहुल सिंह के आगमन पर जूतों की माला पहिनाने की कोशिश की थी जिससे वे चर्चाओं में रहे। राहुल जैसे बेईमानों को सबक सिखाने वे प्रतिबद्ध हैं ।              लगता है जूतों की माला का जिस तरह दमोह के जनमानस ने स्वागत कर द्रगपाल को सिर आंखों पर बिठाया उसी सै प्रभावित होकर  निर्दलीय प्रत्याशी वैभव सिंह ने भी चुनाव हेतु इसीलिए चुनाव चिन्ह जूता ही मांगा था लेकिन उन्हें चप्पलों से ही संतोष करना पड़ा है।इधर चेतना मंच से खड़ी उमा सिंह लोधी भी राहुल की लोधी वोट में सेंध लगा चुकी हैं यानि यह तो तस्वीर लगभग साफ़ है कि केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल लोधी होने के बावजूद राहुल को बड़ी संख्या में लोधी वोट नहीं दिला पायेंगे ।जो यहां का बड़ा वोट बैंक है। हालांकि पूर्व सांसद चंद्रभान सिंह लोधी जो पिछले 10 साल से कांग्रेस में ही थे। कैश फॉर वोट मामले में उन पर आरोप लगने के बाद भाजपा से उन्हें निकाल दिया गया था।  इस कृत्य ने उनकी छवि को तब भी इतना आघात पहुंचाया था कि उनका राजनैतिक भविष्य ही स्वाहा हो गया आज राहुल सिंह उपचुनाव में ऐसे ही संकट से घिरे हैं जब उनके भाई वैभव सिंह और लोधी समाज से उभरे युवा तुर्क द्रगपाल सिंह उनकी राजनीति ख़त्म करने आमादा हैं।         

   इधर बहुत सालों बाद जयंत की अनुपस्थिति में अजय टंडन ही ऐसे प्रत्याशी हैं जिनकी दमोह में मिलनसारिता के सैकड़ों किस्से हैं।जनता से जुड़ाव और उनकी कर्मठ शैली के बीच, राहुल की गद्दारी उन्हें और लोकप्रिय बना रही है।विदित हो अजय टंडन ने जिला कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए अपने तमाम कांग्रेस के विघटित साथियों को एक साथ लेकर कद्दावर नेता जयंत मलैया को हराकर राहुल सिंह को जितवाया था।आज दोनों आमने-सामने हैं । भाजपा का तिलिस्म टूटा है जयंत समेत कई कद्दावर नेता क्वांरेटाईन हैं यह विडम्बना ही है। भाजपाध्यक्ष बी डी शर्मा यहां डेरा डाले हुए हैं हर बूथ कांग्रेस विहीन का आह्नान कर चुके हैं पर बाहरी भाजपाई कार्यकर्ताओं के बस की बात नहीं ।  भाजपा कार्यालय के सामने कारों का रेला  लगा रहता है पर दमोही भाजपा कार्यकर्ता उदासीन है । इधर भाजपा का मतदाता भी उदासीन है। राहुल सिंह का प्रचार भी सुस्त है यह सब हार के संकेत हैं।             

  संकेत बता रहे हैं यदि सब कुछ ठीक ठाक रहा तो अजय की जीत पक्की है । वैभव सिंह और उनके साथियों की सक्रियता यदि रफ्तार पकड़ती है तो वे दूसरे नंबर पर पहुंच कर अपना नाम दर्ज करा सकते हैं । भाजपा को तीसरे नंबर पर ही संतुष्ट होना होगा ।ऐसे आसार बन रहे हैं ।           

  कुल मिलाकर वैभव सिंह की आमद और द्रगपाल के सघन अभियान  भाजपा को इस स्थिति में पहुंचाने लगा हुआ है । कांग्रेस की अपनी परम्परागत वोट तो है ही उसे राहुल विरोध का फायदा भी मिलने जा रहा है। कांग्रेस की जीत के प्रति लोग उत्साहित हैं पर ई वी एम के खतरे को भी महसूस कर रहे हैं। भाजपा की हालत ख़राब है जन जन में उसके प्रति रोष भी है राहुल चुनाव में फेल होते नज़र आ रहे हैं ।पर्दे के पीछे  भाजपा की बड़ी ताकतें भी हैं जिन्हें आगे अपने भविष्य की चिंता है । कांग्रेस और भाजपा के चुनावी मेनेजमेंटके बावजूद यह तय हो गया है कि वैभव की आमद ने राहुल के बुरी तरह पराभव का द्वार खोल दिया है।

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