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किसान और मजदूर देशव्यापी संघर्ष के मैदान में उतरने को मजबूर 

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,मुनेश त्यागी

    तीन काले कानून के खिलाफ चौथी वर्षगांठ के अवसर पर अधिकांश किसान संगठन और मजदूर यूनियनें संगठित रूप से आंदोलन करने पर उतारू हैं । उन्हें लगातार अपनी मांगे मनवाने का आंदोलन करने के लिए उन्हें मजबूर किया जा रहा है। सरकार उनकी मांगों को लगातार अनसुना करती आ रही है और अब उन्हें आंदोलन करने के लिए सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर कर रही है।

      किसानों ने मजदूरों के साथ बनाए गए गठबंधन के आधार पर इन मांगों को लेकर 16 फरवरी 2024 को राष्ट्रीय स्तर पर औद्योगिक हड़ताल और ग्रामीण बैंड का आयोजन किया था। किसान और मजदूर सरकार की किसान विरोधी और मजदूर विरोधी नीतियों का विरोध करते चले आ रहे हैं। इतने बड़े आंदोलन के बाद भी, सरकार उनकी मांगों को सुनने और मानने को तैयार नहीं है।

     वर्तमान सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा के साथ 9 दिसंबर 2021 को लिखित समझौता किया था। इसके बाद सरकार के आश्वासन पर किसानों ने दिल्ली का धरना समाप्त कर दिया था, मगर अफसोस की बात है कि सरकार आज तक भी उस लिखित समझौते का उल्लंघन करती आ रही है और उनकी मांगे मानने को तैयार नहीं है। सरकार की किसान मजदूर विरोधी नीतियों के कारण आम जनता का जीना दूभर हो गया है। महंगाई, गरीबी और भ्रष्टाचार जनता की कमर तोड़ रहे हैं। गरीबी और बेरोजगारी धरती पर पर्वतों की सबसे ऊंची एवरेस्ट चोटी को भी मात दे रही हैं।

     किसान और मजदूर कर्जमंदी के गर्त में गिरते जा रहे हैं। वहीं दूसरी ओर सरकार कारपोरेट घरानों का 16.5 लाख करोड रुपए से अधिक का कर्ज माफ कर चुकी है, मगर वह किसानों और खेत मजदूरों को कर्ज  के अभिशाप से मुक्त करने को तैयार नहीं है। सरकार की नीतियां औद्योगिक घरानों और चंद अमीरों को मालामाल कर रही हैं। सरकारी नीतियों के कारण किसानों पर कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है। पिछले 30 सालों में चार लाख से ज्यादा किसान आत्महत्या करने को मजबूर हो चुके हैं।

     बेरोजगारी, गरीबी और कृषि की बढ़ती लागत के कारण ग्रामीण युवक शहरों की ओर भागने को मजबूर हो रहे हैं और वहां गंभीर शोषण का शिकार बनने को मजबूर हो रहे हैं क्योंकि वहां श्रम कानून को ताक पर रख दिया गया है। मजदूरों को न्यूनतम वेतन स्थाई नौकरी और यूनियन बनाने के अधिकार से वंचित कर दिया गया है। सरकार खाद्य छूट और उर्वरक छूठ में लगातार कटौती कर रही है और उसने इस बाबत 1,22,910 करोड़ की कटौती कर ली है।

      पर्याप्त खाद्यान की कमी से बच्चे और औरतों में कुपोषण बढ़ता जा रहा है। गरीब बच्चों और औरतों की अवस्था बेहद सोचनीय बनती जा रही है। 57% महिलाएं और 67% बच्चे खून की कमी के शिकार हैं, 38 परसेंट बच्चे पौष्टिक भोजन की कमी के कारण बौने हो गए हैं और 21% बच्चे पोस्ट भोजन न मिलने के कारण कमजोरी के शिकार हैं।

      कल 26 नवंबर को किसान और मजदूर देशव्यापी अभियान के तहत निम्नलिखित मांगों को लेकर आंदोलनरत हैं,,,, 1.सभी मजदूरों को 26, 000 रुपए प्रति माह न्यूनतम वेतन और 10,000 रुपए  प्रतिमाह पेंशन दी जाए, 2.किसानों की कर्जमंदी और आत्महत्या रोकने के लिए उनकी पूर्ण कर्ज माफी की जाए, 3.सार्वजनिक क्षेत्रों के सभी विभागों जैसे बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य, रेलवे, सुरक्षा आदि सभी क्षेत्रों में नौकरियों का निजीकरण बंद किया जाए, 4.प्रीपेड मीटरों को खत्म किया जाए, घरेलू  उपभोक्ताओं, कृषि में लगाई गई बिजली घरों और दुकानों को 300 यूनिट बिजली प्रतिमाह मुक्त दी जाएं, 

5.सभी फसलों की C2+50 के अनुसार एमएसपी सहित सरकारी गारंटी खरीद की जाए, 6.नौकरियों में ठेकेदारी प्रथा और आउटसोर्सिंग प्रथा खत्म की जाए, और मजदूरों को गुलाम बनाने वाली चारों श्रम संहिताएं खत्म की जाएं, 7.सभी के लिए रोजगार की गारंटी दी जाए, 8.राज्य सरकारों के खिलाफ किए गए किया जा रहे हैं मनवाने हमलों पर रोक लगाई जाए, 9.कृषि के निगमीकरण और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ किया जा रहे सभी समझौतों को समाप्त किया जाए, 10.भूमि अधिग्रहण की मुहिम को बिना देरी किए खत्म किया जाए, 

11.वन अधिकार कानून को लागू किया जाए, 12.फसलों और पशुओं का सार्वजनिक बीमा लागू किया जाए, 13.मनरेगा के तहत ₹600 प्रतिदिन और साल में 200 दिन मजदूरी दी जानी निश्चित की जाए, 14.साठ साल के ऊपर सभी जरूरतमंद लोगों को ₹10000 प्रतिमाह पेंशन दी जाए, 15.महिलाओं और बच्चों के खिलाफ चल रही अपराधों की सुनामी को रोका जाए, 16.न्याय प्रणाली में सस्ता और सुलभ न्याय देने के लिए जरूरी  सुधार और इंतजाम किए जाएं, 

17.जनता की एकता तोड़ने वाली और हिंदू मुस्लिम नफरत की मुहिम को तुरंत रोका जाए, 18.आदिवासियों, दलितों, गरीबों और कमजोर लोगों के खिलाफ जारी हिंसा नफरत भेदभाव और सामाजिक उत्पीड़न को शक्ति के साथ रोका जाए, 19.सभी गरीबों के बच्चों को मुफ्त और आधुनिक शिक्षा दी जाए, 20.छात्रों के अनुपात में योग्य शिक्षकों की तुरंत भर्ती की जाए, 21.नफरत की भाषा बोलकर समाज में नफरत फैलाने वाले और बंटवारा करने वाले तथाकथित बाबाओं, संतों और नेताओं को तुरंत गिरफ्तार करके कड़ी सजी सजा दिलाई जाए और 22.जनता को सस्ता और सुलभ न्याय देने के लिए कानूनों और अदालतों में जरूरी और पर्याप्त इंतजाम किए जाएं।

      यहां पर यह भी याद रखना जरूरी है कि किसान और मजदूर जिस सरकार से यह मांगे कर रहे हैं, वह लगातार उनकी मांगों को अनसुना कर रही है और उन्हें लगातार आंदोलन करने को मजबूत कर रही है। ऐसी दशा में सरकार से बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती। इसके लिए जरूरी है कि उपरोक्त मांगों को मनवाने के लिए जनता, मजदूरों और किसानों को और ज्यादा संवेदनशील होने की, संगठन मजबूत करने और जुझारू होने की जरूरत है। कोई देवी देवता, भगवान या जन विरोधी नेता और जनविरोधी सरकार उनकी मदद करने नहीं जा रहे हैं। संगठित और जुझारू संघर्ष करके ही इन मांगों को पूरा कराया जा सकता है। यही आज की सबसे बड़ी जरूरत है। मजदूर किसान एकता जिंदाबाद और हम तो यहां पर यही कहेंगे,,,,, 

किसान आ मजदूर आ, वतन के नौजवान आ 

तुझे सितम की सरहदों के पार अब निकालना है 

यह राह पुरखतर है पर, तुझे इसी पर चलना है 

जमाने को बदलना है, जमाने को बदलना है।

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