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जो हरियाणा में हुआ वही महाराष्ट्र में भी

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श्रावण देवरे

मैं यह लेख मतदान से पहले लिखने वाला था। गत 18 नवंबर को ऐसा ही एक साक्षात्कार देने वाला था। मैंने अनेक साथियों से इन मुद्दों पर चर्चा भी की थी। लेकिन मैंने सार्वजनिक रूप से लिखना और साक्षात्कार देना बंद कर दिया और फैसला किया कि हमें चुनाव परिणाम आने के बाद ही इसके बारे में लिखना चाहिए। इसका कारण भी स्पष्ट करना जरूरी है।

दरअसल, 2014 के बाद से आम जनता की और मुख्य रूप से बुद्धिजीवियों की सहिष्णुता खत्म हो गई है। तथाकथित विद्वान विचारक इतने जातिवादी और अहंकारी हो गए हैं कि उनमें सच्चाई को हजम करने की शक्ति ही खत्म हो गई है। उनके सामने एकाध तथ्य रख दें तो उन्हें तुरंत प्रगतिशीलता की खट्टी डकार या धर्मनिरपेक्षता की उल्टी होने लगती है। इसलिए घटने वाली वस्तुस्थिति बताने पर तथ्य बताने वाले पर झूठे आरोप लगाकर उसे ट्रोल किया जाता है।

हरियाणा विधानसभा चुनाव 5 अक्टूबर, 2024 को हुआ और चुनाव खत्म होने के बाद सभी टीवी चैनलों पर विभिन्न शोध-सर्वेक्षण संगठनों के एग्जिट पोल जारी किए जाने लगे। नतीजों से पहले आए एग्जिट पोल में सभी टीवी चैनलों ने दावा किया कि कांग्रेस बहुमत के साथ सत्ता में आएगी। यह जोर देकर बताया गया। यह भी कहा गया कि भाजपा को 19 से 28 सीटें ही मिलेंगी। जबकि कांग्रेस को 44 से 62 सीटें मिलती दिखाई गईं। यानी कांग्रेस दो-तिहाई सीटों का भारी बहुमत लेकर सरकार बनाएगी। सरकार समर्थक मीडिया ने भी कांग्रेस के पक्ष में बहुत मजबूती से इन अनुमानों को सामने रखा। जबकि यह वास्तव लगभग असंभव सी बात थी।

मोदी समर्थक मीडिया के अलावा योगेंद्र यादव जैसे वैचारिक राजनीतिक नेता ने भी भविष्यवाणी की थी कि कांग्रेस भारी बहुमत के साथ सरकार बनाएगी। यादव पूर्व समाजवादी पृष्ठभूमि के होते हुए भी आम आदमी पार्टी प्रणीत ‘मोमबत्ती संप्रदाय’ के बहुत प्रमुख नेता रहे हैं। मोदी की भाषा में कहें तो वे “आंदोलनजीवी” हैं। खैर, यह माना जाता है कि यदि ऐसा कोई विचारवान व्यक्ति कहे तो यह सच ही होगा!

लेकिन 8 अक्टूबर, 2024 को जैसे ही हरियाणा विधानसभा के नतीजे घोषित हुए, इन सभी एग्जिट पोल करने वालों की ‘तांगें पलटी, घोड़े फरार’ वाली स्थिति हो गई। उसी दिन हमने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों (एग्जिट पोल) की घोषणा कर दी थी। हम इस बात पर जोर दे रहे थे कि जो हरियाणा में हुआ वही महाराष्ट्र में भी होगा। यह बात हम जोर देकर क्यों कह रहे थे? इसका कारण जाति-व्यवस्था की वस्तुस्थिति और ब्राह्मणशाही की चाणक्यगीीरी का अध्ययन है! हमने इस बारे में सार्वजनिक रूप से लिखने और बोलने से परहेज किया, क्योंकि जैसे ही मैंने ऐसी राय व्यक्त की होती, मेरे हित-मित्र मुझपर संदेह व्यक्त करते और मेरे हित शत्रु तो मुझे सीधे-सीधे भाजपा में ही धकेल दिए होते। जाति-पांति से ग्रस्त और अहंकारी विद्वानों के बीच सच बात बोलना भी बहुत बड़ा अपराध है।

चूंकि हरियाणा की जाति-व्यवस्था और महाराष्ट्र की जाति-व्यवस्था का समीकरण और इतिहास बहुत हद तक एक समान है, इसलिए हमने दावा किया कि जो हरियाणा में हुआ वही महाराष्ट्र में भी होगा। समानता क्या है? वर्ष 2013 में हरियाणा में कांग्रेस के जाट-जमींदार जाति के भूपेंद्र हुड्डा मुख्यमंत्री थे। इसी तरह यहां महाराष्ट्र में कांग्रेस के ही मुख्यमंत्री मराठा जाति के पृथ्वीराज चव्हाण थे। इन दोनों जमींदार-क्षत्रिय जातियों के मुख्यमंत्रियों ने अपनी-अपनी विधानसभाओं में अपनी-अपनी क्षत्रिय-जमींदार जातियों को ओबीसी-दर्जा देकर आरक्षण देने के अधिनियम को मंजूरी दी थी। इसका असर ओबीसी वर्ग पर बहुत ज्यादा पड़ा। ओबीसी परेशान था। इसका असर तत्काल हुए लोकसभा और विधानसभा चुनावों पर पड़ा। जाट जाति की राजनीति करने वाली कांग्रेस पार्टी को सत्ता से बाहर करने के लिए ओबीसी ने भाजपा को वोट दिया। भाजपा के सत्ता में आते ही जाट मुख्यमंत्री गया और गैर-जाट मुख्यमंत्री खट्टर सत्ता में आ गए।

यहां महाराष्ट्र में भी यही हुआ। मराठा आरक्षण के कारण 2014 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में ओबीसी फैक्टर निर्णायक बन गया। ओबीसी ने भाजपा को वोट दिया और मराठा मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण को सत्ता से बाहर कर दिया और कांग्रेस सरकार को भी सत्ता से बाहर कर दिया। ओबीसी वर्ग जाट जाति और मराठा जाति की एकछत्र राजनीति को समाप्त करने में सफल रहा। ब्राह्मण फडणवीस महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। तभी से यह कहावत लोकप्रिय हो गई कि ‘एक बार ब्राह्मण परवड़ेगा (चलेगा), लेकिन मराठा नहीं।’

वर्ष 2016 में, सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा में जाट आरक्षण को खारिज कर दिया और महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण को उच्च न्यायालय ने अमान्य कर दिया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा जाट आरक्षण को अमान्य करते ही जाटों ने ओबीसी विरोधी दंगे शुरू कर दिए। ओबीसी आरक्षण बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ने वाले सांसद राजकुमार सैनी पर चार गोलियां चलाई गईं। इस जानलेवा हमले में सांसद सैनी किसी तरह बच गए। लेकिन जाटों ने गांवों के ओबीसी के खिलाफ आगजनी, दंगे, बलात्कार जैसे सभी क्रूर और घृणित कार्य किए। इन दंगों ने जाटों के खिलाफ ओबीसी का ध्रुवीकरण तेज कर दिया और इसका सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को हुआ।

इधर महाराष्ट्र में उसी तरह ओबीसी मराठाओं के विरुद्ध गोलबंद हुआ तो भाजपा को फायदा ही होगा, यह सोचकर फड़णवीस ने साजिशें रचनी शुरू कर दी। 

वर्ष 2016-17 से उन्होंने सरकारी मदद उपलब्ध कराकर मराठों के लाखों के मोर्चे निकलवाना शुरू कर दिया। मराठा आरक्षण और एससी-एसटी अत्याचार अधिनियम को रद्द करने की मांग से महाराष्ट्र के ओबीसी और दलित भयभीत हुए। इन मोर्चों से मराठों के खिलाफ ओबीसी का ध्रुवीकरण तो हुआ लेकिन भाजपा को इसका फायदा नहीं मिल सका। इसके दो कारण रहे। पहला कारण यह था कि कांग्रेस सरकार द्वारा दिया गया मराठा आरक्षण हाईकोर्ट द्वारा खारिज करने के बाद मराठा आरक्षण का मुद्दा ठंडा पड़ गया था, जिसे भड़काने के प्रयासों के कारण ओबीसी भाजपा से नाराज थे। फिर जब 29 नवंबर 2018 को मुख्यमंत्री फड़णवीस ने मराठा आरक्षण विधेयक को मंजूर किया तब उन्होंने सोचा कि ओबीसी तो हमारी जेब में है ही, मराठा आरक्षण देने से मराठा वोट बैंक भी हमारी जेब में आ जाएगा। लेकिन हुआ ठीक उलटा।

जाति-व्यवस्था का सबसे ज्यादा गहराई से बारीक अध्ययन करनेवाले होशियार संघी फडणवीस के पास रहते हुए भी उन्हें अपनी गलती का फल भुगतना ही पड़ा। बालासाहेब आंबेडकर (प्रकाश अंबेडकर) ने पिछले दिनों एक टीवी साक्षात्कार में कहा कि जाट, पटेल, मराठा आदि तथाकथित क्षत्रिय जातियों की जाति-विशेषताओं में से एक यह है कि “एक मराठा व्यक्ति कभी भी गलती से भी किसी गैर-मराठा व्यक्ति या गैर-मराठा पार्टी को वोट नहीं देता।” 

फिर 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिलनेवाला ओबीसी का वोट घट गया और मराठा वोट मिला ही नहीं। नतीजा यह हुआ कि फड़णवीस का मुख्यमंत्री पद चला गया और सरकार भी चली गई।

क्रमश: जारी

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