खुले आसमां में उड़ना चाहती हूं
कुमारी निशा
लमचूला, उत्तराखंड
लगा दो मुझ पर जितनी भी पाबंदियां,
नहीं रहूंगी मैं किसी पिंजरे में बंध कर,
मैं हूँ एक लड़की, मेरे भी हैं अरमान,
मैं भी उड़ना चाहूं खुले आसमान,
हर चीज़ में घुल जाना चाहती हूं,
हर मुसीबत को पार करना चाहती हूं,
क्यों रह जाती हूं मैं दुनिया में पीछे,
क्यों मैं ये समझ नहीं पाती हूं।।
हम नादान से परिंदे हैं
आंचल
कपकोट, उत्तराखंड
हम नादान से परिंदे हैं,
क्यों हमें करते हो परेशान?
यूं तो हम लड़कियां हैं,
क्यों हमें रुलाते हो?
यूं ही हमेशा सताते हो?
क्या तुम ये भूल जाते हो?
घर में तुम्हारी भी बहन है,
कोई उसे भी करेगा परेशान,
फिर क्या बीतेगी तुम पर?
सोच कर हो जाओगे हैरान,
फिर क्यों करते हो हमें परेशान?
बगिया की फूलों की तरह हैं हम,
क्यों हमारे पैरों में कांटे चुभाते हो,
नादान परिंदों की तरह हैं हम,
फिर क्यों हमें सताते हो॥
देखो ये दिन कितने हैं ख़ास
तानिया आर्य
चोरसौ, उत्तराखंड
देखो लड़की का जन्म कितना है खास?
फिर लड़की होना क्यों है अभिशाप?
नौ दिनों तक उसे पूजा है जाता,
फिर किस कदर उसे नोचा जाता,
कैसे अकेले वह जाए कहीं,
अब तो सुरक्षित रही ना वो कहीं,
हर रूप में हो तुम ही तुम,
एक लड़की का डर क्या जानो तुम,
लड़कियां तुम कमज़ोर नहीं हो,
डरो मत, तुम्हारे लिए हर दिन है ख़ास,
अब लड़की होना नहीं होगा अभिशाप?
युवाओं पर नशे का बढ़ता प्रभाव
सीमा मेहता
पोथिंग, उत्तराखंड
मत कर नशा ऐ युवा पीढ़ी,
तुम मिट्टी में मिल रहे हो,
नशे में चूर हो कर तुम,
ख़ुद की दुनिया जला रहे हो,
समझ बैठे हो जिसे तुम अमृत,
हकीकत में है वो मीठा ज़हर,
नशे की तुम्हें पड़ी ऐसी आदत,
तुमने जीने का अंदाज़ बदल लिया,
देखो आज समाज पर नशे का ऐसा प्रहार,
बच्चा बच्चा कर रहा है इसका आहार,
दिखता है अब चारों तरफ़ इसका प्रभाव,
अब जैसे मिट रहे हैं घर परिवार,
नशा मुक्त होगा जब हर इंसान,
तब होगा सभ्य समाज का निर्माण॥
चरखा फीचर्स
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