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 *मधु लिमये:स्वतंत्रता लोकतंत्र व समाजवाद के योद्धा*

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  *पुण्य तिथि ( 8 जनवरी)* 

      *प्रो. राजकुमार जैन* 

स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा समाजवादी चिन्तक मधु लिमये का जन्म  1 मई 1922 को पूना में हुआ। पूना के ‘फर्ग्युसन कॉलेज’ में पढ़ाई करते समय ही वे समाजवादी विचारों में दीक्षित होकर कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के झंडे के नीचे कार्य करने लगे तथा शीघ्र ही सत्रह वर्ष की अल्प आयु में पार्टी की स्थानीय इकाई के मंत्री बन गये

सन् 1939 के सितम्बर में द्वितीय महायुद्ध छिड़ गया। युद्ध विरोधी आन्दोलन की अगुवाई समाजवादियों ने की थी। इसी सिलसिले में जयप्रकाश नारायण, यूसुफ मेहरअली, डॉ. राममनोहर लोहिया पूना आये। यहीं पर मधु जी का परिचय इन महान् समाजवादियों से हुआ। कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही अठारह वर्ष की आयु में ही वे स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े। इन्होंने कहा, यह विश्वयुद्ध हमारा नहीं है, अंग्रेजों ने हमें जबर्दस्ती झोंक दिया है, हम युद्ध के लिये न एक पाई देंगे, न एक सिपाही । युद्ध विरोधी भाषण देने के कारण इन्हें एक साल की सश्रम कारावास की सजा सुना कर ‘धूलिया’ की जेल में बन्द कर दिया गया।

1942 में गांधीजी द्वारा ‘अंग्रेजों भारते छोड़ो’, ‘करो या मरो’ का उद्घोष किया गया। इक्कीस वर्ष के मधु लिमये पुनः 1943 में आजादी की इस जंग में ‘डिफेन्स ऑफ इंडिया’ रूल में गिरफ्तार कर लिये गये।

दो साल बाद 1945 में युद्ध समाप्ति के बाद ही इनकी रिहाई हुई। देश आजाद हो गया था, परन्त गोवा अभी भी पुर्तगालियों के अधीन था। मधु लिमये ने गोवा की आजादी के लिये पुनः संघर्ष किया। पुर्तगाली मिलिट्री शासन ने इन्हें बारह वर्ष की सजा देकर कैद कर लिया।

मधुजी ने अपना लड़कपन आजादी पाने के लिये लगा दिया। आजादी के बाद का उनका सम्पूर्ण जीवन भारत के गरीबों, मेहनतकशों, दीन-दुखियों खेतिहर मजदूरों, दलितों-पिछडों तथा अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करने में खपा दिया ।

जब भारत को आजादी मिली तब लिमये पच्चीस साल के थे । उनकी बुद्धि मत्ता त्याग, संघर्ष के कारण जयप्रकाश नारायण, डॉ. राममनोहर लोहिया इनकों अपना विश्वासपात्र सहयोगी मानने लगे थे। दोनों नेताओं ने उन पर विविध जिम्मेदारियाँ डाली। पच्चीस वर्ष के लिमये को1947 में ‘एडमबर्ग’ में होने वाले ‘सोशलिस्ट इन्टरनेशनल’ के सम्मेलन में भारत के सोशलिस्ट आन्दोलन का प्रतिनिधि बना कर भेजा, तत्पश्चात् एशियाई सोशलिस्ट ब्यूरो के सेक्रेटरी के रूप में रंगून भेजा गया । 1949 में पटना सम्मेलन में उन्हें पार्टी का संयुक्त मंत्री तथा केन्द्रीय कार्यालय का इंचार्ज बनाया गया । समाजवादी आन्दोलन, पार्टी तथा बाद के वर्षों में जनता पार्टी, लोकदल, इत्यादी में पार्टी के विभिन्न पदों पर ये रहे ।

आप कल्पना कीजिये कि मूलरूप से (महाराष्ट्र निवासी) होने के बावजूद ये चार बार बिहार से सांसद चुने गये। क्षेत्रीयता, जातिवाद इनके व्यक्तित्व के सामने बौने बने रहे। भारत के संसदीय इतिहास में मधु जी की भूमिका अविस्मरणीय रहेगी।

श्री अटल बिहारी वाजपेई ने 13 फरवरी 1995  को लोकसभा में मधुजी को श्रद्धान्जली देते हुए कहा,  ‘श्री मधु लिमये के साथ मुझे इस सदन में, सदन के बाहर राजनैतिक क्षेत्र में काम करने का बहुत मौका मिला था। वह दोनों साम्राज्यवादों से लड़े। अंग्रेजी साम्राज्यवाद से भी और पुर्तगाली साम्राज्यवाद से भी। जेल की लंबी यातना सही। उसी में उन्होंने अध्ययन करने का और विश्लेषण करने का गुण अर्जित किया। कुछ आदर्शो के प्रति उनकी आस्था थी। कुछ विचारों के लिए वह प्रतिवद्ध थे। प्रखर चिंतक थे। कठोर स्पष्टवादी थे। ऐसे स्पष्टवादी, कि कभी-कभी उनकी स्पष्टवादिता विवादों को खड़ा कर देती थी। मगर जो बात वे कहना चाहते थे, वह कह देते थे। अध्यक्ष महोदय, मुझे याद है कि संसद में कोई संविधान की पेचीदा समस्या हो, कोई नियमों से उलझा हुआ सवाल हो, मधु लिमये जब उधर से प्रवेश करते थे, तो अपने साथ संदर्भ ग्रंथो का एक पूरा पहाड़ ले कर आते थे, जिस पहाड़ को देखने मात्र से लगता था कि आज दो-दो हाथ होने वाले है और सदन को तो, कठिनाई होती ही थी, कभी-कभी अध्यक्ष महोदय भी अपने लिए मुश्किल पाते थे। लेकिन वह अध्ययन कर के आते थे। अपने पक्ष को तर्कसम्मत ढंग से प्रस्तुत करते थे। अब तो इस तरह का अध्ययन दुर्लभ हो गया है। लेकिन उन्होंने चिंतन और आचरण दोनों का मेल कर के दिखाया।

प्रसिद्ध कम्युनिस्ट नेता एवं विद्वान संसद सदस्य हिरेन्द्र मुखर्जी ने मधुजी के संदर्भ में लिखा ।

“In spite of no previous experience of legislative work, Limaye soon showed his mettle and won early recognition as a promising newcomer, “Madhu Limaye”, “impressed as soon as he entered the Lok Sabha, with his persistent and powerful and documented offensive against big money goings-on”.

तीसरी लोकसभा में लिमये ने तहलका मचा दिया।

Mail, a British paper, described him as “Micheal Foot of Indian Parliament scarely ever off his feet,” and the Financial Times called him “the new crusader against corruption.” He was often termed as skilled angry young parliamentarian.

इंडियन एक्सप्रेस एवं हिन्दुस्तान टाइम्स के पूर्व सम्पादक तथा प्रधानमंत्री के सूचना सलाहकार रहे श्री एच. के. दुआ का कहना है-

मधु लिमये में अनेक विशिष्ट गुण थे। मैंने उनको पार्लियामेंट में काम करते देखा है। हालांकि उनकी पार्टी के सदस्यों की संख्या ज्यादा नही थी, फिर भी तत्कालीन सरकार को वे नियंत्रण में रखते थे। सदन में मंत्री सबसे ज्यादा मधु लिमये से ही सतर्क रहते थे। वे राष्ट्रीय मुद्दों के प्रति सजग, सतर्क रहते हुए अपने भाषणों के लिए लाइब्रेरी में बेहद मेहनत करते थे। वे जब भी कोई विषय चुनते थे, तो उस पर इतनी रिसर्च करके • आते थे कि वे अकेले ही पूरी पार्लियामेंट को झकझोर देते थे। वे अपनी तीक्षण बुद्धि और विलक्षण प्रतिभा के सहारे सदन में जो सफलता पाते थे, वह दुनिया के किसी भी सांसद के लिए ईर्ष्या की बात होती थी। श्री लिमये ने इन गुणों का बाद में पत्रकारिता के क्षेत्र में भी विस्तार किया।

The Mail of Madras once wrote: “Whenever he gets to speak, the entire Press gallery strives to catch every word. His ammunition is inexhaustible and his grasp of facts uncanny. Hard work and perseverance, all the sweating in the library, an incisive mined-all these go into making a virile racket-buster whose objective in fact, is not racket busting. By all account this is a Limaye in session.” Because of Limaye, many established procedures were questioned and some were changed.

आजकल भ्रष्टाचार की बड़ी चर्चा है। इलेक्ट्रोनिक और प्रिंट मीडिया के आधुनिक उपकरणों तथा आरटीआई के माध्यम से जल्द ही तथ्यों को पकड़ा जा सकता है तथा इसका श्रेय भी उतनी तीव्रता से मिल जाता है। परन्तु आप कल्पना कीजिये कि जब सारे रास्ते बन्द थे, गोपनीय थे, उस समय मधु लिमये ने अकेले अपने दम पर भारतीय संसद में भ्रष्टाचार के विरूद्ध जो जेहाद छेड़ा था वह कल्पना से परे है।

स्टील पार्टर डील और अमीचंद प्यारेलाल कांड (सी० सुब्रहण्यम्) कृत्रिम धागा तथा खादी भंडार के दियासलाई की चोरी का कांड (मनुभाई शाह) जयंती शिपिंग-धर्मतेजा, एपीजे शिपिंग (सदोवा पाटील) विदेशी मुद्रा की चोरी (वित्त मंत्री सचिन चौधरी), छोटी सादड़ी सोना कांड (राजस्थान के मुख्यमंत्री- मोहन लाल सुखाड़िया) ऐसे कई काले कारनामों को मधु जी ने संसद के सामने रखा। चौथी और पांचवी लोकसभा में क्रांति देसाई का होड़साल कांड पांडिचेरी लाइसेंस कांड, मारूति कांड, आदि बाते काफी मशहूर हुई। सरकारी गलत कामों में या भ्रष्टाचार के मामले में वे किसी को बख्शते नहीं थे। आज उनके बस्ते से कौन-सी चीज बाहर निकलनी है, इस डर से सब मंत्री तथा वरिष्ठ अधिकारी डरते थे । परंतु लोकसभा में शेर की तरह दहाड़ने वाले मधु लिमये सेंट्रल हॉल में अपने दोस्तों के साथ ही नही बल्कि विरोधी लोगों के साथ ही कॉफी पीते हुए बाहर निकलते थे।

मराठी, संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी भाषा के उद्भट विद्वान मधु लिमये अपनी सिद्धांत निष्ठा को अपने जीवन में पूर्णतः निवाहते थे। अंग्रेजी के वर्चस्व को तोड़ने के लिये वे सदैव संसद में हिन्दी में बोलते थे। कई अंग्रेजी पत्रकारों ने उस समय लिखा कि अगर श्री लिमये अंग्रेजी में बोलें तो उन्हें बड़ी पब्लिसिटी मिलेगी। 8 अप्रेल 1966 को मद्रास के हिन्दू ने लिखा ।

“Mr. Limaye always speaks in Hindi. As one who raises intricate and interesting legal and constitutional points, he would get better coverage in the Press if he explains them in English instead of in Hindi.”

अपनी एकमात्र सन्तान अनिरूद्ध को मराठी माध्यम वाले स्कूल मे पढ़ने के लिये उन्होंने भेजा। दो मील पैदन चल कर बालक स्कूल पढ़नेजाता था।

केन्द्र में गैर कांग्रेसी सरकार बनने पर कई बार मधुजी से मंत्री बनने का आग्रह किया गया, परन्तु उन्होंने स्वीकार नही किया। बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री श्री कर्पूरी ठाकुर तथा भूतपूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह ने उनसे 1980-82 में राज्यसभा का सदस्य बनने का अनुरोध किया परन्तु मधुजी ने मना कर दिया।

1975 में जब आपातकाल लगाया गया तो उन्हें भी ‘मीसा’ में बन्द कर जेल में भेज दिया गया। वे संसद सदस्य थे। 1976 में जब लोकसभा का कार्यकाल एक वर्ष के लिये बढ़ाया गया तो उन्होंने जेल से ही संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। स्पीकर को लिखे पत्र में मधुजी ने लिखा कि समय बढ़ाना असंवैधानिक है, मैं इसे स्वीकार नहीं कर सकता। साथी शरद यादव ने भी उनका अनुसरण करते हुए संसद से इस्तीफा भेज दिया ।

स्वतंत्रता सेनानी संसद के चार बार सदस्य रहे मधु लिमये ने किसी प्रकार की पेंशन, भत्ता ताम्रपत्र अथवा अन्य कोई लाभ नही लिया ।

मधु लिमये की विद्वत्ता एवं संघर्ष मात्र संसद तक ही सीमित नहीं था। नागरिक अधिकारों के लिये उन्होंने सड़क से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक लड़ाई लड़ी। श्री लिमये तेईस बार गिरफ्तार किये गये। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपने और अपने साथियों तथा आम जन के लिये अनेक बार बहस की। उनके अकाट्य तर्कों को सुनकर अदालते उनके पक्ष में निर्णय देती थी। नवम्बर 1968 में बिहार में सिविल नाफर्मानी में मधु जी गिरफ्तार हो गये। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी। भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं प्रसिद्ध वकील एम.सी. छागला सरकार की ओर से पेश हुए। मधु जी ने ६० मिनट तक अदालत में बहस की छागला साहब के तर्क बहुत कमजोर थे। न्यायाधिश ग्रोवर ने छागला को लताड़ लगाते हुए कहा

“You have no legs to stand on. You have failed to answer Madhu Limaye’s case”. Limaye was released unconditionally by the Court.

छागला साहब ने बाद में अपनी आत्म कथा में मधु जी की तारीफ करते हुए लिखा

“I remember.. Madhu Limaye, one of the most sincere and hard working of the politicians. I had occasion later to cross swords with him in the Supreme Court. He had been arrested in Bihar in the course of some agitation, and he was challenging his arrest. I was briefed on behalf of the Bihar State, I admired the skill and acumen with which he argued his case, and his profound knowledge of criminal law and practice, which can only be attributed to the hard work he had put in studying his case. I was glad that he won”.

मधु जी बहुआयामी व्यक्तिव के धनी थे। राजनीति में डूबे रहने के बावजूद मधु जी को संगीत, कला, साहित्य, नाटक इत्यादि में खासी रूचि थी। उस समय के प्रख्यात लेखकों, पत्रकारों, संगीतज्ञों, कलाकारों का जमघट इनके घर पर लगा रहता था।  प्रसिद्ध पत्रकार कुलदीप नैयर ने उनके न रहने पर लिखा

पूरे देश को ऐसा लगा कि मानो उनके जाने से एक ऐसा ‘गाइड चला गया जिससे बात करने से, सलाह लेने से सही दिशा प्राप्त की जा सकती थी। उनसे बात करके जो एक ‘गाइडेंस’ मिलती थी या एक ऐसी लाइन मिलती थी जिसमें ईमानदारी, वास्तविकता या एक विचारधार का समावेश हुआ करता था, जो अब नही मिलेगा। क्योंकि अब उनके जैसा कोई और निस्वार्थ, ईमानदार, सैद्धांतिक और बौद्धिक व्यक्ति रहा नहीं जो दूसरों को वही वैचारिक भोजन दे सके, जो वो दिया करते थे।

प्रख्यात नृत्यांगना सोनल मानसिंह मधु जी की शास्त्रीय संगीत की गहरी जानकारी के सन्दर्भ में लिखती है।

मधु लिमये से मिलने के बाद उनके अंदर के जिन मधु जी को मैंने जाना वे मधु जी बहुत गंभीर, शालीन, गरिमापूर्ण और बेहद सुलझे हुए व्यक्ति थे। उनका हृदय बेहद विशाल था और उनकी रूचियां बहुत विस्तृत थीं। ऐसा कोई विषय नहीं था जिसमें उनकी रूचि न रही हो। ‘महाभारत पर तो उनका अधिकार-सा था। संस्कृत भाषा और भारतीय बोलियों के वे जानकार थे। संगीत का भी उन्हें बड़ा शौक था। वे तुरंत बता दिया करते थे कि कौन सा राग बज रहा है। जरा सा स्वर गलत होते ही वे तुरंत पकड़ लिया करते थे।

भारत के प्रमुख साहित्यकार एवं पत्रकार धर्मयुग के भूतपूर्व संपादक डॉ. धर्मवीर भारती के शब्दों में

दुबले-पतले, कृशकाय लेकिन तेजस्वी मधु लिमये सबसे अगली पंक्ति के साहसपूर्ण चिन्तक योद्धा थे। कभी भी न थकने वाले, कभी भी समझौता न करने वाले, बड़े से बड़े झूठ के खिलाफ तन कर सच बोलने की अदम्य निष्ठा वाले, संकटों के भंवरजाल में बेहद बेचैन लेकिन अन्दर कहीं बेहद धीर गम्भीर

उनकी मेघाशक्ति भी कितनी विलक्षण थी कि सोच कर आश्चर्य होता है। अगर कभी संस्कृति या इतिहास पर बात करते थे तो इतनी गहरी बारीकियों में जाते थे, घटनाएं, वर्ष, विचारधाराएं जैसे अविरल प्रवाह में बहती चली आती थीं, उनकी बातों में। कब पढ़ा होगा उन्होंने यह सब? कैसे यह सब उन्हें मानो कंठस्थ है? और सबसे बढ़ कर यह कि घटना चक्र, विचारधाराओं और सामाजिक स्थितियों का उनका अपना मौलिक विश्लेषण-कहीं कोई किताबीपन नही, कहीं कोई गतानुगतिक अनुकरण नहीं, कोई बासीपन नहीं, कोई तोतारटन्त नहीं, सबकुद ताजा, और खरा ।  और फिर कभी किसी को मौका मिला हो उनसे साहित्य, कला और संगीत पर बात करने का तो उसे लगा होगा कि यह व्यक्ति तो ऊपर से नीचे तक रस और लय का अद्भुत पारखी है। कितने आयाम थे उनके अनोखे व्यक्तित्व के । सोच कर श्रद्धा भी होती है और आश्चर्य भी ।

सक्रिय राजनीति से सन्यास लेकर मधुजी ने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लिखना शुरू किया। यही उनकी आजीविका का साधन था । उन्होंने हिन्दी, अंग्रेजी मराठी में अनेको पुस्तकें लिखी। वे मात्र राजनीतिज्ञ ही नहीं थे। उनका आन्तरिक आनन्द कुछ और ही था। उन्होंने अपने बारे में लिखा था-

‘शेक्सपीयर की सभी रचनाओं, महाभारत और ग्रीक दुःखान्त रचनाओं के साथ मुझे एकान्त आजीवन कारावास भुगतने में खुशी होगी और अगर जीवन के अन्त तक मुझे यह अवसर नहीं मिला तो सन्त ज्ञानेश्वर की रचनाओं को पढ़ने की मेरी प्यास अतृप्त रहेगी ।’

राजनीति, कला, दर्शन, साहित्य, इतिहास, संगीत आदि सब में उनकी रूचि थी और इससे उनका जीवन विविध रंगों का सुन्दर समन्वय बन गया था। मधुजी के जीवन से प्रेरणा लेकर उनके अनुयायियों-साथियों ने राजनीति के खुश्क क्षेत्र में रहते हुए भी अन्य विधाओं में रूचि लेना प्रारंभ किय। उन्हीं की प्रेरणा से ग्वालियर में आईटीएम युनिवर्सिटी की ओर से प्रतिवर्ष तीन दिवसीय शास्त्रीय संगीत सम्मेलन आयोजित होता है। विश्वविद्यालय के सभागार का नामकरण ‘मधुलिमये स्मृति सभागार’ रखा गया है जिसका उद्घाटन प्रसिद्ध कम्यूनिस्ट नेता मरहूम ए. बी. वर्धन द्वारा किया गया था। उस अवसर पर बोलते हुए श्री ए. बी. वर्धन ने मधुलिमये की प्रशंसा करते हुए विशेष रूप से उनकी पुस्तक ‘सोशलिस्ट कम्यूनिस्ट इन्टरैक्शन’ को भारत के समाजवादी एवं साम्यवादी आंदोलन के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज माना था।

सारे सत्ता-प्रतिष्ठानों को अपनी अंगुली पर नचाने वाले, महात्मा गांधी, डॉ. राममनोहर लोहिया के अनुयायी मधुलिमये ने अपना सारा जीवन एक साधारण नागरिक की तरह जिया। उनके घर पर कूलर, एयरकंडीश्नर, फ्रिज, टीवी इत्यादि नहीं था। घर पर आने वाले मेहमानों को मिट्टी के घड़े के पानी के साथ अपने हाथ से चाय कॉफी पिलाकर, खिचड़ी खिला कर स्वागत करते थे। अनेक जन-संघर्षों में जेल यातनाओं, पुलिस की मार सहकर उनका शरीर अस्वस्थ जरूर रहता था परन्तु मधुजी ने त्याग और मितव्ययिता की अपनी जिन्दगी को गर्व और सहजता से लिया।

पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित ने बहुत ही सारगर्भित रूप से अपनी आत्मकथा में लिखा है

“I had know him in Parliament over the year when he was a very vocal member of the Opposition. He is a man of integrity, and no matter which side he is on I cannot imagine his doing a mean or unworthy act. He would only act on a deep conviction and not for any personal benefit”.

समाजवादी आन्दोलन के इस पुरोधा का 8 जनवरी 1995 में निधन हो गया। मधु जी के अनन्य निकटतम लाड़ली मोहन निगम के एक वाक्य में ही मधु जी के जीवन का सार इस प्रकार है-

‘उन्होंने अपने जीवन में न्यूनतम लिया अधिकतम दिया और श्रेष्ठतम जिया ।’

मधु लिमये जी की ग्रंथ-संपदा

1. Tito’s revolt against Stalin        (1949)

2. Communist Party: Facts & Fiction     (1951)

3. Barren Path     (1959)

4. Four Pillar State     (1973)

5. The New Constitutional Amendments    (1977)

6. Politics After Freedom

7. Problems of India’s Foreign Policy    (1984)

8. The Age of Hope     (1986)

9. The Prime Movers    (1985)

10. Contemporary Indian Politics    (1987)

11. Indian National Movement    (1989)

12. Cabinet Government in India     (1989)

13. Indian Polity in Transition     (1990)

14. Socialist-Communist Interaction in India    (1990)

15. Decline of a Political System

16. Birth of Non-Congressism     (1988)

17. Musings on Current Problems and Past Events     (1988)

18. Mahatma Gandhi and Jawaharlal Nehru :

         A Historic Partnership Vol 1                           (1989)

19. Mahatma Gandhi and Jawaharlal Nehru :

              A Historic Partnership Vol II                     (1989)

20. Mahatama Gandhi and Jawaharlal Nehru :

             A Historic Partnership Vol III                     (1991)

21. Mahatma Gandhi and Jawaharlal Nehru :

             A Historic Partnership Vol IV                    (1991)

22. A Self Liquidating scheme for Reservation

23. Supreme Court Decision on Backward Class Reservation

24. President Vs Prime Minister

25. India and the World

26. Evolution of a Socialist Policy27.  Janata Party Experiment Part 1    (1991)

28. Janata Party Experiment Part II   (1992)

29. Parliament] Judiciary and Parties

        (An Electro Cardiogram of Indian Politics)

30. Religious Bigotry

31. Limits of Authority

          (Political Controversies & Religious

            Conflict in contemporary India)

32. August Struggle

       (An Appraisal of Quit India Movement)

33. Manu, Gandhi and Ambedkar and other essays.

34. Last Writings

35. Goa Liberation Movement & Madhu Limaye        (1996)36.  Galaxy of the Indian Socialist Leaders     (2001)

 37. Madhu Limaye on the Famous Personalities     (2002)

हिंदी :

1. चौखम्भा राज एक रूपरेखा

2. आपातकाल : संवैधानिक अधिनायकवाद का प्रशस्त पथ   (1975)

3. राजनीति का नया मोड़    (1981)

4. मार्क्सवाद और गांधीवाद   (1981)

5. समस्याएं और विकल्प   (1982)

6. स्वतंत्रता आंदोलन की विचारधारा   (1983)

7. संक्रमणकालीन राजनीति         (1986)

8. धर्म और राजनीति

9. राजनीति का शतरंज – वी.पी. से पी.वी. तक

10. डॉ. आंबेडकर-एक चिंतन

11. महात्मा गांधी राष्ट्रपिता क्यों कहलाते हैं ?

12. कम्युनिस्ट पार्टी कथनी और करनी 13. अयोध्या-वोट बैंक की विध्वंसक राजनीति, 14. अगस्त क्रांति का बहुआयामी परिदृश्य 15. सार्वजनिक जीवन में नैतिकता का लोप 16. भारतीय राजनीति का संकट

17. भारतीय राजनीति का अंतर्विरोध

18. सरदार पटेल-सुव्यवस्थित राजनीति के प्रणेता

 19. राष्ट्रपति बनाम प्रधानमंत्री

20. आत्मकथा

21. आरक्षण की नीति

मराठी :

1. त्रिमंत्री योजना   (1946)

2. कम्युनिस्ट जाहिरनाम्याची शंभर वर्षे    (1948)

3. पक्षांतर बंदी ? नव्हे अनियंत्रित नेतेशाहीची नांदी   (1985)

4. स्वातंत्र्य चळवळीची विचारधारा    (1985)

5. डॉ. आंबेडकर – एक चिंतन

6. कम्युनिस्ट पक्षाचे अंतरंग

7. समाजवाद- काल, आज व उद्या

8. संक्रमणकालीन राजनीति

9. आत्मकथा

10. पेच राजकारणातले

11. सौहार्द

12. राष्ट्रपिता

13. चौखंभा राज्य- एक रूपरेखा

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