प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 10 साल बाद एक बार फिर से अपनी रि-ब्रांडिंग की तैयारी में जुटे हुए हैं। पिछले दिनों उन्होंने ज़ेरोधा ब्रोकिंग फर्म के सह-संस्थापक निखिल कामथ के साथ 2 घंटे से भी ज्यादा लंबा इंटरव्यू दिया है। निखिल कामथ को भारत का जार्ज सोरोस माना जाता है, जबकि भाजपा का आईटी सेल जार्ज सोरोस जैसे लोगों को आजकल षड्यंत्रकारी के तौर पर मानने लगे हैं।
2014 में कांग्रेस की बुरी गत के पीछे डॉलर के मुकाबले कमजोर रुपया भी एक बड़ी वजह थी। ऐसे योग्य और ताकतवर प्रधानमंत्री की रुपया आज डॉलर के मुकाबले 86.19 रुपये तक लुढ़क चुका है। आर्थिक मामलों के जानकार मानते हैं कि रुपये की यह गिरावट अभी थमने वाली नहीं है, और यह 90 यहां तक कि 100 रुपये तक जा सकता है।
2014 में जब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार थी, उस समय डॉलर के मुकाबले रुपये का विनिमय मूल्य 62.33 रुपये था। नरेंद्र मोदी के पक्ष में दावा किया जा रहा था कि यदि भाजपा की केंद्र में सरकार बनती है तो रुपये की प्रतिष्ठा को वापस लाया जाएगा, और 40 रुपये में 1 डॉलर का विनिमय मूल्य स्थापित कर दिया जायेगा।
आज 11 वर्ष बाद स्थिति यह है कि जिस रुपये को आरबीआई ने अरबों डॉलर बाजार में डालकर पिछले 2 वर्षों से 81-82 के बीच में रोका हुआ था, वह अब फ्री फॉल की स्थिति में आ चुका है। हर रोज 10-20 पैसे की गिरावट का दौर जारी है, जिसके रुकने की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है।
आजकल सोशल मीडिया में तबके गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी का भाषण जमकर शेयर किया जा रहा है, जिसमें उनका कहना था, “जिस प्रकार से डॉलर मजबूत होता जा रहा है, रुपया कमजोर होता जा रहा है। विश्व व्यापार में भारत टिक नहीं पाएगा। हमारे व्यापारी जो माल बाहर भेजते हैं, और लाते हैं। इस बोझ को सह नहीं पाएंगे। भारत सरकार जो चीजें बाहर से लाती है और भेजती है, उसको सहना मुश्किल हो जायेगा, और दिल्ली की सरकार जवाब नहीं दे रही है।”
नरेंद्र मोदी को केंद्र में पीएम के तौर पर स्थापित करने के लिए सिर्फ मुंबई और गुजरात की कॉर्पोरेट लॉबी ही एकजुट नहीं हुई थी, बल्कि देश के तमाम गॉडमैन भी रिंग में कूद पड़े थे। इसमें सबसे ज्यादा चर्चित नाम थे बाबा रामदेव और श्री श्री रविशंकर। 21 मार्च 2014 को गुरु श्री श्री रवि रविशंकर ने ट्विटर पर यह दावा कर पूरे देश में सनसनी मचा दी थी कि “यह जानकर सुखद अहसास हो रहा है कि मोदी के सत्ता में आने पर रुपया 40 रुपये प्रति डॉलर तक मजबूत हो जाएगा।”
इन तथाकथित गॉडमैन को आजकल शायद ही कभी राजनीतिक बयानबाजी करते देखा जा सकता है। बाबा रामदेव अब लाला रामदेव हो चुके हैं, जिनकी कंपनियां अब मुंबई के दलाल पथ पर ट्रेड करती पाई जाती हैं। श्री श्री ने भी मोदी के राज के शुरुआती वर्षों में भारतीय मध्य वर्ग के बीच में शोहरत बटोरी और कुछ उत्पाद लांच किये। आज इन दोनों को भारतीय रुपये की गिरती लाज से कोई सरोकार क्यों नहीं है? उनकी भविष्यवाणी यदि इतनी बेहूदा थी तो क्यों नहीं उन्हें अपने धार्मिक गुरु होने पर शर्म महसूस नहीं हो रही है? उन्हें देश से माफ़ी मांगनी चाहिए, क्योंकि करोड़ों धार्मिक लोगों ने उनकी बातों पर भरोसा कर लिया था।
रुपये की गिरती साख को रोकने के लिए 2024 में आरबीआई ने तमाम कोशिशें कीं। इसके लिए आरबीआई ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार से बड़ी संख्या में डॉलर को बाजार में डालना शुरू कर दिया था। इसके परिणामस्वरूप कुछ महीनों तक तो डॉलर के मुकाबले रुपये को 83 के मनोवैज्ञानिक स्तर तक पहुँचने से रोकने में बैंक सफल रहा। लेकिन इसका असर अब विदेशी मुद्रा भंडार में रिकॉर्ड गिरावट के रूप में देखने को मिल रहा है।
आरबीआई के 3 जनवरी के आंकड़े बताते हैं कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 634.59 बिलियन डॉलर के साथ 10 माह के निचले स्तर पर आ चुका है। विदेशी निवेशक भी इस प्रवृति से चिंतित थे कि रुपये को स्थिर बनाने की कोशिश में भारतीय मुद्रा के वास्तविक मूल्य को छिपाने की कोशिश हो रही है। नतीजतन पिछले कुछ माह से विदेशी निवेश रिकॉर्ड स्तर पर देश से बाहर जा रहा है।
नोमुरा की रिपोर्ट बताती है कि भारत के केंद्रीय बैंक ने अक्टूबर 2024 से विदेशी मुद्रा हस्तक्षेप के प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिले हैं। कमजोर विकास, बैंकिंग सिस्टम में तरलता का अभाव, पूंजी निकास और संभवतः आयातकों के द्वारा डॉलर की जमाखोरी स्थिति को गंभीर बना रही है।
भारतीय शेयर बाजार में गिरावट का रुख बना हुआ है। 13 दिसंबर 2024 को बीएसई सेंसेक्स 82,133 तक पहुंच चुका था, वह 10 जनवरी 2025 में 77,379 पर बंद होकर देश के करोड़ों छोटे निवेशकों को बड़ी तेजी से तबाह करता जा रहा है। पिछले 2-3 वर्षों के दौरान दसियों करोड़ नए डीमेट एकाउंट्स खुले हैं, जिसमें सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे पिछड़े राज्यों से नये निवेशक उभरे थे।
इन नए निवेशकों को बाजार में तेजी से मुनाफा कमाने का लालच दिया गया, जिन्होंने इंट्रा डे ट्रेडिंग, सिप और म्यूच्यूअल फंड्स में हर महीने निवेश कर विदेशी संस्थागत निवेशकों के देश से पूंजी निकासी से होने वाली मंदी को अभी तक रोककर रखा हुआ था। इसी अंधड़ में अमेरिकी अदालत में अडानी समूह के खिलाफ मामले के फलस्वरूप जो भारी गिरावट आ रही थी, उसे भी काफी हद तक रोकने में सफलता मिली।
लेकिन अब जबकि सारे उपाय विफल साबित हो रहे हैं, तो ऐसा लगता है कि बाजार में अपनी गाढ़ी कमाई या कर्ज लेकर भारी मुनाफा कमाने की आस में करोड़ों नए निवेशक उतरे थे, उन्हें ही इसका बोझ सहना होगा।
लेकिन सिर्फ रुपया, सेंसेक्स, भारतीय पासपोर्ट और भारत का विदेशी मुद्रा भंडार ही गिरता तो कोई बात थी। देश में आये दिन सरकारी ठेके पर बन रह पुल, फ्लाईओवर और अब रेलवे स्टेशन के भवन भी भरभराकर गिर रहे हैं। आज शनिवार को उत्तर प्रदेश के कन्नौज रेलवे स्टेशन पर निर्माणाधीन छत का स्लैब गिरने की खबर है। ताजा रिपोर्ट के अनुसार अभी तक कम से कम 23 लोगों को बचा लिया गया है, लेकिन अभी भी करीब 25 लोगों के फंसे होने की आशंका है।
उधर छत्तीसगढ़ के रायपुर से भी एक बहुमंजिला निर्माणाधीन इमारत का कुछ हिस्सा ढह गया है। जबकि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भारतीय अर्थव्यवस्था को गिरने से रोकने के बजाय भारतीय महिलाओं के वेस्टर्न फेमिनिज्म के प्रभाव में आने से चिंतित नजर आ रही हैं। उनका कहना है कि भारतीय महिलाओं को पश्चिमी देशों के विचारों को पूरी तरह से अपनाने के बजाय दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती जैसे प्रतीकों को अंगीकार करना चाहिए। क्या देश को मोदी राज के 11 वर्ष बाद भी एक पूर्णकालिक वित्त मंत्री की मांग नहीं करनी चाहिए?
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