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कोरोना की नई दवा 2-DG है इन वैज्ञानिकों के दिमाग की उपज

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डीआरडीओ की यह दवा ऐसे समय में आई है जब कोरोना की तीसरी लहर की बात हो रही है। वहीं, देशभर में ऑक्सिजन की क‍िल्‍‍‍‍लत बनी हुई है। दूसरी लहर से रेकॉर्ड मौतें हो रही हैं और स्वास्थ्य संसाधनों पर भारी दबाव है। अच्छी बात यह है कि 2-डीजी दवा पाउडर के रूप में पैकेट में आती है और इसे पानी में घोल कर पीना होता है।

काफी कोशिशों के बाद मिली कामयाबी

कोरोना के खिलाफ जंग में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की नई दवा उम्‍मीद की किरण लेकर आई है। इस दवा का नाम 2-डीऑक्‍स‍ि-डी-ग्लूकोज (2-DG)है। दवा नियामक डीसीजीआई ने इसे इमर्जेंसी इस्‍तेमाल की मंजूरी दी है। बताया जाता है कि इस दवा से कोरोना के मरीज तेजी से रिकवर होते हैं। यह मरीजों की ऑक्सिजन पर निर्भरता को कम करती है। डीआरडीओ को काफी कोशिशों के बाद इस दवा को बनाने में कामयाबी मिली है। इसमें कई डॉक्‍टरों का दिमाग लगा है। आइए, यहां उनके बारे में जानते हैं।

​सुधीर चांदना ने बढ़ाया हिसार का मान

काेराेना की दवा बनाने में हिसार के सुधीर चांदना की अहम भूमिका रही है। वह डीआरडीओ में एडिशनल डायरेक्‍टर हैं। उनके पिता जेडी चांदना जिला और सत्र न्‍यायाधीश रहे हैं। सुधीर का जन्‍म अक्‍टूबर 1967 में हिसार रेलवे स्‍टेशन के नजदीक रामपुरा में अपने पुश्‍तैनी घर में हुआ था। उनके जन्‍म के बाद पिता का हरियाणा जुडिशियल सर्विस में चयन हुआ। नौकरी में पिता का ट्रांसफर होने के कारण सुधीर की शुरुआती शिक्षा भिवानी, बहादुरगढ़, पानीपत, करनाल और हांसी के स्‍कूलों में हुई। 1985 में उन्‍होंने चंडीगढ़ के डीएवी कॉलेज से बीएससी की। फिर 1987-89 में हरियाणा कृषि विश्‍वविद्यालय (HAU) से माइक्रोबायलॉजी में एमएससी की। पीएचडी के दौरान बतौर वैज्ञानिक वह डीआरडीओ से जुड़े। उन्‍होंने 1991 से 1993 के बीच ग्‍वालियर और फिर दिल्‍ली स्थित इंस्‍टीट्यूट ऑफ न्‍यूक्लियर मेडिसिन एंड एलाइड साइंसेज में अपनी सेवाएं दीं।

​गोरखपुर का गौरव बने अनंत नारायण भट्ट

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के गगहा से माध्यमिक शिक्षा ग्रहण करने वाले DRDO के वैज्ञानिक अनंत नारायण भट्ट गोरखपुर सहित पूर्वांचल के लिए गौरव का विषय बन चुके हैं। अनंत DRDO के न्यूक्लियर मिडिसिन एंड अलायड साइंसेज में सीनियर साइंटिस्ट के पद पर कार्यरत हैं। उन्‍होंने ने अपनी माध्यमिक शिक्षा गगहा के किसान इंटर कॉलेज और बीएससी किसान पीजी कॉलेज से की है। वहीं, अवध विश्विद्यालय से एमएससी बायोकेमेस्ट्री से करने के बाद पीएचडी करने के लिए सीडीआरआई लखनऊ में रजिस्ट्रेशन कराया। यहां ड्रग डेवलपमेंट विषय में रिसर्च कंप्लीट कर पीएचडी पूरा की। इसके बाद बतौर साइंटिस्ट DRDO में नौकरी मिल गई।

​डॉ अनिल मिश्रा की उप‍लब्‍धि से बलिया की बढ़ी शान

डॉ अनिल मिश्रा मूल रूप से उत्‍तर प्रदेश के बलिया जिले के हैं। 2-डीजी दवा को बनाने में उनकी अहम भूमिका रही है। मिश्रा ने 1984 में गोरखपुर विश्‍वविद्यालय से एमएससी किया है। उन्‍होंने 1988 में बनारस हिंदू विश्‍वविद्यालय (BHU) से केमिस्‍ट्री में पीएचडी की। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में वह पोस्‍टडॉक्‍टोरल फैलो रहे हैं। अनिल मिश्रा 1997 में बतौर वैज्ञानिक डीआरडीओ के न्यूक्लियर मिडिसिन एंड अलायड साइंसेज से जुड़े थे। फिलहाल वह संगठन के साइक्लोट्रॉन और रेडियो फार्मास्यूटिकल साइंसेज डिवीजन में सेवाएं दे रहे हैं। जर्मनी के मैक्स-प्लैंक इंस्टीट्यूट में वह 2002 से 2003 तक विजिटिंग प्रोफेसर भी रहे। काेराेना की दवा बनाने वालाें में उनका नाम शामिल हाेने की खबर आते ही उन्हें बधाई देेने वालों का तांता लग गया। बलिया के लाेग मिश्रा की उपलब्धि पर फूले नहीं समा रहे हैं।

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