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…जब दिग्विजय के चलते CM बनते-बनते रह गए सिंधिया, 31 के आंकड़े से बदल गया था खेल

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भोपाल
ज्योतिरादित्य सिंधिया अब बीजेपी में हैं और नरेंद्र मोदी कैबिनेट में केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री बन चुके हैं। मंत्री पद की शपथ लेने के बाद सिंधिया के लिए बधाइयों का सिलसिला जारी है। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने शपथ लेने से पहले ही उन्हें मंत्री पद की शुभकामनाएं दी थीं, लेकिन करीब ढाई साल पहले दिग्विजय सिंह के विरोध के कारण ही सिंधिया सीएम बनने से चूक गए थे। तब सिंधिया कांग्रेस में हुआ करते ।

बात 2018 के विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के ठीक बाद की है जब मध्य प्रदेश में कांग्रेस के नए मुख्यमंत्री का चुनाव हो रहा था। चुनाव प्रचार के दौरान सिंधिया कांग्रेस की अभियान समिति के प्रमुख और मुख्य प्रचारक थे। दूसरी ओर, कमलनाथ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे। ये दोनों ही कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के करीब थे और मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार थे।

सिंधिया का दावा मजबूत था क्योंकि उनके प्रभाव वाले चंबल-ग्वालियर क्षेत्र में कांग्रेस को 34 में से 26 सीटें मिली थीं। कमलनाथ के प्रभाव वाले महाकौशल इलाके में कांग्रेस को 38 में से 24 सीटें मिली थीं। सिंधिया का दावा मजबूत इसलिए भी था क्योंकि वे तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के इनर सर्किल में शामिल थे। राहुल, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकारों के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए गए तो सिंधिया को अपने साथ ले गए। तमाम संकेत इस बात की ओर इशारा कर रहे थे कि ज्योतिरादित्य ही मध्य प्रदेश के सीएम बनेंगे।

इसी दौरान खेल में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की एंट्री हुई। दिग्विजय खुद तो मुख्यमंत्री पद की दौड़ में नहीं थे, लेकिन सिंधिया के सख्त खिलाफ थे। दिग्विजय ने सोशल मीडिया पर एक फोटो शेयर किया जिसमें 31 विधायक उनके बेटे जयवर्धन सिंह को बधाई देने पहुंचे थे। जयवर्धन राघोगढ़ विधानसभा सीट से जीते थे। कहने को तो ये सारे विधायक जयवर्धन को पहली बार चुनाव जीतने पर बधाई देने आए थे, लेकिन इसका राजनीतिक मकसद कुछ और था। दिग्विजय ने फोटो शेयर कर सिंधिया को यह संदेश दिया कि सीएम पद की रेस में नहीं होने पर भी उनके साथ 31 विधायक हैं। इसलिए 26 विधायकों के समर्थन से सिंधिया का दावा मजबूत नहीं होता।

दिग्विजय यहीं नहीं रुके। उन्होंने कांग्रेस के अलग-अलग गुटों, छोटी पार्टियों और निर्दलीय विधायकों को कमलनाथ के पक्ष में गोलबंद करना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे 80 विधायक कमलनाथ के पक्ष में आ गए। यह देख कर राहुल गांधी भी दोबारा सोचने को मजबूर हो गए। इसके बाद उन्होंने सिंधिया और कमलनाथ को दिल्ली बुलाया। लंबी मंत्रणा के बाद कमलनाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल गई। सिंधिया पहले सीएम पद से दूर हुए और करीब 15 महीने बाद कांग्रेस पार्टी से भी अलग हो गए।

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