अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

महाराष्ट्र के ‘एकनाथ’ की मुसीबत, अंधेरी पूर्व उपचुनाव में क्यों नहीं उतारा उम्मीदवार

Share

 बुधवार की शाम बीकेसी ग्राउंड पर दशहरा रैली के मौके पर एकनाथ शिंदे के साथ दिवंगत बालासाहेब ठाकरे का तकरीबन आधा कुनबा मौजूद था। बालासाहेब के बेटे और उद्धव ठाकरे के भाई जयदेव ठाकरे भी मंच पर मौजूद थे। उन्होंने मंच से ही यह बात कही थी कि महाराष्ट्र में अब शिंदे ‘राज’ आना चाहिए। मुझे मुख्यमंत्री के तौर पर एकनाथ शिंदे पसंद हैं। उन्होंने कहा कि राज्य में दोबारा चुनाव करवाकर महाराष्ट्र में शिंदे ‘राज’ को स्थापित करना चाहिए। अंधेरी पूर्व के विधानसभा उपचुनाव के जरिये एकनाथ शिंदे को यह मौका मिला भी लेकिन उन्होंने इसका इस्तेमाल ही नहीं किया। शिवसेना की इस सीट पर खुद को असली शिवसेना पार्टी बताने वाले एकनाथ शिंदे गुट ने यहां अपना कोई उम्मीदवार ही नहीं उतारा और यह सीट बीजेपी (BJP) की झोली में डाल दी। बीजेपी ने यहां से मुरजी पटेल को मैदान में उतारा है। जबकि उद्धव ठाकरे गुट ने दिवंगत विधायक रमेश लटके की पत्नी ऋतुजा लटके को टिकट दिया है।

शिंदे राज की स्थापना कैसे होगी?
अब सवाल यह है कि बगैर चुनाव लड़े महाराष्ट्र में शिंदे राज की स्थापना कैसे होगी? लोकतंत्र में चुनाव के जरिए ही सत्ता के सिंहासन तक पहुंचा जाता है लेकिन यहां तो एकनाथ शिंदे ने इस चुनौती को स्वीकार ही नहीं किया। महाराष्ट्र में अक्सर राजनीतिक पार्टियां अपनी-अपनी सहूलियत के हिसाब से इस जुमले को कहती हैं। जिसके मुताबिक अगर किसी विधायक या सांसद की कार्यकाल के बीच में मौत हो जाती है तो उसकी जगह पर विपक्षी दल अपना उम्मीदवार नहीं उतारते हैं लेकिन यहां इस परिपाटी को बीजेपी तोड़ते हुए नजर आ रही है। एकनाथ शिंदे गुट की तरफ से भी उम्मीदवार न उतारने के पीछे यही वजह बताई जा रही है। हालांकि, इस सवाल पर शिंदे गुट की प्रवक्ता शीतल मात्रे ने बताया कि फिलहाल इस विषय पर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और वरिष्ठ नेता तय करेंगे कि इस सीट पर अपना उम्मीदवार खड़ा करना है या नहीं।

शिवसेना की सीट पर बीजेपी क्यों?
फिलहाल एकनाथ शिंदे, बीजेपी के साथ मिलकर सत्ता के सिंहासन तक पहुंचे हैं और गठबंधन की सरकार चला रहे हैं। एकनाथ शिंदे के मुताबिक यह एक नैसर्गिक गठबंधन हैं जिसकी बुनियाद दिवंगत बालासाहेब ठाकरे और अटल बिहारी वाजपेई ने रखी थी। हालांकि, इस चुनाव क्षेत्र की जनता और शिवसेना को मानने वाले तमाम लोगों के मन में यह सवाल भी है कि जब यह सीट शिवसेना की है। कुछ महीनों पहले तक जिसपर शिवसेना का विधायक था। फिर यह सीट बीजेपी को क्यों दी गई? सवाल यह भी है कि शिंदे चाहते तो बीजेपी को भी यहां से उम्मीदवार न उतारने के लिए समझा सकते थे। हालांकि, उन्होंने ऐसा नहीं किया।

शिंदे ने मौका गंवाया?
अंधेरी पूर्व विधानसभा उपचुनाव में अपना उम्मीदवार न उतारकर असली शिवसेना का दावा करने वाले एकनाथ शिंदे ने मुंबई में अपनी ताकत दिखाने का एक बड़ा मौका गंवा दिया है। वहीं बीजेपी के इस फैसले से यह लगता है कि शायद उन्हें एकनाथ शिंदे पर पूरा भरोसा नहीं है या फिर इस वजह से बीजेपी ने अपना उम्मीदवार वहां उतारा है ताकि एकनाथ शिंदे की पकड़ मुंबई में न बनने पाए क्योंकि अगर शिंदे खेमा मुंबई में मजबूत होता है तो बीजेपी के लिए भविष्य में मुश्किलें पैदा कर सकता है।

एनसीपी ने कसा तंज
एनसीपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता क्लाईड क्रास्टो ने एनबीटी ऑनलाइन से बातचीत में कहा, ‘ मेरी नजर में एकनाथ शिंदे ने एक बड़ा मौका अपने हाथ से जाने दिया है। अगर वह इस चुनाव में अपना उम्मीदवार उतारते तो शायद वे यह साबित कर पाते कि वही असली शिवसेना हैं। अगर उनका उम्मीदवार चुनाव जीतता तो यह भी साबित होता कि वह उद्धव ठाकरे गुट से ज्यादा ताकतवर हैं। फिलहाल इस चुनाव में पलड़ा तो उद्धव ठाकरे का ही भारी रहेगा। महाविकास अघाड़ी का भी पूरा समर्थन ठाकरे गुट के साथ है’।

शिंदे ने क्यों नहीं उतारा उम्मीदवार?
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक सचिन परब ने एनबीटी ऑनलाइन से बातचीत में कहा कि एकनाथ शिंदे के सामने फिलहाल चुनाव चिन्ह न होने की बड़ी मुश्किल है। भले ही यह मुद्दा चुनाव आयोग के समक्ष विचाराधीन है फिर भी अभी तक शिवसेना का चुनाव चिन्ह धनुष बाण उद्धव ठाकरे गुट के पास है। आनेवाले दिनों में चुनाव आयोग इसका फैसला कुछ भी दे लेकिन फिलहाल शिंदे के लिए चुनाव चिन्ह का न होना मुसीबत का सबब साबित हो रहा है। दूसरी तरफ इस बात उन्हें इस बात की भी आशंका हो सकती है कि अगर इस चुनाव में उनके उम्मीदवार की हार होती तो शिंदे गुट को बड़ा झटका लग सकता था। शायद इन्हीं वजहों से उन्होंने अपना उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारा।

क्या है अंधेरी ईस्ट का चुनावी गणित
अगले महीने की तीन तारीख को विधानसभा की अंधेरी पूर्व सीट के लिए उप चुनाव होना है। इस सीट पर ज्यादातर हिंदी भाषी और मराठी मतदाता ही निर्णायक स्थिति में है। हालांकि, बीजेपी ने यहां से गुजराती भाषी मुरजी पटेल को उम्मीदवारी दी है। इसके बाद क्षेत्र में यह चर्चा चल पड़ी है कि कहीं यह फैसला बीजेपी को भारी न पड़ जाए। इसकी एक पटेल के खिलाफ बीजेपी के भीतर भी काफी अंतरविरोध बताया जा रहा है।

बीजेपी के नेता भी इस खतरे को भांप रहे हैं, इसलिए शिवसेना को हराने के लिए शिंदे गुट का एक उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारने की जुगत लड़ाई जा सकती है। हालांकि, शिंदे गुट के एक नेता ने कहा ‘यह बहुत जोखिम वाला काम है। अगर हम एक पूर्व शिवसैनिक की विधवा के खिलाफ अपना उम्मीदवार उतारेंगे, तो शिवसैनिकों में इसका गलत संदेश भी जा सकता है।’

लटके के पक्ष में मराठी वोटर ?
2019 में अंधेरी पूर्व की विधानसभा सीट पर चुनाव जीतने वाले शिवसेना विधायक रमेश लटके के निधन के बाद इस सीट पर उप चुनाव कराया जा रहा है। शिवसेना ने यहां से दिवंगत रमेश लटके की पत्नी ऋतुजा रमेश लटके को उम्मीदवार बनाया है। अंधेरी के जानकारों का कहना है कि अंधेरी में केवल नागरदास रोड का जो पट्टा है सिर्फ उसी में ज्यादातर गुजराती वोटर हैं। बाकी पूरा चुनाव क्षेत्र उत्तर भारतीयों का गढ़ माना जाता है। इसके बावजूद शिवसेना के रमेश लटके यहां से विधायक चुने जाते थे। इसकी दो वजहों थीं। एक तो तीन बार वह स्थानीय नगरसेवक रहे थे। उनका अपने इलाके में अच्छा जनसंपर्क था। दूसरे उनके फेवर में मराठी वोटर एकजुट होकर वोटिंग करता था।

2014 में फेल हुई थी बीजेपी
2014 में बीजेपी ने इस समीकरण को तोड़ने की बड़ी कोशिश की थी। योजनाबद्ध रूप से उसने यहां से अपने उत्तर भारतीय उम्मीदवार सुनील यादव को चुनाव मैदान में उतारा था। लेकिन 2014 की मोदी लहर के बावजूद शिवसेना उम्मीदवार लटके ने सुनील यादव को हराकर चुनाव जीता। सुनील यादव को 52 हजार 817 वोटों के मुकाबले में 47 हजार 388 वोट मिले थे। कांग्रेस के सुरेश शेट्टी तीसरे नंबर पर रहे थे। उन्हें 37 हजार 929 वोट मिले थे।

2022 के समीकरण
इस बार उप चुनाव की खासियत यह है कि इस चुनाव में न तो शिवसेना के रमेश लटके जीवित हैं और न ही बीजेपी के सुनील यादव। इसका खामियाजा शिवसेना और बीजेपी दोनों को उठाना पड़ सकता है। खासकर बीजेपी के लिए चिंता की बात यह है कि शिवसेना को इस बार कांग्रेस और एनसीपी दोनों का समर्थन मिल रहा है। कांग्रेस का इस चुनाव क्षेत्र में कम से कम 30 से 35 हजार वोट बैंक हैं। क्योंकि 2014 में कांग्रेस के सुरेश शेट्टी को यहां से 37 हजार से ज्यादा वोट मिले थे वहीं 2019 में कांग्रेस के अमीन कुट्टी को 27 हजार से ज्यादा वोट मिले थे। यह वोट इस बार शिवसेना के खाते में जा सकते हैं।

दूसरी बात यह है कि अंधेरी पूर्व के इस चुनाव में शिवसेना को सहानुभूति का डबल फायदा हो सकता है। एक तो रमेश लटके के अपने निजी संपर्क और समर्थन का फायदा उसे मिलेगा दूसरी तरफ एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद उद्धव को मिल रही सहानुभूति का फायदा भी उसे मिल सकता है।

इस सीट पर क्या है बीजेपी की मुश्किल
बीजेपी के लिए मुश्किल की बात यह भी हो सकती है कि सुनील यादव उत्तर भारतीय उम्मीदवार थे, इसलिए उन्हें उत्तर भारतीयों के वोट बड़ी तादाद में मिले थे। इस बार गुजराती भाषी मूरजी पटेल को उत्तर भारतीयों का इतना समर्थन मिलेगा इसमे शंका है। परेशानी इससे आगे भी है। बीजेपी के उत्तर भारतीय नेताओं को भी लग रहा है कि अगर मूरजी पटेल यहां से चुनाव जीत गए, तो उत्तर भारतीयों के हक का एक चुनाव क्षेत्र उनके हाथ से हमेशा के लिए निकल जाएगा। इसलिए वह अभी से माहौल बनाने में लग गए हैं।

बीजेपी के एक कद्दावर उत्तर भारतीय नेता ने कहा कि मूरजी पटेल की इमेज तो पूरे चुनाव क्षेत्र में बिल्डर लॉबी के आदमी की है। इलाके की जनता उसे पसंद नहीं करती। 2019 में उसे इसलिए वोट मिल गए थे क्योंकि तब बीजेपी का कोई अधिकृत प्रत्याशी नहीं था। इस बार उत्तर भारतीय पटेल को कितना वोट देंगे कुछ कहा नहीं जा सकता।

एकनाथ शिंदे बनाम उद्धव ठाकरे

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें