शशिकांत गुप्ते
टीवी चैनलों पर न्यूज देखतें सुनतें समय समाचारों के बीच विज्ञापनों का देखना पड़ता है।बहुत सी बार समाचारों के बीच विज्ञापनों के कारण विसंगतिपूर्ण स्थिति बन जाती है।
सामाचारों में समाचार वाचक बेरोजगारों की समस्या के समाचार प्रस्तुत करतें हैं,और कुपोषण से पीड़ितों की दयनीय स्थिति और जीर्णशीर्ण काया दर्शातें हैं।इस बीच कमर्शियल ब्रेक में, किसी पौष्टिक आहार का और सौदर्यप्रसाधन का विज्ञापन, जले पर नमक जैसी पीड़ा का एहसास करवाता हैं।
इसीतरह विसंगति की स्थिति तब बनती है,जब किसी संत महंत के द्वारा आत्महत्या के सामाचार देखने सुनने को मिलतें हैं।संत महंत के द्वारा आत्महत्या के बाद सम्बंधित मठ की संपत्तियों के समाचार अचंभित ही कर देतें हैं।
अचंभित होने कारण होता है,संत और महंत जैसे पवित्र शब्द सुनतें ही आमजन के जहन में वैराग्य की भावना जागृत होती है।वैराग्य मतलब आमजन में मोह माया को त्यागने की प्रवृत्ति का संचार होता है।
इनदिनों ऐसे विसंगतियों के समाचार पढ़ने सुनने और देखने को मिल रहें हैं।
देश की राजधानी स्थित कचहरी में दिनदहाड़े बंदूक की गोलियां चलना भी दिल दहलाने वाला ही समाचार है।दिल्ली दिल है हिंदुस्थान का।यहाँ स्वयं गृहमंत्री विराजते हैं?यहॉ का पुलिस प्रशासन केंद्र सरकार के अधीन है?
ऐसे दुःखद समाचारों से ध्यान हटाने के लिए पुरानी फिल्मों के गाने सुनना शुरू किया।
सयोंग से सन 1956 में प्रदर्शित फ़िल्म सीआईडी का यह गाना सुनाई दिया।गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी ने लिखे गीत की पक्तियां सुनना शुरू ही किया था।
कहीँ पे निगाहे कहीँ पे निशाना
उक्त पंक्ति ही सुन पाया था कि, उत्सुकता वश अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के वक्तव्य का हिंदी अनुवाद सुनाई दिया।
क्योंकि दुनिया भर में लोकतंत्र इस समय खतरें में है।इसीलिए यह बहुत जरूरी है कि,हम अपने अपने देशों में और दुनिया भर में लोकतांत्रिक सिद्धांतो और संस्थाओँ का बचाव करें।यह हमारा फर्ज है कि,हम अपने घर में लोकतंत्र मजबूत करें।अपने देश के लोगों के हित में लोकतंत्र की रक्षा करें।
यह वक्तव्य सुनने बाद स्वाभाविक ही उक्त गाने की पंक्ति का पुनः स्मरण हुआ।
कहीँ पे निगाहें कहीं पे निशाना
शशिकांत गुप्ते इंदौर