कुछ दिन पहले हमने “बात” के माध्यम से अपनी “बात” की थी. “बात” पर एक कविता लिखी थी, उस कविता को, “बात” वाली कविता को, आज पुनः आपके सामने पेश कर रहा हूं। “बात” के माध्यम से आपसे “बात” करना चाहता हूं। आप ही बताइए कैसी लगी हमारी “बात”?
मुनेश त्यागी
कोई करता है चमकते बालों की बात,
कोई करता है चमकती अंखियों की बात,
कोई करता है चमकते लिबासों की बात,
क्यों नहीं की जाती रोशन दिमागों की बात?
कोई करता है जाति की बात,
कोई करता है मजहब की बात,
कोई करता है मस्जिद की मंदिर की बात,
कब की जाएंगी, इंसानी बस्तियों के बात?
कोई करता है खालिस्तान की,पाकिस्तान की बात,
कोई करता है खालिस हिंदू राष्ट्र की बात,
कोई करता है यूरोप की, अमेरिका की बात,
क्यों नहीं की जाती एक मुकम्मल दुनिया की बात?
कोई करता है मुनाफों की बात,
कोई करता है धंधों की बात,
अब हो रही है उदारीकरण की बात,
कब की जाएगी खेतों की, झोपड़ियों की बात?
कोई करता है तोप की, तलवार की बात,
कोई करता है खंजर की, त्रिशूल की बात,
कोई करता है मिसाइलों की, बमों की बात,
कब की जाएंगी अमन और मोहब्बत की बात?
कोई करता है उजालों में अंधेरों की बात,
कोई करता है झूठ की, लुटेरों की बात,
कब होगी जुल्म-अन्याय से लड़ने की बात?
क्यों नहीं होती भगत सिंह बनने के बात?