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अमर शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी और कृतघ्न देश ?

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-निर्मल कुमार शर्मा

स्वर्गीय गणेश शंकर विद्यार्थी का नाम भारत के उन यशस्वी संपादक ,पत्रकार पुरोधाओं में गर्व के साथ लिया जाता है ,जो मात्र 23 वर्ष की उम्र में अँग्रेजों की गुलामी की जंजीरों से जकड़े देश से गुलामी को उखाड़ फेंकने के लिए 1913 में देश की जनता में स्वतंत्रता के दीपक की तरह अलौकिक अलख जगाने के लिए ‘प्रताप ‘ नामक समाचार पत्र का प्रकाशन कानपुर के रामनारायण बाजार के तंग गलियों में स्थित एक घनी बस्ती में फीलखाना या पीलखाना नामक जगह पर प्रारम्भ किया था । विद्यार्थी जी द्वारा प्रारम्भ किया गया यह प्रताप समाचार पत्र भारत की गरीबी से अभिषप्त जनता विशेषकर किसानों और मजदूरों का पक्षधर था, उस समय क्रूर अँग्रेज़ी साम्राज्यवादी सत्ता के गरीब भारतीयों पर हो रहे दमन और भारतीय जनता पर हो रहे जुल्म के खिलाफ़ एक सशक्त और निर्भीक समाचार पत्र के रूप में सम्पूर्ण हिन्दी भाषी क्षेत्रों में अत्यन्त लोकप्रिय हुआ था ।
तत्कालीन अँग्रेजी सत्ता और उसके चाटुकार जमींदारों और सामंतों के जुल्मों के खिलाफ एक जबर्दस्त आवाज और धमक के रूप में यह समाचार पत्र अपनी निर्भीकता की वजह से तत्कालीन भारतीय जनता का यह बहुत ही लोकप्रिय समाचार पत्र के रूप में अपना स्थान बनाने में पूर्णतः सफल रहा था । इस समाचार पत्र और इसके यशस्वी ,देशभक्त संपादक,स्वर्गीय गणेश शंकर विद्यार्थी की महत्ता और गौरव का महत्व इससे और बढ़ जाता है,जब 1925 में भारत के इकलौते सितारा सपूत शहीद-ए-आजम भगत सिंह जैसे देश के लाड़ले,जो बाद के कुछ ही वर्षों बाद देश के लोगों और भारतीय राष्ट्र राज्य की आन-बान-शान हेतु और देश को अँग्रेज़ी साम्राज्यवाद से स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले यशस्वी व्यक्तित्व भी इस प्रताप नामक समाचार पत्र से जुड़ गये । शहीद-ए-आजम भगत सिंह इस समाचार पत्र में अँग्रेजों के दमनकारी सत्ता के चरित्र से सुरक्षाहेतु बलवन्त सिंह के छद्म नाम से अपने यशस्वी, चिन्तनयोग्य ,समयसापेक्ष और निर्भीक विचार लगभग ढाई वर्ष तक इसी प्रताप समाचार पत्र जो स्वर्गीय गणेश शकंर विद्यार्थी के सम्पादकत्व में और उनके गरिमामयी कुशल और चैतन्य संरक्षण में लिखते रहे । दूसरे शब्दों में शहीद-ए-आजम भगत सिंह के व्यक्तित्व को और अधिक सुघड़ ,क्रांतिकारी और यशस्वी बनाने और गढ़ने में स्वर्गीय गणेश शंकर विद्यार्थी का ही अहम् रोल था ।
परन्तु हमें इस बात को बहुत ही अफ़सोस और दुख के साथ ये लिखना पड़ रहा है कि ऐसे अप्रतिम,देशभक्त,समर्पित पत्रकार और हिन्दू-मुस्लिम दंगों की आग के शमन हेतु अपने प्राणों की आहुति देने वाले भारत के इस वीर महान सपूत शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी की कर्मस्थली कानपुर के रामनारायण बाजार के तंग गलियों में स्थित फीलखाना या पीलखाना स्थित प्रताप प्रेस का भवन आज गुमनामी के अँधेरे में आज अपनी पहचान तक को तरस रहा है,वहाँ एक छोटा बोर्ड भी लगाना वर्तमान एहसान फरामोश और कृतघ्न शासकों को गवारा नहीं है,जहाँ यह लिखा हो कि ‘स्वर्गीय शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा स्थापित प्रताप प्रेस जिससे प्रकाशित होने वाला यशस्वी समाचार पत्र ‘प्रताप ‘ यहीं से प्रकाशित होता था ,जिसमें शहीद-ए-आजम भगत सिंह ढाई साल तक नौकरी किए और उस यशस्वी पत्र में लेख लिखे ,जिसके विचारों से अनुप्रेरित होकर यह देश 1947 में ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्त हुआ और हम समस्त भारतवासी आज स्वतंत्र भारत में सांस ले पा रहे हैं । ‘ ऐसे देश के सपूतों की कर्मस्थली रही ये पावन भूमि और भवन किसी अन्य देश में होता तो अपने उन महान सपूतों की याद में भव्य भवन के रूप में, रोशनी से जगमागाता,एक दिव्य स्मारक होता जहाँ देश के समस्त प्रबुद्ध लोग अपने उन शहीदों को श्रद्धासुमन और श्रद्धांजलि अर्पित करते,जिन्होंने हँसते-हँसते इस देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दिए ।
मैं कानपुर की उस पावनस्थली की जर्जर और खण्डहर बनती स्थिति को देखकर अत्यन्त व्यथित और खिन्न मन से कल ही लौटा हूँ । अपने इन दोनों महान सपूतों की उस कर्मस्थली की जर्जर हालत और वर्तमान सत्ता की उन महान सपूतों की स्मृतिस्थलों के प्रति बेरूखी और बेकद्री की वजह से उसकी दयनीय दशा देखकर मेरी आँखों से अश्रुधारा फूट पड़ी थी । इस देश की जनता की उदासीनता और यहाँ के सत्ताधारियों की क्रूर अमानवीय व्यवहार को मैं किन शब्दों में व्यक्त करूँ,मेरे समझ से परे है ,जो आज के एक अनाम से विधायक की भी शहर के मध्य चौराहे पर उसकी स्मृति हेतु प्रायः आदमकद मूर्ति स्थापित कर देते हैं,परन्तु अत्यन्त खेदजनक है कि देश के उन महान अमर विभूतियों के स्मृतिस्थल एक नामपट तक के लिए तरस रहा है । देश के लोगों के लिए उस पावन स्थली की वर्तमान जीर्घशीर्घ हालत को दर्शाता फोटो भी संगलग्न कर रहा हूँ,ताकि देश के दूरदराज के लोग भी देख सकें कि हमारे देश के कर्णधारों के दिलोदिमाग में हमारे उन क्रान्तिवीरों के प्रति कितना सम्मान है ?
कानपुर शहर के रामनारायण बाजार के पीलखाना मुहल्ले की तंग गलियों में यही वह इतिहास प्रसिद्ध प्रताप प्रेस की जर्जर बिल्डिंग है,जहाँ कभी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को तरंगित करने वाला दैनिक और पाक्षिक समाचार पत्र प्रताप स्वर्गीय गणेश शंकर विद्यार्थी के संपादकत्व में कभी प्रकाशित होता था,उस पत्र में अमर शहीद,शहीद-ए-आजम भगत सिंह लगभग ढाई साल तक बलवंत सिंह के छद्म नाम से लेख लिखते रहे थे,जो बाद में इस देश की स्वतंत्रता के लिए ब्रिटिश-साम्राज्यवादियों द्वारा फाँसी पर लटका दिए गये,उन्हीं शहीद-आजम स्वर्गीय भगत सिंह के स्मृति-चिन्ह या स्मृति-स्थल की ये दुर्दशा ये अंग्रेजों के जारज पुत्र इन देशी साम्राज्यवादियों ने कर रखा है आप भी देखिए और इसे अपने समान-विचारधारा के मित्रों,परिचितों और संबन्धियों को भेजिए ताकि यहाँ की सोई हुई जनता यह देखे कि हमारे उन शहीदों के स्मृतिस्थलों की आज के वर्तमानकाल के विलासी,पूँजीपतियों के पैरों में पड़े रहने वाले,साप्रदायिक और जातीय विद्वेष फैलाने वाले,फॉसिस्टों के समय में उनकी कितनी दुर्गति हो रही है ! उस वीर शिरोमणि संम्पादक को इस देश के समस्त प्रबुद्धजनों,बहादुर,निर्भीक,निष्पक्ष,लोकतंत्र में विश्वास रखनेवाले पत्रकारों,सम्पादकों की तरफ से उनके जन्मदिन पर कोटि-कोटि नमन ।


-निर्मल कुमार शर्मा

,’गौरैया एवम पर्यावरण संरक्षण तथा पत्र-पत्रिकाओं में सशक्त व निष्पृह लेखन

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