अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

शर्मिंदगी( एक लघुकथा )

Share

वे दोनों बस की सीट पर बैठे थे। इनमें से एक रमेश था और दूसरी उसके दोस्त राजपाल की विधवा सुनीता। सुनीता के पति का पैतृक गाँव अम्बाला ज़िले में था। गाँव में उसकी पाँच एकड़ ज़मीन थी जो उसकी मृत्यु के बाद सुनीता के नाम होनी थी। रमेश पहले ही पटवारी तथा नंबरदार के स्तर पर होने वाली सारी कार्रवाई पूरी करके काग़ज़ात तैयार करवा चुका था। अम्बाला तहसील कार्यालय द्वारा उन्हें आज की तारीख़ दी गई थी। तीन घंटे के सफ़र के बाद उन्हें अम्बाला पहुँचना था। बस चली तो अचानक सुनीता भावुक हो गई, “आपने मेरे लिए कितना कुछ किया है भाई साहब, पारिवारिक पेंशन, बीमा पॉलिसी, बैंक खाते के सारे काम आपने निपटा दिए। आप न होते तो मेरा क्या होता ?”
“यह तो मेरा फ़र्ज़ था भाभी, ऐसा कहकर शर्मिंदा न करें। अपने ही काम नहीं आयेंगे तो कौन आयेगा ?” रमेश भी तरल हो आया।
“बस आज का काम सही सलामत निपट जाए ! “
“निपट जायेगा भाभी, चिन्ता न करें। वैसे अपने देश में बिना घूस कोई काम नहीं होता। तहसीलों में तो सरेआम घूस चलती है। मैं दसियों बार कई कामों से कई तहसीलों में गया हूँ, सभी जगह यही आलम है। “
“तो आज…” सुनीता के चेहरे पर आशंका उभर आई।
“चिंता की ज़रूरत नहीं। मैं सारा इंतज़ाम करके चला हूँ। ” रमेश ने बैग में से नोटों की गड्डी निकाल कर उसे दिखाई।
“पता नहीं, कैसे आपका अहसान चुकेगा ? जितना आपने ख़र्च किया है, सब लिखते जाइएगा। “
“सब लिखा है, वैसे कोशिश करूँगा कि कम में काम बन जाए। लेकिन यह घूस… ख़ैर आप घबराएँ नहीं, यह है न ! ” उसने फिर से गड्डी लहराई।
तहसील में पहुँच कर दोनों रजिस्ट्री क्लर्क से मिले। दस मिनट बाद ही वे दोनों तहसीलदार के सामने खड़े थे। दो मिनट में तहसीलदार ने हस्ताक्षर कर दिए। वापस रजिस्ट्री क्लर्क के पास आकर रमेश के पाँव ठिठक गए। उसने क्लर्क को नज़र भर देखा। क्लर्क ने कुछ नहीं कहा तो रमेश ही बोला, “बहुत-बहुत धन्यवाद आपका, समय से काम हो गया। “
“इतनी दूर जाना है आपको, सो थोड़ा जल्दी नंबर लगा दिया। इतना तो मुझे करना ही चाहिए था। “
“अच्छा किया आपने… आपकी फ़ीस…? ” रमेश फुसफुसाया।
“फ़ीस तो आपने जमा कर दी थी, मैंने आपको रसीद भी दी है। “
“वह तो ठीक है लेकिन…”
“आप जाइए सर ! और अपने काग़ज़ात सँभाल कर रखिएगा। ” क्लर्क ने कहा तो रमेश को लगा जैसे उसने सुनीता के सामने उसे खलनायक बना दिया है। दोनों बाहर निकले। रमेश के पाँव जैसे पत्थर हो गए थे। ऑटो पकड़कर दोनों बस अड्डे पहुँचे। बस में अभी देर थी। वे बेंच पर बैठे थे। रमेश ने कहा, “कमाल है, तहसील में बिना घूस के पहली बार काम होते देखा है ! “
“तो अच्छा है न, आप परेशान क्यों हो रहे हैं ? रास्ते भर आप यही बात करते रहे हैं। “
“सच मानिये भाभी, यह एकदम अविश्वसनीय है, लगता है, जैसे हम हिंदुस्तान में नहीं हैं ! “
“हिंदुस्तान बदल जाए तो यह अच्छी बात ही है न भाई साहब। “
“हाँ, अच्छी बात ही है। ” रमेश ने कहा और उठकर टहलने लगा। वह थोड़ी-थोड़ी देर में घड़ी देखते हुए बस अड्डे के गेट की तरफ़ गर्दन मोड़कर देखता, जैसे बस के आने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा हो। वह बहुत शर्मिंदा महसूस कर रहा था। क्यों उसने डींगें हाँकीं, क्यों उसने सुनीता को नोटों की गड्डी दिखाई, क्या सोचती होगी वह ? उसकी नज़र में वह कितना गिर गया होगा ?
इस बीच सुनीता ने साथ लाया टिफ़िन खोलकर रोटी निकाल ली और उससे रोटी खाने का आग्रह किया।
“नहीं भाभी, मुझे बिल्कुल भूख नहीं है, आप खाइए। मैं बस देखता हूँ। ” कहते हुए वह तेज़ी से बस अड्डे के गेट की ओर बढ़ गया। खिसियाहट भरी शर्मिंदगी उसके चेहरे पर रंग की तरह पुत गई थी।

          - हरभगवान चावला,सिरसा,हरियाणा,संपर्क-93545 45440


          संकलन-निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद, उ
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें