सुसंस्कृति परिहार
इन दिनों वसीम रिज़वी का हिंदू बनना ख़ासतौर पर चर्चाओं में है मोदी मीडिया जहां इसे बतौर उपलब्धि देख रहा है वहीं सोशल मीडिया में भी इसे लेकर अनर्गल प्रलाप चल रहा है।इससे पहले भी बागपत और फैज़ाबाद में दो मुस्लिम परिवार हिंदु धर्म अपना चुके हैं ।जिनकी चर्चाएं हुईं ज़रुर पर इसे बतौर उपलब्धि नहीं देखा गया।हमारा संविधान धर्म परिवर्तन की इज़ाजत देता है और अब तक लाखों लाख लोगों ने अपनी इच्छानुसार धर्म परिवर्तन किया है।याद करिए भीमराव अम्बेडकर ने जब बौद्ध धर्म स्वीकार किया तब उनके साथ हज़ारों दलित हिंदुओं ने बौद्ध धर्म अपनाया।
इससे पूर्व मुगलकाल में भी हिंदू धर्म के उत्पीड़न के शिकार लोगों ने इस्लाम कबूल किया। अंग्रेजी शासनकाल में दुखी, परेशान,गरीब लोगों के बीच सेवा करते ईसाई मिशनरियों से प्रभावित लोगों ने धर्म परिवर्तन किए हैं। आदिवासी सबसे ज्यादा मिशनरियों के प्रभाव में है उन्होंने कहीं कहीं ही धर्म बदला है वे आज भी प्रकृति पूजक हैं लेकिन रविवार को चर्च जाना नहीं भूलते। उत्तर पूर्व के छोटे आदिवासी बहुल प्रदेशों में ये सबसे ज्यादा देखने मिलता है। छत्तीसगढ़, झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों में धर्म परिवर्तन हुआ है।
आरटीआई के ताजा आंकड़ों के मुताबिक नाम और जन्मतिथि के साथ धर्म बदलने वालों की संख्या बढ़ी है जिसमें 87 प्रतिशत मुस्लिमों ने हिंदू धर्म स्वीकार किया है। वहीं, 69 प्रतिशत लोगों ने हिंदू धर्म को त्याग कर विभिन्न धर्मों को अपनाया है। आश्चर्यजनक यह है कि सर्वाधिक 57 प्रतिशत हिंदुओं ने इस्लाम धर्म का चयन किया है।
मुंबई के आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने महाराष्ट्र सरकार की सरकारी प्रेस, लेखन साम्रगी और प्रकाशन निदेशालय से धर्म परिवर्तन की जानकारी इकट्ठा कर सूबे में धर्म परिवर्तन का यह आंकड़ा पेश किया है। उन्होंने बताया कि 10 जून 2014 से 16 जनवरी 2018 के दरम्यान उन्हें सूचना के अधिकार के तहत महाराष्ट्र में धर्म परिवर्तन की जानकारी प्राप्त हुई है। गलगली के अनुसार कुल 1687 लोगों ने अपनी सहूलियत के अनुसार धर्म परिवर्तन किया है। धर्म के आधार पर बात करें तो कुल 1687 में से 1166 हिंदुओं ने अपना धर्म परिवर्तन किया है। सबसे अधिक 664 हिंदुओं ने इस्लाम और 258 हिंदुओं ने बौद्ध धर्म ग्रहण किया है। इसके अलावा हिंदुओं में 138 ईसाई, 88 जैन, 11 सिख और एक नवबौद्ध बना है।
हिंदुओं की वर्ण व्यवस्था में किसी गैर हिंदू के हिंदू बनने पर प्रतिषेध कर रखा है। पिछले दिनों छत्तीसगढ़ में एक साथ 300 ईसाई परिवारों के लगभग 14 लोगों को एक साथ हिंदू बना दिया गया यह काम आर एस एस विश्व हिंदू परिषद और तमाम हिंदू संगठनों ने साथ मिलकर किया लेकिन धर्म परिवर्तन के बाद आज तक उनकी जाति निर्धारित नहीं हो पाई है।
यहीं बात वसीम रिज़वी के बारे में लोग पूछ रहे हैं कि वे जितेंद्र त्यागी कैसे हुए?क्या संविधान ने स्वत: जाति चुनने का अधिकार दे रखा है।देखा गया है कि धर्म परिवर्तन के बाद भी लोग उन लोगों से अस्पृश्यता का व्यवहार करते हैं जिन लोगों को इन्होंने हिंदू धर्म ग्रहण कराया है ।सिर्फ इतना ही नहीं कोशिश यह रहती है कि इनको जाति बाहर ही रखा जाए।
बहरहाल यह भारत में चलने वाली सनातन परंपरा है और ऐसा माना जाता है कि सनातन धर्म की कतिपय खामियों की वजह से ही बौद्ध ,जैन धर्म,सिख क्रमशः अस्तित्व में आये इनमें इन गिने स्वर्णों की छोड़कर वर्ण व्यवस्था से रुष्ट दलित जातियों ने बड़े पैमाने पर धर्म परिवर्तन किया।खास बात ये रही कि तब सनातनधर्मी लोगों ने देश में ही जन्मे धर्म को अपनाया।बाद में दलित और उत्पीड़ित लोगों को इस्लाम और ईसाइयत का सहारा मिला।
आज हिंदू धर्मावलंबियों की संख्या निरंतर घटती जा रही है इसलिए जब वसीम रिज़वी हिंदू धर्म अपनाते हैं तो उसे तमाशा बना दिया जाता है।जबकि वे भी इस्लाम के ख़िलाफ़ “मोहम्मद “पुस्तक लिखकर मुस्लिम समाज के निशाने पर हैं उत्पीड़ित हैं और अपनी स्वत: की रक्षार्थ सनातन धर्म अपनाए है। ।रश्दी की किताब ‘सेटेनिक वर्सेस’ के विवादों में आने के चलते हुई। कहा जाता है कि नॉवेल का सब्जेक्ट मुस्लिम कम्युनिटी के लोगों को ऑफेंसिफ लगा जिसके चलते उनका इंडिया आना मुश्किल हो गया। जान से मारने की धमकियां मिली और फतवे जारी हुए। इसी के चलते आज भी इनका ये नॉवेल इंडिया में बैन है। कहा ये भी जाता है कि रुश्दी ने अपनी इस किताब में मुहम्मद को झूठा, घिनौना और पाखंडी कहा है. मुहम्मद की 12 बीवियों को वेश्या तक बोल दिया।अब अपने धर्म से इतने बिफरे हैं कि खुद को रुश्दी गैर-मुस्लिम और नास्तिक बताते हैं। बांग्लादेश की लेखिका डा०तसलीमा नसरीन ने भी इस्लाम में नारी उत्पीड़न पर भरपूर लिखा।लज्जा,शोध उपन्यास काफी चर्चित रहे।
1994 से बांग्लादेश से निर्वासित हैं। १९७० के दशक में एक कवि के रूप में उभरीं तसलीमा १९९० के दशक के आरम्भ में अत्यन्त प्रसिद्ध हो गयीं। वे अपने नारीवादी विचारों से युक्त लेखों तथा उपन्यासों एवं इस्लाम एवं अन्य नारीद्वेषी मजहबों की आलोचना के लिये जानी जाती हैं।तसलीमा ने धर्म नहीं बदला।
कुल मिलाकर यह संघी हस्तक्षेप का कमाल है। चुनाव सिर पर है हिंदुओं को ख़ुश करने मथुरा में प्रयासरत रहे असफल हुए तो नया मसला ले आए।वे भले ही तथाकथित जितेन्द्र नारायण त्यागी की सुरक्षा का इंतजाम फिलवक्त कर लें। उन्हेंं चुनाव में उतार दें लेकिन यह तय है उन्हें देर सबेर देश छोड़ना ही होगा।ये सिर्फ धर्म परिवर्तन का मामला नहीं ईश्वर निंदा का मामला है।किसी ने क्या ख़ूब लिखा है-
एक अफीम से दूसरी
अफीम ! काश ये सच
समझ पाते वसीम !