अग्नि आलोक
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गुड़िया (लघुकथा )

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बच्चे के कंधे पर एक झोला लटका था। उसके बाएँ हाथ में एक गुड़िया थी। यह गुड़िया साधारण से वस्त्र पहने थी, उसका रंग मटमैला था और उसके काले बाल बिखरे हुए थे। बच्चे के दाएँ हाथ में भी एक गुड़िया थी। इस गुड़िया के तन पर रेशमी वस्त्र थे, उसका रंग बहुत गोरा था और उसके सुनहरी बालों में क़रीने से कंघी की गई थी। बच्चा परदेस जाने का अभिनय कर रहा था और ये दोनों गुड़ियाएँ उसकी दो बीवियों के रोल में थीं। घर के सारे लोग उसके अभिनय को उत्सुकता से देख रहे थे।   

      बच्चे ने गोरी बीवी से कहा, “मुझे परदेस में तुम्हारी बहुत याद आएगी। तुम भी मेरे बिना उदास होओगी, पर रोना मत। मैं जल्दी लौटने की कोशिश करूँगा। और सुनो, हमेशा ऐसे  ही सजी-धजी रहना। मैं तुम्हें ऐसे ही रूप में याद करना चाहता हूँ।” बच्चे ने उस गुड़िया के होंठ चूमे और प्यार से बेड पर लिटा दिया। अब उसने बाएँ हाथ वाली गुड़िया को अपने दोनों हाथों से पकड़ लिया और कहा, “मैं तुम्हें भी याद करूँगा। वैसे तो घर की सारी ज़िम्मेदारी तुम पर ही रही है, अब तुम्हें और भी ज़्यादा ज़िम्मेदार होना होगा। मैं जब लौटूँ तो मुझे कोई शिकायत नहीं मिलनी चाहिये। उम्मीद है, अपना काम ढंग से करोगी। जाओ और अपना काम सँभालो।” इससे पहले कि बच्चा गुड़िया को कहीं रखता, बच्चे की माँ ने उसके हाथ से गुड़िया को लपक लिया। घर के सारे सदस्य बच्चे के शानदार अभिनय पर मुग्ध होकर हँस रहे थे और बारी-बारी से उसे चूम रहे थे। बच्चे की माँ भी हँसना चाहती थी और बच्चे को चूमना चाहती थी, पर वह गुड़िया को अपने सीने से चिपकाये बेसाख़्ता रोये जा रही थी।

– हरभगवान चावला,सिरसा,हरियाणा

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