अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

जन भावनाओं से खिलवाड़ की किसी को इजाजत नहीं

Share

डॉ राजू पाण्डेय

चुनावों से पहले फिर एक बार देश और हमारे पीएम की सुरक्षा संकट में है।हो सकता है चुनावों के बाद प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक का मामला उन असंख्य चुनावी मुद्दों की तरह महत्वहीन बन जाए जिन्हें मीडिया चुनावों के दौरान जीवन मरण का प्रश्न बना देता है। संभव है कि हमेशा की तरह इस बार भी मतदाता सालों बाद यह समझे कि यह मामला केवल चुनावों के लिए गढ़ा गया था और भावनाओं में बहकर मतदान करना एक बड़ी चूक थी।

इस पूरे दौर में सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री के समर्थकों की सक्रियता देखते ही बनती है। सोशल मीडिया पर तैरती अनेक पोस्ट्स बार बार हमसे टकराती हैं। एक पोस्ट कुछ इस प्रकार है- “असली पीएम तो मैं इंदिरा गाँधी को मानता हूं। उनके साथ यदि ऐसा होता जो मोदी जी के साथ हुआ तो अभी तक वहाँ(पंजाब में) राष्ट्रपति शासन लागू हो चुका होता। ऐसे निडर पीएम(श्रीमती इंदिरा गांधी) को मेरा नमन।”

 एक अन्य सोशल मीडिया पोस्ट कहती है- “बड़ा फैसला लेना पड़ेगा नहीं तो दूसरा आघात देश को दशकों पीछे ले जाएगा।” पोस्ट के साथ स्वर्गीय बिपिन रावत और प्रधानमंत्री जी के चित्र हैं। 

एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा गया है- “जिन्हें भी मोदी जी सिर्फ भाजपा के नेता दिख रहे हैं वो याद कर लें मोदी जी भारत देश के प्रधानमंत्री हैं यदि वो असुरक्षित हैं मतलब देश की सुरक्षा पर प्रश्न चिन्ह है।”

एक किंचित विस्तृत सोशल मीडिया पोस्ट के अनुसार “जेएनयू एएमयू और जामिया में छात्र आंदोलन के नाम पर राष्ट्रद्रोही गतिविधियां, पालघर में पुलिस की उपस्थिति में साधुओं की निर्मम हत्या, शाहीन बाग में आंदोलन की आड़ में अराजकता, आतंकवाद और दंगे, किसान आंदोलन के नाम पर अराजकता और दिल्ली को बंधक बनाने की कवायद,लाल किले में खालिस्तानी तांडव,पंजाब में रिलायंस मोबाइल टावर्स की तोड़-फोड़, बंगाल में चुनावों के पहले और चुनावों के बाद भाजपाई कार्यकर्ताओं की निर्मम हत्या,सिंघु बॉर्डर के खालिस्तानी टेंट्स में बलात्कार और निर्मम हत्याएं, पंजाब में भाजपाई विधायकों की कपड़ा फाड़ पिटाई, केरल में भाजपाई कार्यकर्ताओं और संघ के स्वयंसेवकों की निर्मम हत्याएं, बेअदबी के आरोप मढ़कर गुरुद्वारा परिसर में लोगों की नृशंस हत्याएं-  आदरणीय नरेंद्र मोदी जी, इन प्रकरणों पर आपकी सॉफ्ट-पॉस्चरिंग के बाद इस सत्य को कब तलक नकार पाएंगे हम प्रशंसक, कि सख्त प्रशासक की आपकी छवि को अपने सतत षड्यंत्री प्रहारों से ध्वस्त कर देने में कामयाब हो चुके हैं राहुल गांधी।” पोस्ट आगे कहती है-“ये तो स्पष्ट है कि आपकी नजर में कुछेक पार्टी कार्यकर्ताओं और चंद नागरिकों के जीवन की कोई खास अहमियत नहीं। अपने परिजनों को भी त्याग देने वाला आप जैसा निर्मोही खुद के मान-अपमान से भी शायद ही विचलित होता हो अब। पर कल जो घटित हुआ है, वो आपका व्यक्तिगत अपमान भर नहीं है।देश के सर्वोच्च जनतांत्रिक पद को आंखें तरेरी गई हैं। लोकतांत्रिक अस्मिता का चीरहरण हुआ है कल।अब भी अकर्मण्य बने रहे तो मखौल बन कर रह जाएंगे आप।अपनी न सही, देश के प्रधानमन्त्री के पद की गरिमा के लिए तो  उठाइये कड़े कदम..!”

अंत में एक और सोशल मीडिया पोस्ट का उल्लेख जिसमें महाभारत युद्ध और अर्जुन की दुविधा की चर्चा करते हुए कहा गया है कि “ऐसे ही मोदी नहीं लड़ पा रहे हैं तो किसी को तो श्रीकृष्ण बनकर उन्हें रास्ता दिखाना पड़ेगा। जनता से किसी को आगे आना पड़ेगा।”

ऐसी हजारों सोशल मीडिया पोस्ट लाखों लोगों तक पहुंच रही हैं। इन सभी का संदेश स्पष्ट है- प्रधानमंत्री को तानाशाही की ओर अग्रसर होना होगा। उनके समर्थकों का विशाल समुदाय उन्हें एक निर्मम शासक के रूप में देखना चाहता है। एक ऐसा तानाशाह जो अपने विरोधियों और असहमत स्वरों को राष्ट्रद्रोही सिद्ध कर बेरहमी से समाप्त कर देता है। भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की उम्मीदें केवल मोदी जी पर टिकी हैं। केवल वे ही हैं जो यह असंभव कार्य कर सकते हैं।यही कारण है कि उनका जीवन अत्यंत महत्वपूर्ण है। इन सभी पोस्ट्स में इस बात पर निराशा व्यक्त की गई है कि प्रधानमंत्री अपने हिंसक समर्थकों की उम्मीद पर खरे नहीं उतरे हैं।

संभव है कि हिंसक उन्माद से ग्रस्त मोदी जी के ये दीवाने उन्हें एक अलोकतांत्रिक और दमनकारी शासक के रूप में देखना चाहते हों और एक निर्वाचित जननेता से आत्ममुग्ध तानाशाह में मोदी जी के रूपांतरण की धीमी गति उन्हें अधीर कर रही हो। लेकिन यदि इन समर्थकों के माध्यम से मोदी जी देश को यह संदेश दे रहे हैं कि आने वाले समय में हमारे सेकुलर संघात्मक बहुलवादी लोकतंत्र का स्वरूप जबरन बदल दिया जाएगा और बहुसंख्यक वर्चस्व पर आधारित धार्मिक राष्ट्र की स्थापना में जो कोई भी बाधा डालेगा उसे बेरहमी से कुचला जाएगा तो यह हमारे लोकतंत्र के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं।

अपने विरोधियों से, अपने विरुद्ध चल रहे धरने-प्रदर्शन-आंदोलन-घेराव से निपटने के राजनेताओं के अपने अपने तरीके होते हैं। कुछ राजनेता प्रदर्शनकारियों के बीच जाकर सीधे संवाद करते हैं तो कुछ इनका सीधा सामना करने से बचने की कोशिश करते हैं। किंतु अपने ही देश की जनता को षड्यंत्रकारी शत्रु के रूप में देखने की प्रवृत्ति अलोकप्रिय तानाशाहों का सहज गुण होती है किसी निर्वाचित प्रधानमंत्री का नहीं। यदि प्रधानमंत्री जी ने वहाँ उपस्थित पंजाब के वित्त मंत्री या अधिकारियों से यह कहा कि अपने सीएम को धन्यवाद दे दें कि मैं बठिंडा जिंदा वापस लौट आया तो उनके इस कथन पर दुःख और अचरज ही व्यक्त किया जा सकता है। वे देश के प्रधानमंत्री हैं, पंजाब देश का एक सूबा है। पंजाब की जनता और वहां का मुख्यमंत्री भी उनके अपने ही हैं। केंद्र-राज्य संबंधों में तनाव होना कोई असाधारण परिघटना नहीं है किंतु देश के प्रधानमंत्री द्वारा इस तनाव की ऐसी भाषा में सार्वजनिक अभिव्यक्ति अवश्य चिंताजनक रूप से असाधारण है। 

बहरहाल मोदी जी ने अपनी सुरक्षा को चुनावी मुद्दा बनाकर बहुत बड़ा जुआ खेला है। जब मोदी जी की लोकप्रियता शिखर पर थी तब शायद स्वयं को विरोधियों द्वारा अपमानित-लांछित मासूम जननेता के रूप में प्रस्तुत करने की रणनीति उन्हें चुनाव जिता सकती थी। किंतु वर्तमान में जब वे अपनी लोकप्रियता के निम्नतम स्तर पर हैं तब यह सहानुभूति कार्ड कितना काम करेगा कहना कठिन है- विशेषकर तब जब इस प्रकरण में ऐसा कहीं नहीं लगा कि उनकी सुरक्षा को कोई प्रत्यक्ष खतरा है।

इस प्रकरण के माध्यम से मोदी जी को आसन्न विधानसभा  चुनाव के केंद्र में लाने का प्रयास किया गया है। शायद उनके चुनावी रणनीतिकार यह मानते हों कि मोदी जी में इतना करिश्मा शेष है कि बदहाल अर्थव्यवस्था, बढ़ती बेरोजगारी, महंगाई की मार, कोरोना से निपटने में नाकामी तथा किसानों के असंतोष जैसे मुद्दों पर यह मुद्दा भारी पड़ेगा। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि यह प्रकरण विमर्श को मोदी पर केंद्रित करने में कामयाब रहा है। उनके समर्थन और विरोध का दौर चल निकला है। अब परीक्षा मतदाता की परिपक्वता की है। देखना होगा कि क्या उसे इतनी आसानी से भरमाया जा सकता है।

यह घटनाक्रम पंजाब का था लेकिन ऐसा नहीं लगता कि इसका प्रभाव पंजाब विधानसभा चुनाव के नतीजों पर पड़ेगा जहां बीजेपी की अलोकप्रियता इतनी अधिक है कि वह सत्ता की दौड़ में ही नहीं है। इसके माध्यम से उत्तर प्रदेश के उस मतदाता को लक्ष्य किया जा रहा है जिसे सरकारी राष्ट्रवाद के अंध समर्थन के लिए प्रशिक्षित किया गया है।

पुलवामा आतंकी हमले व जवाबी बालाकोट एयर स्ट्राइक आदि के जरिए राष्ट्रीय सुरक्षा पर संकट का मुद्दा पिछले चुनावों में खूब उठा और भाजपा ने इसे जमकर भुनाया भी। यद्यपि यदि राष्ट्रीय सुरक्षा पर कोई संकट था तो इसके लिए सर्वाधिक जिम्मेदार केंद्र सरकार ही थी। पुलवामा हमले में हुई सुरक्षा चूकों का सच जनता शायद कभी न जान पाएगी। अब राष्ट्रीय सुरक्षा और प्रधानमंत्री की सुरक्षा की समेकित बूस्टर खुराक मतदाताओं को दी जा रही है।

पंजाब के मुख्यमंत्री चन्नी यदि प्रथमदृष्टया प्रधानमंत्री की सुरक्षा के विषय में लापरवाही बरतने के दोषी नहीं है तब भी उन्हें इस विषय में अतिरिक्त सतर्कता न बरतने का दोषी तो मानना ही होगा। उन्होंने हताश भाजपा को एक ऐसा मुद्दा प्रदान कर दिया है जिसका उपयोग वह उन सारे राज्यों में कर सकती है जहाँ अगले कुछ दिनों में विधान सभा चुनाव होने वाले हैं। 

प्रधानमंत्री की सुरक्षा में केंद्र और राज्य की अनेक एजेंसियां आपसी तालमेल से कार्य करती हैं। इसलिए ऐसी किसी भी चूक की जिम्मेदारी तय करते समय किसी एक एजेंसी, व्यक्ति या सरकार को दोषी सिद्ध करना कठिन है। किसी एक की भूल, शरारत या षड्यंत्र को पकड़ने और प्रधानमंत्री की सुरक्षा संबंधी निर्णयों की पड़ताल के लिए सक्षम मैकेनिज्म होता है। 

यदि प्रधानमंत्री की सुरक्षा में कोई लापरवाही हुई है तो अवश्य ही इसके दोषियों पर कार्रवाई होनी चाहिए। लेकिन यदि यह मामला थोड़े से हेर फेर के साथ बार बार प्रयुक्त होने वाला कामयाब चुनावी फार्मूला सिद्ध होता है तो जन भावनाओं से खिलवाड़ करने के गुनाहगारों को कौन सजा देगा।

(डॉ राजू पाण्डेय गांधीवादी चिंतक और लेखक हैं।)

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें