अशोक मधुप
उत्तर प्रदेशवासी जानते भी नही कि उनके प्रदेश के बिजनौर बिजनौर के एक संगीत धराने की दुनिया में धूम रही हैं। ये घराना मुंबई के भिंडी बाजार घराने के नाम से मशहूर हुआ।इस घराने से फिल्मी गायिका लता मंगेशकर, मन्ना डे, आशा भोंसले, महेंद्र कपूर, पंकज उधास आदि महत्वपूर्ण हस्तियों ने गायन की शिक्षा पायी।
लता जी ने भी इसी घराने के उस्ताद अमान अली खान से संगीत की शिक्षा ली थी। उस्ताद अमान अली खान का परिवार बिजनौर के मिर्दगान मोहल्ला के रहने वाला था। लता मंगेशकर उनके सबसे काबिल शिष्यों में से एक रहीं।
इस परिवार के दिलावर खान के बड़े भाई ने इस कला को सीखा। (उनके नाम का पता नही चलता) उन्होंने संगीत दिलावर खान को सिखाया ।बड़े भाई मुंबई चले गए। वहां जमने पर उन्होंने दिलावर खान को अपने पास बुला लिया।
मुरादाबाद और बदायूं के कलाकारों पर संगीत में शोध कर रहीं मुरादाबाद की शोध छात्रा रचना रुहेला गोस्वामी के अनुसार उत्तर प्रदेश के बिजनौर जनपद के उस्ताद दिलावर खान बिजनौर के मुहल्ला मिर्दगान में रहते थे। ये परिवार के साथ 1875 के आसपास मुंबई चले गए । मुंबई में रहकर इन्होंने अपने तीन बेटों छज्जू खान, नाजिर खान और खादिम खान को प्रशिक्षित किया।छज्जू खान के तीनों बेटे परंपरागत गायन के लिए प्रसिद्ध हुए।इन्होंने दस हजार से ज्यादा बंदिश तैयार कीं। इनमें से अधिकांश बंदिशें हिंदू देवी-देवताओं की स्तुति में थीं।
उस्ताद छज्जू खान के बेटे उस्ताद अमान अली खान (1888–1953) भिंडी बाजार घराने के सितारे के रूप में जाने गए।अमान अली खान से लता मंगेशकर आदि ने गायन सीखा। । घराने ने भारतीय शास्त्रीय संगीत की सबसे विशिष्ट शैली विकसित की। अमान अली खान ने मैसूर राज्य के दरबारी संगीतकार कलानिधि बिदाराम कृष्णप्पा के मार्गदर्शन में कर्नाटक संगीत का भी अध्ययन किया। खान साहब ने प्रचार से परहेज किया । उन्होंने एक एकांत, आध्यात्मिक जीवन जीना पसंद किया।
अमान अली खान के पौते श्री तहसीन अहमद ने बहरीन से फोन पर बताया कि उस्ताद दिलावर अली खान बिजनौर से मुरादाबाद आए। मुरादाबाद में नवाब पुरा में रहे। वहां से मुंबई गए। तहसीन अहमद किसी कार्यक्रम में भाग लेने आजकल बहरीन गये हुए हैं।
उन्होंने आगे बताया कि उस्ताद अमान अली खान साहब के कोई बच्चा नहीं था। उन्होंने अपनी बहिन के लड़के उनके पिता मुमताज अली खान को गोद ले लिया। उस्ताद मुमताज अली खान पूरी उम्र आकाशवाणी लखनऊ में कलाकार के रूप में काम करते रहे। उन्होंने बताया कि आज उनके दादा के परिवार से बिजनौर में कोई नही रहता। खानदानी घर का क्या हुआ, इसकी भी उन्हें जानकारी नहीं।
इस घराने की विशेषता यह रही कि गायकों ने लंबी अवधि तक सांस नियंत्रित करने मे लोकप्रियता और प्रसिद्धि प्राप्त की। इस तकनीकि का प्रयोग करने इस घराने के कलाकार एक ही सांस में लंबे −लंबे अंतरे गा सकते थे।इसके अतिरिक्त इन्होंने कर्नाटक रागों का भी प्रयोग किया।
घराने की नींव मुंबई के भिंडी बाजार इलाके में 1890 में रखी गई थी। इस घराने की यात्रा नाल बाजार और इमामबाड़ा के बगल में एक गली में शुरू हुई । दिलचस्प है कि चूंकि घराना भिंडी बाजार में रहता था, इसलिए बाद में लोग इसे भिंडी बाजार या भिंडा बाजार घराना कहने लगे। मजेदार बात यह है कि जहां ये रहते हैं यहां न कभी भिंडी बिकीं। न उनका बाजार लगा। फोर्ट के पिछले भाग में बसे बाजार को अंग्रेजों ने बिहांइड द बाजार कहा गया।बिहांइड बाद में बोलचाल में भिंडी हो गया। मराठी में इसे भिंडा बाजार कहते हैं। इसी इलाके में रहने के कारण ये घराना भिंडी बाजार या भिंडा बाजार घराना कहा गया।
ये घराना कोई बॉलीवुड कोचिंग सेंटर नहीं था। यह गंभीर संगीत-केंद्र था। इतिहास यह कहता है कि विलंबित खयाल के उस्ताद यहीं बैठते थे। इस घराने ने सिर्फ गायन के सीखने सीखाने पर जोर दिया।प्रचार से यह घराना दूर रहा। छज्जू खान के बेटे अमन अली खान और अंजनीबाई मालपेकर , इस घराने के प्रसिद्ध प्रतिपादक हैं।
इस घराने के तीसरी पीढ़ी के प्रमुख की शिष्या प्रतिपादक अंजनीबाई मालपेकर रहीं। ये उस्ताद नज़ीर खान (1883-1974) की शिष्या थीं।चौथी पीढ़ी में अमन अली खान (1888-1953) के शिष्य पंडित शिवकुमार शुक्ल (1918-1998) ,रमेश नाडकर्णी (1921-1995),टीडी जानोरीकर ( 1921-2006 )और पांचवी पीढ़ी में ((स्वर्गीय) नीलाताई नागपुरकर; (स्वर्गीय) उपेंद्र कामत; (स्वर्गीय) मंदाकिनी गद्रे; पं. जगन्नाथ ‘संगीतमूर्ति’ प्रसाद; वसंती साठे रहे।
इस परिवार के छज्जू खान एक संत थे।उन्होंने अपना उपनाम नाम अमर मुनि रख लिया था।उन्होंने अमर मुनि के नाम से भगवान शिव की स्तुति गाईं। इनके बेटे उस्ताद अमन अली खान ने पिता के नाम अमर मुनि को आगे बढाया। उन्होंने भगवान शिव की स्तुति ही नहीं देवी –देवताओं के भजन भी अमर मुनि के नाम से गाए। श्री तसकीन अहमद बतातें हैं कि उनके दादा अमान अली खान ने अपने पिता के नाम से हिंदू देवी देवताओं के भजन गाए।
अशोक मधुप
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)