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सेहत की बात : एंटीबायोटिक मेडिसिन्स और उनका इफेक्ट

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डॉ. विकास मानव

    _एंटीबायोटिक दवाओं के असर के बारे में हुए अब तक के सबसे बड़े अध्ययन के अनुसार वर्ष 2019 में दुनिया भर में 12 लाख से अधिक लोगों की मृत्यु ऐसे बैक्टीरिया से हुए संक्रमण की वजह से हो गई जिनपर दवाओं का असर नहीं हुआ. यह आँकड़ा मलेरिया या एड्स से हर साल मारे जाने वाले लोगों की संख्या से ज़्यादा है._
     मेडिकल जर्नल द लैंसेट जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन की रिपोर्ट में कहा गया है कि वैसे तो इसका ख़तरा हर किसी को है मगर ग़रीब देश इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं.

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मेडिकल शब्दावली में दवाओं के बेअसर होने की इस स्थिति को एंटी-माइक्रोबियल रेसिस्टेन्स (एएमआर) कहा जाता है. ये तब होता है जब बैक्टीरिया, वायरस, कवक और परजीवी समय के साथ बदलते हैं और उनपर दवाओं की प्रतिक्रिया नहीं होती. इससे किसी संक्रमण का इलाज कठिन हो जाता है और गंभीर बीमारी के फैलने और उससे मृत्यु का ख़तरा बढ़ जाता है.

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रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे बचाव के लिए ज़रूरी है कि नई दवाओं के लिए तत्काल निवेश किया जाए. साथ ही, मौजूदा दवाओं का अधिक समझदारी से उपयोग हो. बीते कुछ वर्षों में मामूली संक्रमणों के लिए एंटीबायोटिक दवाओं के अति प्रयोग के कारण गंभीर संक्रमणों के ख़िलाफ़ एंटीबायोटिक्स कम प्रभावी हो रहे हैं.
;सामान्य रोग और संक्रमण से लोगों की मौत हो जा रही है जिनका पहले इलाज हो जाता था. और ये इसलिए हो रहा है क्योंकि जिन बैक्टीरिया से ये संक्रमण हो रहे थे वह अब प्रतिरोधी बन गए हैं यानी उनपर इलाज का असर नहीं हो रहा.

एंटीबायोटिक दवाओं के निष्प्रभावी होते जाने को लेकर पहले भी चिंता जताई जाती रही है. हाल ही में ब्रिटेन के स्वास्थ्य अधिकारियों ने चेतावनी दी थी कि एएमआर एक “छिपी हुई महामारी” थी जिनका यदि ज़िम्मेदारी से इस्तेमाल नहीं किया गया तो वो कोरोना महामारी के कारण फिर से उभर सकती है.
रिपोर्ट के अनुसार, कोविड -19 के कारण बड़ी तादाद में लोग अस्पतालों में भर्ती होने लगे और एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग बढ़ा जिसकी वजह से एएमआर का ख़तरा बढ़ गया है.
लैंसेट में छपी एंटीबायोटिक दवाओं के बेअसर रहने से होनेवाली मौतों का अनुमान लगाने वाली ये रिपोर्ट 204 देशों में किए गए विश्लेषण के बाद तैयार की गई. अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की एक टीम की ओर से किए गए इस विश्लेषण का नेतृत्व अमेरिका के वाशिंगटन विश्वविद्यालय ने किया.

इस टीम ने अनुमान लगाया कि वर्ष 2019 में दुनिया भर में ऐसी बीमारियों से 50 लाख तक लोगों की मृत्यु हुई जिनमें एएमआर की भूमिका रही. ये उन 12 लाख मौतों के अलावा है जिनके लिए सीधे-सीधे एएमआर वजह था. यानी लगभग 60 लाख से ज़्यादा लोगों की मौत के पीछे एएमआर की भूमिका हो सकती है.
इसकी तुलना यदि दूसरी बीमारियों से की जाए तो समझा जाता है कि उसी वर्ष एड्स से 860,000 और मलेरिया से 640,000 लोगों की मौत हुई.
एएमआर से होने वाली ज़्यादातर मौतें निमोनिया जैसे लोअर रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन यानी फेफड़ों से जुड़े संक्रमण या ब्लडस्ट्रीम इन्फेक्शन से हुईं जिससे कि सेप्सिस हो सकता है.
एमआरएसए (मेथिसिलिन प्रतिरोधी स्टैफिलोकोकस ऑरियस) विशेष रूप से घातक था. वहीं ई. कोलाई और कई अन्य बैक्टीरिया से होनेवाली बीमारियों के लिए भी दवाओं के बेअसर रहने को वजह माना गया.

शोध के लिए अस्पतालों से मरीज़ों के रिकार्ड्स, अध्ययनों और अन्य डेटा स्रोतों के आधार पर बताया गया कि छोटे बच्चों को सबसे अधिक ख़तरा था. एएमआर से जुड़ी मौतों में हर पाँचवाँ मामला किसी पाँच साल से कम उम्र के बच्चे का था.
इस रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एशिया के देशों में वर्ष 2019 में एएमआर से 389,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई.
इस रिपोर्ट के निष्कर्षों पर प्रतिक्रिया देते हुए भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद या आईसीएमआर में वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर कामिनी वालिया ने कहा कि एएमआर एक वैश्विक आपातकाल जैसा है.
उन्होंने कहा,”बैक्टीरिया का प्रतिरोधी बन जाना एक ऐसी वैश्विक स्वास्थ्य इमर्जेंसी बन चुकी है जिसे दुनिया की कोई भी सरकार अनदेखा नहीं कर सकती. हमें एंटीबायोटिक के उपयोग पर निगरानी करनी होगी ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे भविष्य के लिए प्रभावी रहें.”

वाशिंगटन विश्वविद्यालय में इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन के प्रोफेसर क्रिस मरे ने कहा कि नए डेटा ने दुनिया भर में रोगाणुरोधी प्रतिरोध के वास्तविक पैमाने को उजागर किया है.
प्रोफेसर मरे के अनुसार यह डाटा एक स्पष्ट संकेत था कि “अगर हम रोगाणुरोधी प्रतिरोध से दौड़ में आगे रहना चाहते हैं” तो तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है.
वहीं वॉशिंगटन डीसी के सेंटर फॉर डिजीज डायनेमिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी के डॉक्टर रामानन लक्ष्मीनारायण ने कहा कि एएमआर को नियंत्रित करने के लिए दवाओं के समझदारी से इस्तेमाल की ज़रूरत है.
डॉक्टर लक्ष्मीनारायण ने कहा,” सबसे पहले तो ख़र्च इस बात पर होना चाहिए कि संक्रमण ना हो, और मौजूदा एंटीबायोटिक दवाओं का उचित और समझदारी भरा इस्तेमाल हो, और साथ ही नए एंटीबायोटिक्स भी लाए जाएँ.”
[चेतना विकास मिशन)

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