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वरिष्ठजन की व्यथा : दवा नहीं इस दर्द की!

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 जूली सचदेवा 

   _एक संबंधी के शब्दों में : मै वर्ष 2014 में लगभग 36 साल नौकरी करने के बाद सेवानिवृत्त हुआ था । उस समय मेरे पास पीएफ, ग्रेच्युटी तथा पूर्व में जमा धनराशि को मिलाकर इतना था कि बाक़ी ज़िंदगी मैं आराम से व पूरी शान से गुज़ार सकता था। उस समय बैंकों द्वारा फ़िक्सड डिपाजिट पर 9.50% व्याज दिया जाता था।_

       आज मैं देखता हूँ कि बैंकों द्वारा उन्हीं एफ़डीज पर मात्र 5.5% की दर से व्याज दिया जा रहा है यानि मेरी आय लगभग आधी हो गई है जबकि 2014 की तुलना में महंगाई दुगने से भी ज़्यादा हो गई है।

      यह भी बताना चाहूँगा कि मुझे पेंशन नहीं मिलती है। वरिष्ठ नागरिकों को जो पहले थोड़ी बहुत अतिरिक्त सुविधाऐ मिला करती थी वह सब भी अब बंद हो चुकी है।

      मेडिक्लेम पॉलिसी की दरें भी उम्र बढ़ने के साथ-साथ बढ़ती जा रही हैं जबकि उम्र बढ़ने के साथ साथ चिकित्सा आदि का व्यय भी बढ़ता जाता है।

अब मुझे अपनी जमा पूँजी से प्राप्त व्याज के अलावा प्रति माह अपने मूल धन से भी कुछ धनराशि निकालनी पड़ती हैं और मेरी जमा पूँजी धीरे धीरे कम होती जा रही हैं। मूल धन कम होने का मतलब है कि आगे व्याज भी कम मिलेगा।

     यदि स्थिति ऐसी ही बनी रहती हैं तो अगामी कुछ वर्षों में मेरी जमा पूँजी बिल्कुल ख़त्म हो जायेगी।

      मैं समझता हूँ कि मेरी जैसी स्थिति उन सबकी होगी जिन्हें सेवा निवृत्ति के बाद पेंशन नहीं मिलती है। मैं तो फिर भी अच्छे पद व उच्च वेतनमान से रिटायर हुआ हूँ और मैं अपनी पारिवारिक ज़िम्मेदारियों से सेवानिवृत्त होने से पहले ही मुक्त हो चुका था पर उनकी हालत सोचकर चिंता होती हैं जिन पर पारिवारिक ज़िम्मेदारियों का बोझ भी है और पास में ख़ास जमा पूँजी भी नहीं है। 

मैं समझता हूँ कि आज की तारीख़ में वरिष्ठ नागरिकों के सामने बड़ी चिंताजनक स्थिति उत्पन्न होती जा रही हैं। आज के जमाने में बेटे बेटियों के पास जाकर रहना व वहॉ की परिस्थितियों में अपने को एडजस्ट करना भी आसान नहीं है।

       समझ में नहीं आता कि वरिष्ठ नागरिकों के आने वाले दिन कैसे कटेंगे। कभी कभी तो लगता है कि सरकार की प्राथमिकता में वरिष्ठ नागरिकों की कोई जगह नहीं है और वह इनको बोझ समझती है।

      सरकार को चाहिए कि वरिष्ठ नागरिकों के लिए कुछ ऐसी स्कीम लाये कि वरिष्ठ नागरिक भी पूरे आत्म सम्मान व चिंता मुक्त होकर अपनी बाक़ी ज़िंदगी पूरी कर सके और उन्हें जीवन यापन के लिये किसी पर आश्रित न होना पड़े।

        वरिष्ठ नागरिकों ने पूरी ज़िंदगी सरकारों को अपनी आय से अच्छा ख़ासा टैक्स भी दिया है और अब भी दे रहे हैं तो उन्हें ज़िंदगी के इस पड़ाव पर इतना परेशान क्यों होना पड़ रहा है ?

       _जिन वरिष्ठ नागरिकों को सरकारी पेंशन मिल रही हैं वह तो मज़े कर रहे हैं क्योंकि उनकी पेंशन राशि तो नियमित रूप से सरकार बढ़ा रही हैं पर हमारे जैसे किसके आगे अपनी पीड़ा व्यक्त करे।_

       मेरा सरकार से अनुरोध है कि हम जैसे वरिष्ठ नागरिकों की तरफ़ भी कुछ नज़रें इनायत करे ताकि हम भी कुछ चिंता मुक्त हो सके।

_आज की युवा पीढ़ी भी यह ध्यान रखें कि वह भी कल के वरिष्ठ नागरिक है।_

     {चेतना विकास मिशन}

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