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सत्ता प्रतिष्ठान पत्रकारों का इतना बड़ा दुश्मन क्यों ?

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-निर्मल कुमार शर्मा,

सत्ता प्रतिष्ठान हमेशा अपने किए गए आमजनविरोधी,असंवैधानिक,क्रूरताओं और बर्बरतापूर्ण कृत्यों की परत-दर-परत भेद खोलने और रिपोर्टिंग करने वाले बहादुर और दिलेर पत्रकारों से सदा खार खाएं रहतीं हैं ! उन्हें हमेशा ये डर बना रहता है कि अगर उनके उक्त वर्णित किए गए कुकर्मों और कुकृत्यों का भेद खुल जाएगा,तो जनता में उनके खिलाफ बगावत हो जाएगी,उनका तख्ता पलट दिया जाएगा,इसलिए सत्ता के कर्णधार ऐसे सत्यपरक और यथार्थवादी विचारधारा के बहादुर पत्रकारों और लेखकों को पहले धमकातीं हैं, इसके बावजूद भी वह पत्रकार ‘नहीं सुधरता ! ‘ है,तो ऐसे पत्रकारों को उनकी औकात बताते हुए उन्हें अपनी पुलिस बलों या सेना द्वारा तमाम वीभत्सतम् तरीकों को अपनाते हुए उन्हें ठिकाने लगा दिया जाता है !

              अभी पिछले दिनों सुप्रसिद्ध टीवी समाचार चैनल अल जज़ीरा की एक वरिष्ठ और लोकप्रिय महिला पत्रकार 51वर्षीया शिरीन अबु अकलेह को इज़रायली सुरक्षाबलों ने उस वक़्त हत्या कर दी,जब वे इजरायली कब्जे वाले वेस्ट बैंक स्थित जेनिन शरणार्थी कैंप में इज़रायली सेना द्वारा की जा रही छापेमारी की कवरेज कर रही थीं । बिना सूचना के ही की गई इस गोलीबारी में शिरीन अबु अकलेह के सहयोगी अली अल-समौदी भी गंभीर रूप से घायल हो गए। जबकि शिरीन अबु अकलेह इस अत्यंत दु:खद घटना के वक्त ‘प्रेस लिखी हुई एक जैकेट ‘भी पहन रखीं थीं, जिससे स्पष्ट रूप से यह पता चल रहा था कि वे पत्रकार हैं, लेकिन इसके बावजूद भी उन्हें सीधे चेहरे पर गोली मार दी गई !

           अल जज़ीरा की इस वरिष्ठ पत्रकार शिरीन अबु अकलेह की इज़रायली सुरक्षाबलों ने उस वक़्त निर्ममता पूर्वक हत्या कर दी थी,जब वे इजरायली क़ब्ज़े वाले वेस्ट बैंक स्थित जेनिन शरणार्थी कैंप में इज़रायली सेना द्वारा की जा रही छापेमारी की कवरेज कर रही थीं। बिना सूचना के की गई इस गोलीबारी में अकलेह के सहयोगी अली अल-समौदी भी घायल हो गए।

             उधर इज़रायल के प्रधानमंत्री नफाली बेनेट ने झूठ बोलते हुए यह दावा किया है कि शिरीन अबु अकलेह की हत्या गोलीबारी के दौरान फिलिस्तीनी गोलियों से हुई है ! लेकिन वहां मौजूद तमाम गवाहों ने इस बयान के उलट दावा किया है कि वरीष्ठ और लोकप्रिय महिला पत्रकार 51वर्षीया शिरीन अबु अकलेह की हत्या इज़रायल के एक स्नाइपर हमलावर ने की थी, जिसने बिना चेतावनी के वहां सूचना कवर कर रहे इन पत्रकारों पर गोलियां चला दिया था !

 सर्वत्र अंतर्राष्ट्रीय निंदा  

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          महिला पत्रकार 51वर्षीया शिरीन अबु अकलेह फिलिस्तीनी मूल की अमेरिकी नागरिक थीं ! वे बीते दो दशकों से इज़रायली कब्ज़े और फिलिस्तीनी प्रतिरोध को कवर कर रही थीं। उन्हें इज़रायली सुरक्षाबलों की तरफ से लगातार हिंसा का सामना करना पड़ा था,जबकि अवैध तौर पर बसाए गए इज़रायलियों के निशाने पर भी सदा शिरीन अबु अकलेह ही रहती थीं।

              मीडिया को भेजे गए एक आधिकारिक बयान में फिलिस्तीनी राष्ट्रपति ने कहा है कि शिरीन अबू अकलेह की मौत के लिए पूरी तरह से इजरायल सरकार जिम्मेदार है । बयान में कहा गया है,शिरीन अबू अकलेह की हत्या एक जघन्यतम् अपराध है और फिलिस्तीनियों,उनकी मातृभूमि और उनके पवित्र स्थलों के खिलाफ इजरायली अधिकारियों और वहां के राजनैतिक कर्णधारों द्वारा अपनाई जाने वाली दैनिक नीति का यह हिस्सा है।

              पूर्वी यरुशलम में रहने वाली यह फिलिस्तीनी-अमेरिकी 51वर्षीया महिला पत्रकार शिरीन अबू अकलेह 20 से भी अधिक वर्षों से सुप्रसिद्ध समाचार चैनल अल-जजीरा के लिए काम कर रही थीं। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट अनुसार उन्होंने पिछले बीस वर्षों से फिलिस्तीनी क्षेत्रों में मुख्य रूप से इजरायल और फिलिस्तीनियों के बीच संघर्ष और तनाव को ही  कवर किया था। अल जज़ीरा समाचार चैनल के प्रवक्ता ने अकलेह की हत्या को “नृशंस हत्या ” बताया है।

इस दु:खद घटना के वक्त शिरीन अबू अकलेह के बगल में खड़ी एक फिलिस्तीनी पत्रकार शाजा हमायशा ने सिन्हुआ समाचार एजेंसी को बताया कि ‘ गोली लगने के बाद शिरीन अबू अकलेह कई मिनट तक जमीन पर पड़ी तड़पती रहीं लेकिन इजरायली सैनिकों की गहन गोलीबारी के कारण कोई भी उनकी मदद के लिए उन तक बहुत देर तक नहीं पहुँच सका था ! ‘

         दुनिया के कई प्रख्यात व्यक्तियों ने महिला पत्रकार शिरीन अबू अकलेह की कायरता पूर्ण हत्या पर हैरानी और दु :ख जताया है।  ट्राईकॉन्टिनेंटल इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल रिसर्च के निदेशक विजय प्रसाद ने हत्या की निंदा करते हुए, इस घटना को इज़रायली रंगभेद का एक शर्मनाक उदाहरण बताया है। फिलिस्तीनी अथॉरिटी और कतर सरकार ने भी शिरीन अबू अकलेह की हत्या की निंदा करते हुए वक्तव्य जारी किए हैं। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा है कि “प्रेसिडेंसी इस जघन्यतम् अपराध के लिए इज़रायल सरकार को पूरी तरह दोषी मानती है ! “

            कतर के सहायक वित्तमंत्री लोलवाह अलखातेर ने बुधवार को एक ट्वीट में अकलेह की हत्या को “राज्य प्रायोजित इज़रायली आंतकवाद ” बताया ! ह्यूमन राइट्स वॉच की इज़रायल और फिलिस्तीनी निदेशक ओमार शकीर ने कहा कि अकलेह की हत्या कोई अकेली घटना नहीं है। उन्होंने दावा किया कि इज़रायली सुरक्षाबल प्रायोजित ढंग से फिलिस्तीनी महिलाओं, बच्चों और लोगों के प्रति बेहद ज़्यादा स्तर की हिंसा का इस्तेमाल करते रहते हैं। अल जज़ीरा न्यूज चैनल के अनुसार शकीर ने कहा, “अकलेह की हत्या की यह घटना एक प्रबंधित व्यवहार और कई दूसरे फिलिस्तीनी पत्रकारों की हत्या की पृष्ठभूमि में देखना होगा। “

             एक और प्रतिष्ठित संस्थान कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट यानी सीपीजे के अनुसार इज़रायल और फिलिस्तीन के बीच चलने वाले संघर्ष में 1992 के बाद से 18 पत्रकारों की हत्या हो चुकी है। इज़रायली सुरक्षाबलों ने इसी तरह अप्रैल 2018 में दो फिलिस्तीनी पत्रकारों की उस वक़्त हत्या कर दी थी, जब वे “ग्रेट मार्च ऑफ़ रिटर्न ” नाम के विरोध प्रदर्शन को कवर कर रहे थे। रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स के मुताबिक़, पिछले चार सालों में कम से कम 144 फिलिस्तीनी पत्रकारों को इज़रायली सुरक्षाबलों ने गोरी मारकर उन्हें मौत के घाट उतार दिया है !  

पत्रकारिता के मामले में भारत भी एक अति असुरक्षित देश ! 

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मिडिया रिपोर्ट्स और एक अमेरिकी गैर-लाभकारी समिति तथा प्रेस की स्वतंत्रता और मीडिया पर हमलों पर अपने वार्षिक सर्वेक्षण में वॉचडॉग नामक प्रतिष्ठित संस्थान की रिपोर्ट में कहा गया है कि  केवल पिछले 5 वर्षों में भारत जैसे देश में भी अपने काम के लिए सत्ता प्रतिष्ठानों द्वारा “प्रतिशोध ” में मारे गए पत्रकारों की संख्या दुनिया में सबसे अधिक है, दुनिया भर में 19 पत्रकारों में से चार, जिनकी 2021 में “उनके काम के लिए प्रतिशोध में हत्या ” की गई थी, भारत से थे और एक “खतरनाक असाइनमेंट ” के दौरान पांचवें की मृत्यु हो गई ! ‘दिप्रिंट टीम कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स ‘के अनुसार, जिन पांच पत्रकारों की उनके तथ्यपरक जमीनी काम के कारण उनको गोली मारकर जघन्यतम् हत्या कर दी गई उनके नाम हैं-अविनाश झा, रमन कश्यप,सुलभ श्रीवास्तव,मनीष सिंह और चेन्नाकेशवलु ।

      ‘गेटिंग अवे विद मर्डर ‘ नामक एक रिपोर्ट दो महिला पत्रकारों क्रमश :पत्रकार गीता सेशू और उर्वशी सरकार ने बीते 5 वर्षों के दौरान तैयार किए हैं इनमें से 36 मामले तो सिर्फ 2019 में ही दर्ज किए गए हैं ! छ : मामले तो बिलकुल ताजा हैं जो नागरिकता संशोधन कानून या बिल के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के दौरान हुए,इस रिपोर्ट के अनुसार ‘भारत में पिछले 5 वर्षों 2014 से 2019 के बीच पत्रकारों पर हुए हमलों के दौरान पत्रकारों पर 198 घातक हमले किए गए,जिनमें 40 पत्रकारों को मौत के मुंह में धकेल दिया गया !  ‘

           महिला वीरांगना पत्रकार उर्वशी सरकार अपनी रिपोर्ट में बताती हैं कि ‘किसी घटनाक्रम को रिपोर्ट करने के दौरान भी पत्रकार पर हमले के मामले सामने आए हैं ! साथ ही पत्रकार कई बार अवैध खनन करने वाले माफिया और आपराधिक छवि वाले नेताओं के भी निशाने पर आ जाते हैं ! ‘क्योंकि बहुत बार ऐसा होता है कि ‘ कोई निर्भीक और निष्पक्ष पत्रकार ग्राउंड पर रहकर सिर्फ घटना की रिपोर्टिंग कर रहा होता है,जिससे एक खास अपराधिक, माफिया या राजनैतिक शक्ति को गंभीर चोट पहुंच रही होती है ! ‘

             केरल निवासी पत्रकार सिद्दीकी कप्पन अक्टूबर 2020 से जेल में हैं उनपर उत्तर प्रदेश के कथित योगी मुख्यमंत्री द्वारा हाथरस सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले पर रिपोर्ट करने की कोशिश करने के लिए उन पर भारत के राजद्रोह कानून और कठोर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम या THE UNLAWFUL ACTIVITIES PREVENTION) ACT, 1967 या UAPA के तहत आरोप लगाया गया है। हाथरस में 19 वर्षीय दलित लड़की के साथ कथित सवर्ण ठाकुर गुंडों और दरिंदों ने सामूहिक बलात्कार किया था,उन असामाजिक दरिंदों द्वारा उस अभागी दलित लड़की की जीभ काटी थी,रीढ़ तोड़ी थी ! बाद में अतिनिर्दयतापूर्वक उत्तर प्रदेश के उक्त मुख्यमंत्री ने जानबूझकर ईलाज करवाने में देर करवाई थी, जिससे बाद में अस्पताल में उसकी दर्दनाक मृत्यु हो गई थी,जिसे बाद में उत्तर प्रदेश के कथित योगी मुख्यमंत्री ने जबरन रात के अंधेरे में अपनी पुलिस बलों की मदद से जलाकर सभी सबूत नष्ट करने का कुकृत्य भी किया था !

           सुप्रतिष्ठित पत्रकारिता संस्थान “रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स “द्वारा जारी 2021की रिपोर्ट में वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स ने भारत को पत्रकारिता के क्षेत्र में सबसे ख़तरनाक 180 देशों की लिस्ट से 142 वें स्थान पर रखा है, इसे ‘पत्रकारों के लिए दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से एक ‘कहा गया है। चूंकि नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी ने 2019 में दूसरा जनादेश जीता था,रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि  ‘मीडिया पर हिंदू राष्ट्रवादी सरकार की लाइन पर चलने का दबाव बढ़ गया है ! ‘ हिंदुत्व का समर्थन करने वाले कथित देशभक्त भारतीय सार्वजनिक बहस से ‘कथित राष्ट्र-विरोधी ‘ विचारों की सभी अभिव्यक्तियों को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं !

           -निर्मल कुमार शर्मा, ‘गौरैया एवम पर्यावरण संरक्षण तथा पत्र-पत्रिकाओं में वैज्ञानिक, सामाजिक,आर्थिक, पर्यावरण तथा राजनैतिक विषयों पर सशक्त व निष्पृह लेखन ‘,प्रताप विहार,गाजियाबाद, उप्र,

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