अग्नि आलोक
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अभी तो यात्रा शुरू हुई है.

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विजय दलाल

इप्टा की ढाई आखर प्रेम सांस्कृतिक यात्रा मे  मुक्ति बोध  के कर्म क्षेत्र राजनांदगांव(छत्तीसगढ़) से प्रारंभ कर पांच राज्यों  झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश,  मध्यप्रदेश के कुल 209 स्थानों से शहीदों, लेखकों कवियों, कलाकारों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के स्थान की मिट्टी के पात्र को 23 मई की सुबह इंदौर इप्टा के साथियों ने इप्टा के महासचिव साथी राकेश की उपस्थिति में लखनऊ इप्टा के साथी रिजवान को सौंपा।

*वैसे तो भगतसिंह का जन्म लायलपुर जिले के बंगा गांव में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है। लेकिन उनका पैतृक गांव पंजाब के नवांशहर के खट्कड़ कला गांव भारत में है।*

*वहां इप्टा के साथी जाएंगे और उसी मिट्टी से शहीदों की याद में वृक्षारोपण करेंगे।*

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25 मई को इप्टा का 80वां स्थापना दिवस था।

1943 की 25 मई को मुंबई में इप्टा का प्रथम राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ था । जिसमें सरोजिनी नायडू – अध्यक्ष, अनिल डी सिल्वा – महासचिव तथा ख़्वाजा अहमद अब्बास – कोषाध्यक्ष चुने गये थे।

इस यात्रा के पहले दौर के अंतिम पड़ाव पर जहां एक समूह ने शहीदों की मिट्टी एकत्रित की और उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किए वहीं युवकों के एक समूह ने पिछले दिनों प्रवासी और रोजगार खोने वालों मजदूरों की व्यथा को समर्पित नुक्कड़ नाटक मशीन खेला । समाज के प्रति जिम्मेदार और संवेदनशील दर्शकों और श्रोताओं के लिए 22 मई को इंदौर प्रेस के हाल मे बिताई

शाम यादगार रही।

*21 वह 22 मई को इंदौर की छटा में देश के कोनों कोनों से आए और इंदौर इप्टा के साथियों ने कला के कई रंग बिखेरे।*

*कभी सड़कों के किनारों पर तो कभी शहीदों के स्मारकों पर तो* *कभी कार्यक्रम स्थलों पर जनगीत गुंजे।*

*प्रेस क्लब के हाल में दो एकल नाटकों की शानदार प्रस्तुति हुई।*

*कलाकार वेदा उत्तर भारत से तो*तो जहांआरा हाथ में तिरंगा लेकर दक्षिण भारत से।* *आजादी के 75वें वर्ष पर इप्टा की इस सांस्कृतिक यात्रा के साथियों ने 1857 से लेकर 1947 तक गांव -गांव शहर – शहर में आजादी के आंदोलन से  जुड़े नाम-गुमनाम लोगों के बारे में और उनके संघर्षों के बारे में जानकारियां जुटाई तो इस मुल्क की विशिष्ट और अनूठी सांस्कृतिक विरासत “अनेकता में एकता” के हजारों सच्चे किस्सों को जाना। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध,जैन,अगड़े और पिछड़े सभी मिलकर अंग्रेजों से आजादी के लिए किस प्रकार से लड़ें थे ।*

*इस अनेकता में एकता के विशाल वटवृक्ष में भीड़ तंत्र द्वारा सत्ता की मौन स्वीकृति से दीमक लगाई जा रही है। एक सा खाना खाइए, एक सा कपड़ा पहनिए,एक सा गाना गाते रहिए और राजा के गुणगान करते रहिए। यही देशप्रेम है, यही आजादी है यही सामाजिक न्याय है यही संविधान है और यही लोकतंत्र।………*

यात्रा के पहले दौर के बाद थोड़ा विश्राम है।

विजय दलाल 

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