पुष्पा गुप्ता
_हां जी। वहां तगड़े एन्टीट्रस्ट कानून, याने मोनोपोली विरोधी कानून है। वहां एन्टीकार्टेलाइजेशन कानून तगड़े हैं। वहां मीडिया] और बैंकिग के लोग दूसरे बिजनेस कर ही नही सकते।_
वहां इन सब कानूनों को लागू कराने वाली स्वतंत्र और रीढ वाली ज्यूडीशियरी है। इन कानूनो मे जरूरी बदलाव लाने के लिए स्वतंत्र संसद है।
उल्लंघन हो तो उखाडने वाला मीडिया है। ध्वनिमत का रूल नही । चर्च बनवाकर कोई चुनाव नही जीत सकता। वहां कापोरेट से लिया चंदा (रिश्वत) किसी फर्जी बांड के पीछे छुपाया नही जा सकता।
_इस सिस्टम मे रॉकफेलर, एड्रयू कोर्नेगी, जेपी मार्गन, फोर्ड और बिल गेट्स तक की कंपनियां, मोनोपाली के लिए गलत तरीके अपनाने पर, टुकड़ों मे तोड दी गई। दूसरों को बेचने के लिए मजबूर कर दी गई।_
जरा AT&T केस का अध्ययन कीजिए। फिर जियो ने यहां जो तरीके अपनाए है, का अध्ययन कीजिए। रिलायंस पेट्रोलियम के मुकाबले, जान डी राकफेलर की स्टेण्डर्ड आयल के मामले को देखिए। समान गतिविधियों मे रांफैलर की कंपनी 6 अलग टुकड़ों मे कोर्ट ने बांट दी।
_यहां तो वही चीजें बिजनेस टेक्टिक रूप मे प्रतिष्ठित है। जब तक सोसायटी को मोनोपाली और सत्ता के गठबंधन के चंगुल से बचाने की व्यवस्था न हो, ज्यादा प्राइवेटाइजेशन प्राइवेटाजेशन चिल्लाने की जरूरत नही है।_
विकसित देश बनने के लिए बहुत कुछ करना पडता है। एक ठो मोरपंख चिपकाकर घूमने से कौआ मोर नही बन जाता।
[चेतना विकास मिशन)