डॉ. प्रिया मानवी
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_तमान लोगों की सेचुएशन का प्रतिनिधित्व करता एक जिज्ञासु का प्रश्न :_
हम पति-पत्नि ओशोप्रेमी हैं. उनके बहुत बड़े अनुयायी. “संभोग से समाधि..” नामक उनकी किताब जितनी बार पढ़े, बेहतर मिला. उनके लोगों द्वारा अयोजित कई ध्यान शिविर अटेंड किये: लाखों रूपये जाया हुए लेकिन….! क्या हो सकता है अब भी कुछ?
_हमारा उत्तर :_
किताब पढ़ने से तृप्ति, समाधि, मुक्ति मिलती है? अनुयायी बनने, ख़ासकर मृत-व्यक्ति का अनुयायी बनने से किसी को मंज़िल मिली?
_कोई भी अनुचर कृष्ण, बुद्ध, महावीर, रमण महर्षि, नानक, राधा, मीरा, ओशो आदि जैसों का स्तर अर्जित किया? इस पृथ्वी के इतिहास में से एक भी उदाहरण ऎसा दे सकते हो मुझे?_
और कमर्शियल शिविर? ये क्या अंधत्व है तुम जैसों का? धर्म, अध्यात्म, ध्यान, आत्मा, परमात्मा, तृप्ति, मुक्ति भी बेचने-खरीदने का सब्जेक्ट है क्या?
ध्यान समूह का, व्यापार का, प्रदर्शन का सब्जेक्ट नहीं — वैयक्तिक साधना का सब्जेक्ट है. कुछ हो सकता है अब भी? इस सवाल के जबाब के लिए हमारा एक शिविर लो — बिना कुछ भी दिए.
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_संभोग बुरा नहीं है, यक़ीनन यह एक साधना है. वास्तविक संभोग अत्यंत सरल और स्थूल रूप से परमानंद का अनुभव कराता है. इसीलिए ध्यान से सबकुछ संभव करने वाले ऋषि-महर्षि ही नहीं, भगवान कहे गए लोग भी सम्भोग-योग को साधे._
इस साधना में ईगोलेस, टाइमलेस, बॉडीलेस का लेबल मिलता है और अर्धनारीश्वर यानी अद्वैत की उपलब्धि होती है. यही भगवत्ता है, यही मोक्ष है.
_यह स्तर तब मिलता है ज़ब विशुद्ध प्रेम आधारित दीर्घकालिक संभोग से नर-नारी एकदूसरे को बेसुध कर दें. मशीनी, पाशुविक या मक्खी-मच्छर जैसे चंद मिनटों के अपाहिज संभोग से यह नहीं होता._
अहम है स्वयं को साधना है। दुनियावी संभोग पर नही अटकना है।
अगर आप अपनी पत्नी से सन्तुष्ट नहीं हैं तो उनके रहते किसी और का विचार आपके भीतर आता है तो ये विश्वासघात होगा एक स्त्री के लिए।
पत्नि इस स्थिति मे आपकी नामर्दी से आती है. उसमें आपसे आठ गुना अधिक कामुकता है. वो बचती है आपसे, तो सिर्फ़ इसलिए की आप उसे गरम तक नहीं कर पाते, विस्फोटक बनाना और तृप्त करना तो दूर की बात.
तो अगर आप उनसे सन्तुष्ठ नही है तो उन्हें धोखे में रखकर कहीं बाहर सम्बन्ध बनाना पाप है। खुद को पौरुषपूर्ण बनाएं. पौरुष नहीं है तो आप पुरुष नहीं.
या फिर आप पहले अपनी पत्नी से त्याग पत्र लें. उसके बाद ही किसी दूसरे की तलाश करें।
अमूमन हर स्त्री एक जैसी है. चाहे कितने शरीरों को आप स्पर्श कर लें।आपके भीतर की अपाहिज वासना कभी समाप्त नही होगी।
वासना को समझो कि वो क्या है ? वह जीवन ऊर्जा है. वह कभी समाप्त नही होगी. उसे बस स्वीकार करना पड़ेगा. उसके प्रति एक स्वस्थ दृष्टिकोण अपनाना होगा. पौरुषभरा श्रद्धा भाव पैदा करना होगा उसके लिए. तभी आप उससे मुक्त हो पाओगे।
वीर्य को आननफानन मे बहाकर रिलेक्स होना शीघ्रपतन है. पतन ही नाशक होता है, वह शीघ्र हो तो और बुरी बात. जितनी ऊर्जा समाप्त होगी, उतना ही मौत करीब आएगी।
इस ऊर्जा का प्रयोग आप स्वयं को ऊपर उठाने में कर सकते हो। आप उस परमात्म तत्व को पा सकते हो : इस ऊर्जा को कंडोम मे, मुँह मे, एनल मे, योनि में या हैंडप्रैक्टिस से नाली में बहाने के बजाए. यही बात स्त्री पर भी लागू होती है.
हर पल मौत करीब आ रही है। हर सांस मौत की तरफ ले जा रही है।
उससे पहले की ये जीवन समाप्त हो, उसको जान लो जो शाश्वत है. जो महा जीवन है।
_संभोग करो तो उस यूनिवर्स के स्तर का करो जो शून्यता में ले जाए. जो जीवन की धन्यता बताए. जो आपको जीवन की नई ऊंचाइयों पर ले जाए।_
[चेतना विकास मिशन)