विभाजन की त्रासदी के समय जिसकी आंखों के सामने परिजन की हत्या कर दी गई…, जान बचाकर ट्रेन
में बर्थ के नीचे छुपकर जैसे-तैसे भारत पहुंचे, पेट पालने के लिए जिस व्यक्ति ने पुरानी दिल्ली रेलवे
स्टेशन के सामने झूठे बर्तन साफ किए, जिन्हें ट्रेन में बेटिकट यात्रा करते पकड़े जाने पर सजा सुनाई गई
और सेना की दौड़ में सिर्फ एक गिलास दूध के लिए हिस्सा लिया……यह भारत के उस व्यक्तित्व के
संघर्ष की कहानी है, जिन्हें पूरी दुनिया ने ‘फ्लाइंग सिख’ मिल्खा सिंह के नाम से जाना…और यह उपाधि
उन्हें उसी पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने दी… जहां से उन्हें जीवन का सबसे बड़ा दर्द मिला था…
जन्म: 20 नवंबर 1929| मृत्यु: 18 जून 2021
मिल्खा सिंह, आजाद भारत के पहले स्पोर्ट्स स्टार थे, जिन्होंने अपनी गति और आगे बढ़ने के विश्वास के
साथ करीब एक दशक से अधिक समय तक भारतीय ट्रैक एंड फील्ड पर राज किया। उन्होंने अपने जीवन
में कई रिकॉर्ड्स बनाए। 1956 में मेलबर्न, 1960 में रोम और 1964 में आयोजित टोक्यो ओलंपिक में
उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया। 20 नवंबर 1929 को गोविंदपुरा (अब पाकिस्तान में) में एक सिख
परिवार में जन्मे मिल्खा सिंह का इस खेल से परिचय उसी वक्त हो गया था, जब विभाजन के वक्त
भारत आए और फिर सेना में शामिल हो गए।
ये वह जगह थी जहां उन्होंने अपनी दौड़ने की काबिलियत को और तेज किया। 400 सैनिकों के साथ एक
क्रॉस कंट्री रेस में उन्होंने छठवां स्थान हासिल किया। इस शानदार प्रदर्शन के बाद उन्हें आगे की ट्रेनिंग
के लिए चुन लिया गया। यह उनके खेल जीवन की शुरुआत थी। 1956 में मेलबर्न में आयोजित ओलंपिक
में बिना किसी खास अनुभव के मिल्खा कुछ खास नहीं कर पाए। लेकिन दृढ़ निश्चय के साथ मिल्खा
सिंह मेलबर्न से वापस आए और उन्होंने खुद को ‘रनिंग मशीन’ में बदल दिया। कड़ी मेहनत का फल उन्हें
1958 के कार्डिफ कॉमनवेल्थ खेलों में मिला। ट्रैक एंड फील्ड में व्यक्तिगत स्वर्ण पदक मिल्खा सिंह ने
अपने नाम किया। यह रिकॉर्ड 56 साल तक कायम रहा, इसके बाद 2014 में डिस्कस थ्रोअर विकास गौड़ा
ने यह उपलब्धि हासिल की। 1960 में मिल्खा सिंह के पास पाकिस्तान से भारत-पाकिस्तान एथलेटिक्स
प्रतियोगिता में भाग लेने का न्योता आया। टोक्यो एशियन गेम्स में उन्होंने वहां के सर्वश्रेष्ठ धावक
अब्दुल खालिक को 200 मीटर की दौड़ में हराया था। मिल्खा सिंह ने वहां जाने से इनकार कर दिया था,
क्योंकि विभाजन के समय की कई कड़वी यादें उनके दिल में थीं। लेकिन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू
के कहने पर वह पाकिस्तान गए। यहां एक बार फिर उन्होंने खालिक को हराया। दौड़ के बाद उन्हंे
पदक देते समय पाकिस्तान के राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अय्यूब खां ने कहा, ”मिल्खा आज तुम दौड़े नहीं,
उड़े हो। मैं तुम्हें फ्लाइंग सिख का खिताब देता हूं।” 1960 के रोम ओलंपिक में 400 मीटर की दौड़ में
मिल्खा सिंह को ओलंपिक पोडिया का सबसे बड़ा दावेदार माना जा रहा था। मिल्खा सिंह 45.73 सेकंड के
समय के साथ चौथे स्थान पर रहे थे। ये वो राष्ट्रीय रिकॉर्ड था, जो 40 वर्षों तक कायम रहा।
टोक्यो 1964, मिल्खा सिंह का आखिरी ओलंपिक था, उन्होंने संन्यास लेने से पहले 4×400 मीटर रिले में
भारतीय टीम का नेतृत्व किया था। सालों बाद, मिल्खा सिंह ने अपनी बेटी सोनिया सनवल्का की मदद
से जुलाई 2013 में प्रकाशित अपनी आत्मकथा ‘द रेस ऑफ माई लाइफ’ में अपने अविश्वसनीय करियर
की यादें साझा कीं। इसी पर आधारित बायोपिक ”भाग मिल्खा भाग” भी रिलीज हुई। कोविड-19 महामारी
के बाद 18 जून 2021 को स्वास्थ्य बिगड़ने की वजह से महान स्प्रिंटर का निधन हो गया। जिस समय
उनका निधन हुआ, टोक्यो आेलंपिक शुरू होने ही वाला था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ‘मन की
बात’ कार्यक्रम में मिल्खा सिंह को याद करते हुए कहा था, “जब मिल्खा सिंह अस्पताल में थे, तो मुझे
उनसे बात करने का अवसर मिला था। मैंने उनसे आग्रह किया था कि जब हमारे खिलाड़ी ओलंपिक्स के
लिए टोक्यो जा रहे हैं तो आपको हमारे एथलीटों का मनोबल बढ़ाना है और उन्हें अपने संदेश से प्रेरित
करना है। वह खेल को लेकर इतना समर्पित और भावुक थे कि उन्होंने बीमारी में भी इसके लिए तुरंत
हामी भर दी।”
अपने जीवन भर मिल्खा सिंह को भारत द्वारा ओलंपिक एथलेटिक्स में मेडल न जीत पाने का मलाल
रहा। उनकी इस इच्छा को 11 अगस्त 2021 में नीरज चोपड़ा ने भाला फेंक में गोल्ड मेडल जीतकर पूरा
किया।