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श्रीलंका का राजपक्षे परिवार- सिंहली राष्ट्रवाद को उभार देकर देश को बर्बाद कर दिया

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डॉ.ब्रह्मदीप अलूने

सत्ता द्वारा प्राप्त शक्ति के विकेन्द्रीकरण को परिवार में बांट कर देश के लोकतंत्र को बंधक बनाने और तानाशाही की तर्ज पर उसे नियंत्रित करने का बड़ा उदाहरण पेश करता है श्रीलंका का राजपक्षे परिवार। हिन्द महासागर से सटे इस द्वीपीय देश की रंगत सुनामी तो बदल नही पाई लेकिन 2004 में देश के प्रधानमंत्री बने महिंदा राजपक्षे ने सिंहली राष्ट्रवाद को उभार देकर महज 18 सालों में प्राकृतिक खूबसूरती से भरे इस देश को बर्बाद कर दिया।

महिंदा 2005 से 2015 के बीच श्रीलंका के राष्ट्रपति भी रहे थे और देश में 25 साल से तमिल विद्रोहियों के साथ चल रहे गृह युद्ध का साल 2009 में खात्मा करने के लिए जातीय बहुसंख्यक सिंहलियों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय हो गये। राजपक्षे की श्रीलंका फ्रीडम पार्टी को देश में व्यापक जन समर्थन हासिल था और इसका प्रमुख कारण महिंदा राजपक्षे और उनके छोटे भाई गोटबया की तमिलों के प्रति कड़ी नीतियां थी। बाद में राजपक्षे ने श्रीलंका में सिंहली राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया और इसी के सहारे उन्होंने सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली। विपक्षी यूनाइटेड नेशनल पार्टी की कम होती लोकप्रियता से श्रीलंका में राजपक्षे परिवार मजबूत हो गया और यहीं से पनपा सत्ता का अधिनायकवाद जो इस देश की आर्थिक बर्बादी का कारण बन गया। महिंदा राजपक्षे ने अंध राष्ट्रवाद को बढ़ावा देते हुए और लोगों के विश्वास के बीच सत्ता और देश के प्रमुख प्रतिष्ठानों पर परिवार का कब्जा सुनिश्चित किया। लोग जब सरकार की परिवारवाद और आर्थिक नीतियों के विरोध में आगे आये तो उन्हें राष्ट्र विरोधी बताकर जेल में डाल दिया गया।

सबसे बड़े भाई चमल राजपक्षे श्रीलंका के गृहमंत्री,उनसे छोटे भाई महिंदा राजपक्षे प्रधानमंत्री,उनसे छोटे गोटबया राजपक्षे श्रीलंका के राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के बेटे नमल राजपक्षे श्रीलंका के खेल तथा टेक्नोलॉजी मंत्री तथा चमल राजपक्षे के बेटे शाशेंन्द्र राजपक्षे श्रीलंका के कृषि मंत्री। राजपक्षे परिवार के चौथे भाई बासिल जो एक अमेरिकी नागरिक थे,को पहले राष्ट्रपति का वरिष्ठ सलाहकार नियुक्त किया गया और बाद में उन्हें विशेष अधिकार का उपयोग करते हुए संसद में प्रवेश देकर आर्थिक नीति तथा योजना क्रियान्वयन की नई जिम्मेदारी दे दी गई।

राष्ट्रपति गोटबया राजपक्षे की चचेरी बहन निरुपमा राजपक्षे और उनके पति थिरुकुमार नदेसन ने लंदन और सिडनी में लग्जरी अपार्टमेंट खरीदने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक शेल कंपनी को नियंत्रित करने और निवेश करने के आरोप लगे थे। निरुपमा महिंदा राजपक्षे के दूसरे राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान जल आपूर्ति और जल निकासी के उप मंत्री थे। गोटबया राजपक्षे देश के रक्षा सचिब और रक्षा मंत्री रह चूके थे जिनकी छवि अल्पसंख्यक तमिलों के प्रति बेहद क्रूर मानी जाती है। 2019 में जब वे देश के राष्ट्रपति का चुनाव मैदान में थे,तब उन्होंने सिंहली राष्ट्रवाद को आतंक के स्तर पर पहुंचा कर सैकड़ों वर्षों से वहां रहने वाले तमिलों के मानवीय अधिकारों को ख़ारिज कर दिया था।

राष्ट्रपति चुनाव के लिए श्रीलंका पीपुल्स पार्टी का प्रत्याशी नामित होने के बाद गोटबया ने कहा था कि अगर वह जीतते हैं तो युद्ध समाप्ति के बाद संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद् के समक्ष जताई गई उस प्रतिबद्धता या मेलमिलाप का सम्मान नहीं करेंगे,जिसमें मानवाधिकार,,जवादेही और परिवर्ती न्याय को लेकर प्रतिबद्धता जताई गई है। सिंहलियों ने उन्हें नायकों की तरह सम्मान दिया बाद में वे भारी मतों से चुनाव जीत गए। उन्होंने सत्तारूढ़ पार्टी के उम्मीदवार सजीत प्रेमदास को 13 लाख से अधिक मतों से पराजित किया। गोटबया वह व्यक्ति हैं जिन्हें लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम के साथ तीन दशक से चल रहे गृहयुद्ध को निर्दयतापूर्ण तरीके से खत्म करने का श्रेय जाता है। गोटबाया को तमिल क्रूर शासक की तरह देखते रहे है। तमिल राजनीतिक दल राजपक्षे के प्रबल विरोधी हैं जिन्होंने 2009 में अलगाववादियों के खिलाफ युद्ध के अंतिम चरण में नागरिकों के व्यापक मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों का सामना किया है। गोटबया पर उनकी देखरेख में नागरिकों और विद्रोही तमिलों को यातना दिये जाने और अंधाधुध हत्या तथा बाद में राजनीतिक हत्याओं को अंजाम दिये जाने का आरोप है।

सिंहली बहुल राष्ट्र को अपने सबसे गहरे आर्थिक मंदी से बाहर निकालने के लिए लाखों लोगों ने एक नए राष्ट्रपति का चुनाव करने के लिए मतदान किया था लेकिन गोटबया के इरादे कुछ और ही थे। उन्होंने अपने चुनाव अभियान में सिरीसेना सरकार के दौरान दोषी पाए गए सैनिकों को छोड़ने का वादा किया था। सिरीसेना सरकार ने कुछ सैनिकों के खिलाफ अधिकारों के कथित दुरुपयोग के लिए जांच शुरू करने का आदेश दिया था। 2000 में तमिल बहुल उत्तरी प्रांत में तैनाती के दौरान श्रीलंकाई सैनिक सुनील रत्नायके एक बच्चे समेत आठ नागरिकों की हत्या का आरोप लगाया गया था। 2015 में उच्च न्यायालय ने उन्हें हत्या का दोषी ठहराया था। उन सब्जे बाद भी राष्ट्रपति गोटबया राजपक्षे ने सैनिक की सज़ा माफ़ कर दी।
तमिल राजनेताओं और मानवाधिकार समूहों के दबाव के बाद रत्नायके और 13 अन्य सैनिकों पर तत्कालीन सरकार ने आरोप तय किए थे। बाद में उनमें से नौ को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया,जबकि रत्नायके को 15 मामलों में दोषी ठहराया गया था। उसके चार सहयोगियों को कोई सबूत नहीं मिलने पर बरी कर दिया गया था। श्रीलंका में कई तमिलों को बंदी बनाया गया था जिन पर बाद में श्रीलंका की सेना ने खूब अत्याचार किए गये थे। मानवाधिकारों के लिए संयुक्त राष्ट्र की उच्चायुक्त मिशेल बैशलेट ने कहा कि राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे की ओर से सैनिक को दी गई माफी पीड़ितों का अपमान करने जैसा बताया था।

राजपक्षे परिवार ने सत्ता पर कब्जा करने के बाद संविधान में बदलाव करने की ओर कदम बढ़ा लिए थे इसके साथ ही वे साथ देश की सामरिक नीतियों में भी आमूलचूल परिवर्तन कर भारत को चुनौती देते नजर आ रहे थे। भारत की चेतावनी के बाद भी वन बेल्ट वन रोड़ परियोजना से श्रीलंका के कायाकल्प होने की धून में श्रीलंकाई नेतृत्व ने दुबई और सिंगापूर की तर्ज पर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का केंद्र श्रीलंका को बनाने की चीनी पेशकश को आँख मूंदकर स्वीकार कर लिया। भारत की तमाम कोशिशों के बाद भी श्रीलंका इस तथ्य को दरकिनार करता रहा है की भारत से सांस्कृतिक और भौगोलिक निकटता सामरिक दृष्टि से उसके लिए भी ज्यादा असरदार साबित होती है। चीन के गहरे व्यापारिक हित श्रीलंका में है। चीन और श्रीलंका के बीच दक्षिण समुद्री बंदरगाह हम्बनटोटा को लेकर अरबों डॉलर का समझौता भारत की अनदेखी करने की श्रीलंका की नीति के कारण ही संभव हुआ। श्रीलंका में चीन की अनेक परियोजनाएं चल रही है और उसने श्रीलंका को तकरीबन डेढ़ सौ करोड़ डॉलर का कर्ज़ भी दे रखा है। मध्यपूर्व से होने वाले तेल आयात के रूट में श्रीलंका एक अहम पड़ाव है,इसीलिए चीन की यहां निवेश करने में रुचि है।

राजपक्षे परिवार के प्रभाव में संसद ने पोर्ट सिटी इकोनॉमिक कमिशन बिल भी पारित किया था। यह बिल चीन की वित्तीय मदद से बनने वाले इलाकों को विशेष छूट देता है। विशेष आर्थिक ज़ोन विकसित करने और विदेशी निवेश को आकर्षित करने के नाम पर बनाये गए इन कानूनों को लेकर न तो विपक्षी दलों से बात की गई और न ही देश में आम राय कायम करने की कोशिश की गई।

श्रीलंका की राजपक्षे सरकार अपने देश के आर्थिक मॉडल को बदल देने की योजनाओं को आगे बढ़ा रही थी। वह छोटे किसानों के हितों की अनदेखी करके जैविक खेती के चीन के व्यापारिक मॉडल में उलझ गई। राजपक्षे सरकार ने अचानक ही रासायनिक खाद और कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगा दिया,इससे कृषि समुदाय पर व्यापक रूप से असर पड़ा है और कृषि अर्थव्यवस्था चौपट हो गई।

राजपक्षे परिवार देश की 70 फीसद बजट पर प्रत्यक्ष नियंत्रण रखता है। चीन से श्रीलंका के कितना कर्ज और किन शर्तों पर लिया,इसका उल्लेख कहीं नहीं है। राजपक्षे परिवार ही वित्त सम्बन्धी देश के समझौते करता था,अत: उसकी सच्चाई प्राप्त करना आसान नहीं है,इसे लेकर वैश्विक आर्थिक एजेंसियां भी सकते में है। बहरहाल राजपक्षे परिवार ने एक लोकतांत्रिक देश को अंध राष्ट्रवाद में उलझाकर बर्बाद कर दिया। यह दुनिया के उन अन्य लोकतंत्रिक देशों के लिए सबक है,जहां सरकार की नीतियों का आंख मूंद कर समर्थन कर दिया जाता है।

लेखक डॉ.ब्रह्मदीप अलूने स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।

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