अग्नि आलोक
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साधो ! यह मुर्दों का देश !*

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पुरखे मर गए करत गुलामी,
मिली उन्हें सिरफ बदनामी ;
बदले कितने रूप और वेश,
साधो है यह मुर्दों का देश !

                   पूजे मिट्टी,पत्थर-कंकड़, 
        चिलम चढ़ाए,बन गए फक्कड़ ;
   बुद्धि,ज्ञान का नहीं परवेश.

साधो है यह मुर्दों का देश !

              नरक बनाया इस जनम को, 
          रहे ताकते वो पुनर्जनम को ; 
       मुंडी मुड़ाए या बढ़ाए केश,

साधो है यह मुर्दों का देश !

                 पोथी से हरदम वैराग्य रहा, 
          भजन,कीर्तन ही भाग्य रहा ;
   नहीं हिले हम,कतिनो लागे ठेस,

साधो है यह मुर्दों का देश !

              मुफत का खाए,बड़ा कहाए, 
          करें पाप और गंगा नहाए ;
     कभी रहे ना दुख-कलेश,

साधो है यह मुर्दों का देश !

                दास बना यह मेहनतवाला, 
        मिला न पूरा कभी निवाला ;
    भजता रहा विष्णु,महेश,

साधो है यह मुर्दों का देश !

               मालिक मारे,चाहे लतिआवे, 
          बिन गारी न कबहूँ बतिआवे ;
     कबहूँ ना तनिको लागे ठेस,

साधो है यह मुर्दों का देश !

                 नीचे मालिक,ऊपर भगवन, 
            दास,गुलाम कहाए रड़वन ;
      ना घर आपन,ना आपन देश,

साधो है यह मुर्दों का देश !

           भोगा नरक स्वर्ग की खातिर ! 
   मालिक बड़ा जालिम-शातिर ;_
ना कोई चिट्ठी,ना कोई संदेश,_

साधो है यह मुर्दों का देश !

    - प्यारे लाल भोजपुरिया, मुंबई, संपर्क - 86522 18750_*

      संकलन -निर्मल कुमार शर्मा गाजियाबाद उप्र संपर्क - 9910629632_

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