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बिहार से पहले बीजेपी ने 5 पार्टियों का जनाधार खिसकाया

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BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा 31 जुलाई को पटना में अपने कार्यकर्ताओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा- ‘बीजेपी अपनी विचारधारा में ऐसे ही आगे बढ़ती रही तो इस देश में केवल BJP रह जाएगी और सभी पार्टियां खत्म हो जाएंगी।’

इस बयान के 9वें दिन नीतीश कुमार ने BJP से अपना नाता तोड़ लिया है। दो दिन पहले यानी 7 अगस्त को JDU के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने आरोप लगाया था कि बीजेपी हमारी पार्टी को कमजोर करने की साजिश रच रही है।

 BJP से दोस्ती करने वाली 5 बड़ी क्षेत्रीय पार्टियों का क्या हाल हुआ…

राज्य: उत्तर प्रदेश

गठबंधन: BSP+BJP

26 साल पहले BSP से गठबंधन के बाद BJP पर लगा था MLA तोड़ने का आरोप
2 जून 1995 को लखनऊ गेस्ट हाऊस कांड के बाद BSP और SP गठबंधन टूट गया। इसके बाद BJP के समर्थन से BSP ने सरकार बनाई। मायावती इस सरकार की मुख्यमंत्री बनीं लेकिन करीब 6 महीने के भीतर BJP ने समर्थन वापस लिया और सरकार गिर गई।

1996 का विधानसभा चुनाव: इसके बाद राज्य में विधानसभा चुनाव हुआ। जनता ने फिर से किसी एक दल को बहुमत नहीं दिया। नतीजा यह हुआ कि किसी दल की सरकार नहीं बन पाई। BJP-BSP ने ही साथ आने का फैसला किया।

दोनों दलों के बीच 6-6 महीने के मुख्यमंत्री पद अपने पास रखने की बात पर सहमती बनी। इस फॉर्मूला के आधार पर पहले मायावती UP की मुख्यमंत्री बनीं। 6 महीने के बाद मायावती ने अपने सीएम पद से इस्तीफा दिया तो कल्याण सिंह राज्य के मुख्यमंत्री बने। कुछ दिनों के भीतर कल्याण सिंह ने मायावती के कई फैसलों को बदल दिया तो 19 अक्टूबर 1997 को मायावती ने अपना समर्थन वापस ले लिया।

हालांकि, मायावती की नाराजगी कल्याण सिंह ने पहले ही भांप ली थी, लेकिन समर्थन वापस लेने से पहले ही कल्याण सिंह BSP और कांग्रेस के कई विधायकों को तोड़कर अपने साथ लाने में कामयाब रहे। जिसके बाद मायावती ने BJP पर उनकी पार्टी तोड़ने का आरोप लगाया था।

इस समय दो बड़ी घटना घटी थी..

पहला: जब कल्याण सिंह ने अपना बहुमत साबित किया तो पहली बार सदन के अंदर जमकर मारपीट हुई।

दूसरा: दूसरे दलों से टूटकर समर्थन देने वाले 93 विधायकों को कल्याण सिंह ने मंत्री बना दिया। ये भारत में सबसे ज्यादा मंत्रियों वाली सरकार थी।

राज्य: महाराष्ट्र

गठबंधन: शिवसेना+BJP

1990 में BJP के साथ शिवसेना ने किया गठबंधन, अब दो हिस्से में बंटी पार्टी
1990 विधानसभा चुनाव: पहली बार शिवसेना और BJP ने साथ मिलकर महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव लड़ा। शिवसेना ने 183 सीटों पर चुनाव लड़ा जिसमें 52 सीटों पर जीती, वहीं BJP 104 सीटों में से 42 सीटों पर जीत दर्ज की। हालांकि इस गठबंधन को बहुमत नहीं मिला।

5 साल बाद यानी 1995 में दोनों दल एक साथ फिर महाराष्ट्र के चुनावी मैदान में थे। इस बार गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिल गया। शिवसेना 73 सीटें जीती और भाजपा 65 सीटों पर। हालांकि 80 सीटों के साथ कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनी।

2009 विधानसभा चुनाव: BJP-शिवसेना गठबंधन में शिवसेना हमेशा बड़े भाई की भूमिका में रही, लेकिन 2009 के चुनाव में स्थिति उलट गई। भाजपा ने 46 सीटें जीतीं और शिवसेना ने 45 सीट।

2014 विधानसभा चुनाव: इस बार शिवसेना ने भाजपा से अलग विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया। इस चुनाव में भाजपा को 122 सीटें मिलीं और शिवसेना को 63 सीट।

2019 विधानसभा चुनाव: इस बार फिर दोनों पार्टियां फिर एक साथ आईं। इस चुनाव में भाजपा ने शिवसेना से 38 ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा। इसका असर नतीजों पर दिखा। भाजपा ने रिकॉर्ड 106 सीट जीतीं वहीं शिवसेना को 56 सीटों पर सिमट गई।

इसके बाद शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद को लेकर गठबंधन तोड़ दी। उद्धव ने NCP और कांग्रेस के मिलकर महा-विकास अघाड़ी बनाकर महाराष्ट्र में सरकार बना ली और मुख्यमंत्री बने उद्धव ठाकरे।

अब शिवसेना के बड़े नेता और उद्धव के करीबी एकनाथ शिंदे ने BJP की मदद से पार्टी में बगावत कर दी। इसके बाद BJP के साथ मिलकर शिंदे ने सरकार बनाई। इस तरह शिवसेना दो हिस्सों में बंट गईं।

2022 विधानसभा चुनाव: इस बार पंजाब में BJP अपने पुराने दोस्त रहे अकाली दल के खिलाफ पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ी। 2022 विधानसभा चुनाव से पहले अकाली दल टूट के कगार पर चले गई थी। कई बडे़ नेता जैसे जगदीप सिंग नकाई, अनीश सिडाना BJP में शामिल हो गए थे। परिणाम यह हुआ है कि आज अकाली दल के पास सिर्फ 3 विधायक हैं।

राज्य: बिहार

गठबंधन: JDU+BJP

2005 में पहली बार हुई दोस्ती, अब पार्टी तोड़ने की बात कहकर NDA से अलग हुआ JDU
2005 विधानसभा चुनाव: 2003 से पहले जनता दल यूनाइटेड का नाम ‘जनता दल’ हुआ करता था। नाम बदलने के बाद पहली बार 2005 में BJP और JDU दोनों ने मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा था। चुनाव के बाद किसी दल के पास स्पष्ट बहुमत नहीं होने की स्थिति में इसी साल एक बार फिर से चुनाव हुआ था।

दूसरी बार हुए चुनाव में JDU 139 सीटों पर चुनाव लड़ी और 88 सीटें जीतीं। इस तरह JDU सबसे बड़ी पार्टी बन गई। BJP ने 102 सीटों पर कैंडिडेट उतारे थे और 55 सीटों पर जीत मिली थीं। इस चुनाव में RJD को 54, कांग्रेस को 9 और LJP को 10 सीटें मिली थी। तब से अब तक ज्यादातर समय दोनों दल गठबंधन में रहे।

2015 विधानसभा चुनाव: साल 2015 में नीतीश कुमार ने एंटी इनकंबेंसी से बचने के लिए एक्सपेरिमेंट किया। नीतीश भाजपा को छोड़कर राजद और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़े।

इस चुनाव में JDU को 71 सीटें मिलीं, राजद को 80 और भाजपा को 53 सीटें मिली। हालांकि, गठबंधन ने बीच में ही दम तोड़ और नीतीश वापिस भाजपा के पास लौट गए।

2020 विधानसभा चुनाव: इस चुनाव में NDA में होने के बावजूद LJP सभी सीटों पर चुनाव लड़ी। नतीजा ये हुआ कि नीतीश की पार्टी 45 सीटों पर सिमट गई। अब वह राज्य में तीसरे नंबर की पार्टी है।

फिलहाल NDA से अलग होने से पहले JDU के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने BJP पर उनकी पार्टी को तोड़ने की साजिश करने का आरोप लगाया है। साथ ही 2020 चुनाव में कम सीटें आने के लिए भी BJP को जिम्मेदार ठहराया।

अब ग्राफिक्स के जरिए समझिए कैसे 2005 में BJP से गठबंधन के वक्त जो JDU राज्य की सबसे बड़ी पार्टी थी और अब वह राज्य की तीसरे नंबर की पार्टी बन गई है…

राज्य: जम्मू-कश्मीर

गठबंधन: PDP+BJP

2015 में PDP ने BJP से गठबंधन कर बनाई सरकार अब खतरे में भविष्य
2014 में मोदी सरकार बनने के सालभर बाद 2015 में BJP और PDP के बीच गठबंधन हुआ। जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए यह गठबंधन चौंकाने वाला था। इससे पहले BJP हमेशा PDP पर अलगाववादी समर्थक होने का आरोप लगाती रही थी। दोनों की विचारधारा भी उलट थी।

इस सबके बावजूद 1 मार्च 2015 को भाजपा के समर्थन से मुफ्ती मोहम्मद सईद जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री बने। उनके निधन के बाद 4 अप्रैल 2016 को उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती मुख्यमंत्री और BJP के निर्मल सिंह डिप्टी सीएम बने।

तब PDP के कई नेताओं ने कहा था कि ‘इस गठबंधन से PDP ने साख खो दी है।’ इस गठबंधन के बावजूद सिर्फ धारा 370 को खत्म किया बल्कि जम्मू कश्मीर को राज्य से केंद्रशासित प्रदेश बना दिया।

नतीजा यह रहा की PDP और नेशनल कांफ्रेंस से उनका सबसे बड़ा मुद्दा ही छिन गया। PDP के नेताओं को महीनों तक नजरबंद रहना पड़ा। ऐसे में अब इन दलों का राजनीतिक भविष्य ही खतरे में है। इसके बाद से अबतक यहां दोबारा चुनाव नहीं हो पाया है।

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