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बलात्कार सिर्फ़ सृष्टि का सर्वोत्तम प्राणी मनुष्य करता है

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पुष्पा गुप्ता 

    _कोई भी जानवर बलात्कार नहीं करता, खुद को सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहने वाले आदमी के आलावा._

     जब भी बलात्कार की कोई घटना सामने  आती है तो तरह-तरह के शब्दों से उसकी भर्त्सना की जाती है। उनमें से एक शब्द है पाशविक। लेकिन बलात्कार को पाशविक कहना पशु का अपमान है, क्योंकि कोई पशु बलात्कार नहीं करता।

    मनुष्य भी एक पशु ही है, लेकिन वह स्वयं को पशुओं से अधिक विकसित मानता है, क्योंकि उसके पास बुद्धि है, मन है। पशु शब्द का अर्थ होता है -जो पाश में पड़ा हो, बंधन में पड़ा हो।

     _धन का बंधन है। पद का बंधन है। मोह के बंधन हैं। लोभ के बंधन हैं। क्रोध के बंधन हैं और सबसे बड़ा सेक्स का बंधन है। इस पृथ्वी पर बहुत थोड़े से ही मनुष्य हुए हैं, जो इस पशुता को पार कर गए हैं। और जिन्होंने आत्मा को जाना है।_

       लेकिन पशुओं में ऐसी वृत्तियां नहीं होतीं, जैसी मनुष्य में होती हैं। बलात्कार के लिए अत्यंत दमित और विकृत मानसिकता की जरूरत होती है, जैसी आधुनिक मनुष्य की हो गई है। हमें पशुओं का सम्मान करना सीखना चाहिए, क्योंकि वे इन मामलों में आदमी से बेहतर हैं।

.     मनुष्य जब आदमियों को मारता है या बलात्कार करता है, तो वह बहुत ही गैर पाशविक काम करता है। सदियों से सिखाई हुई नैतिकता ने नैसर्गिक वृत्तियों का दमन करवाया। और दमन से सिर्फ पाखंड पैदा हुआ है।

      _इससे आदमी की जिंदगी दोहरी हो गई है। बाहर कुछ, भीतर कुछ। अभी दिल्ली के गैंग रेप को लेकर सभी चैनलों पर दिन-रात चर्चाएं हुईं। सभी वक्ता नैतिकता का चश्मा पहनकर बलात्कार की भीषण समस्या का इलाज ढूंढ रहे थे।_

       केवल 23 साल के एक युवक ने फ्रायड की बात की। उसने कहा, फ्रायड ने मन के तीन तल खोजे हैं -चेतन, अवचेतन और पराचेतन। मनुष्य की सभी कुंठाएं, यौन ग्रंथियां अवचेतन में दबाई जाती हैं और वे ही बलात्कार जैसे काम करवाती हैं। और यह दमन बचपन में परिवार में ही सिखाया जाता है। अत: इलाज परिवार का किया जाना चाहिए।

हम बलात्कार की तो निंदा करते हैं, लेकिन यह नहीं पूछते कि बलात्कार पैदा ही क्यों होता है। मैं भी विरोध में हूं बलात्कार के, लेकिन मैं जड़ से विरोध में हूं। मैं चाहती हूं एक और ही तरह की सामाजिक व्यवस्था होनी चाहिए। एक और ही तरह की मन की आयोजना होनी चाहिए।

       _कुछ आदिवासी समाज हैं, जैसे बस्तर का आदिवासी समाज है, वहां बलात्कार कभी नहीं हुआ। अगर बस्तर के आदिवासियों के बीच बलात्कार नहीं होता, तो आप तो सभ्य हो, सुसंस्कृत हो, तुम्हारे बीच तो बलात्कार होना ही नहीं चाहिए। मगर जितने सभ्य, जितने सुसंस्कृत, उतना ज्यादा बलात्कार।_

         आदिवासी जंगली हैं, मगर बलात्कार नहीं करते। क्या कारण होगा? कारण यह है कि वे लोग प्रकृति के साथ जीते हैं, उनके भीतर नैतिकता द्वारा सिखाया हुआ दमन नहीं है। वे स्वाभाविक जीवन जीते हैं।

जैसे ही बच्चे यौन की दृष्टि से प्रौढ़ होने लगते हैं, उन्हें घोटुल में सोना पड़ता है। और उनको पूरी स्वतंत्रता है कि वे प्रेम करें। हालांकि इसके कुछ नियम भी हैं। एक नियम यह है कि कोई भी लड़का, किसी लड़की के साथ तीन दिन से ज्यादा न रहे। ताकि वह कई स्त्रियों को जान सके।

     _इसी तरह स्त्रियां भी कई पुरुषों को जान पाती हैं। जीवन साथी एक-दूसरे के सिर पर थोपे नहीं जाते। और इस तरह दो वर्ष घोटुल में रहने के बाद वे तय करते हैं किसे जीवन साथी के रूप में अपने लिए कौन पंसद है। फिर उनकी शादी की जाती है।_   

        बलात्कार लक्षण है कि बीमारी हद से बाहर गई है। अब दमन की नैतिकता नहीं चलेगी। मनोविज्ञान को समझकर, प्रकृति के साथ जीकर बच्चों को पालना होगा।

     [चेतना विकास मिशन]

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