कल पता चला कि जेल के भीतर भ्रष्ट सिस्टम पर न्यायापालिका का भी कोई कंट्रोल नहीं है। रूपेश जी की जगह चेंज करने की बात पर जेल प्रशासन को सीजेएम मंजू कुमारी द्वारा फटकार लगाई गयी थी, जगह चेंज करने का उन्हें सख्त निर्देश दिया गया था, मुलाकाती में रूपेश जी ने बताया कि , सीजेएम मंजू कुमारी ने उन्हें तुरंत जगह बदलने का निर्देश देते हुए यहां तक कहा कि ” या तो रूपेश जी को सामान्य कैदियों सा रखा जाए या इतने खतरनाक है तो सेंट्रल जेल भेज दिया जाए,” इस आदेश के बाद तो लगा बदलाव जरूर होगा क्योंकि कोर्ट के आदेश को न मानना कोर्ट की अवमानना है। कम से कम ये लोग कोर्ट की तो इज्जत करेंगे, मगर फिर भी रूपेश जी को दूसरी सुरक्षित जगह शिफ्ट नहीं किया गया। कोर्ट के आदेश का भी इनके लिए कोई महत्व नहीं है। सबसे ऊपर ये खुद को ही मानते हैं।
एक पत्रकार को सुरक्षित जगह रखने की बात शायद इन्होंने अपने ताकत पर ले लिया है, इसलिए न ही कोर्ट की, न ही विधायक की, न ही पत्रकार की और न ही वकीलों की बातें ये मान रहे हैं, क्योंकि पत्रकारों ने भी रिपोर्ट द्वारा इस बात को उजागर किया पर कोई असर न पड़ा, बगोदर विधायक ने विनोद कुमार सिंह द्वारा भी इस विषय पर विधानसभा में आवाज उठाई गई, पर कोई पहल नहीं हुई, वकील द्वारा पेटिशन लगाए गए, सीजेएम द्वारा फटकार लगाई गयी, मगर कोई बदलाव नहीं हुआ।
जेल के अंदर की काली दुनिया को जेल प्रशासन एक पिरामिड में बंद रखना चाहती है जिसके अंदर कोई झांक न सके। यहां यह मेंशन करना भी जरूरी होगा कि मुलाकात की जो व्यवस्था है वह कैदियों के साथ मजाक के अलावा कुछ नहीं है।आप लोहे के रड से बने घेरे के सामने खड़े होंगे जहां टेलीफोन लगा है, उस जाली से 7,8 फीट के बाद एक कमरा हैं जिसमें शीशा लगा हुआ है पर वह शीशा ऐसा है जिससे चेहरा बड़ी मुश्किल से दिख पाता है, उस टेलीफोन से आप बात किजिए और आधा-अधूरा चेहरा देखकर समझ लिजिए कि आपने मुलाकात कर ली है। कैदी के रूप में इंसान की जिंदगी को किस तरह बदरंग किया जाता है हम यहां देख सकते हैं, जबकि कितने कैदी ऐसे होंगे जो फर्जी तरीके से फंसाए गए होंगे। जेल की सलाखों के पीछे एक बहुत बड़ी काली दुनिया है जिसे बहुत मजबूत दीवार से जेल प्रशासन ने घेर रखा है। जरूर है हमें इस दीवार से उधर झांकने की ताकि कैदी के रूप में जिंदगी की इस कुव्यवस्था को थोड़ा सा सुधारा जा सके।
रूपेश जी ने सरायकेला जेल में अभी जब 15 अगस्त को जगह बदलने को लेकर भूख हड़ताल की बात रखी थी तभी उनपर एक और नया केस कैमूर बाघ अभयारण्य के विरोध में होने वाले आंदोलन के संबंध में एनआईए द्वारा लगा दिया गया है, जिसमें 16 अगस्त को एनआईए कोर्ट पटना में उन्हें ले जाने की बात की गई है, यानी अब तीन केस 67/21, दूसरा 16/22, तीसरा एनआईए स्पेशल केस 5/22 लगा दिया गया है। एक पत्रकार पर दमन की सरकार की मंशा को पूरा करने के लिए पूरी राष्ट्रीय एजेंसियां लगा दी गई है। न्यायपसंद लोगों को कानून के तहत अपराधी लिस्ट में डालना, घोटाला करने वाले व करोड़ों की सम्पत्ति रखने वाले नेताओं और पूंजीपतियों को सैल्यूट करना अब राष्ट्रीय एजेंसियों का काम है। ये बातें आज की आजादी के अर्थ जरूर बताता है, जहां गरीबी, भूखमरी, बेरोजगारी, महंगाई पर कोई कंट्रोल की योजना नहीं है पर गरीब, मेहनतकश जनता की आवाज बनने वाले पर कानून का शिकंजा कसा जा रहा है। जिसके खिलाफ हमारी आवाज बुलंद करने की जरूरत है।
साथ ही सैल्यूट पत्रकार रूपेश कुमार सिंह को जिन्होंने अपनी लेखनी से ही जनविरोधी सत्ता को इतना हिला दिया है कि उनपर देश की सारी खुफिया एजेंसियां लगा दी गई है।
हमें भी अपनी आवाज ऐसे ही बुलंद करने की जरूरत है ताकि शोषण और दमन की व्यवस्था खत्म हो सके।
*Ipsa Shatakshi*