वृषाली
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और इसके तमाम अनुषंगी संगठन अपने जन्मकाल से ही “राष्ट्रवाद” के नाम पर जनता को बरगलाने में लगे रहे हैं। वर्ष 2014 में सत्ता में क़ाबिज़ होने के बाद भाजपा और संघ परिवार ने “देशभक्ति” और “राष्ट्रवाद” की अतिरिक्त ठेकेदारी ले ली है। आज़ादी के आन्दोलन में क्रान्तिकारियों की मुख़बिरी और स्वतंत्रता व राष्ट्रीय आन्दोलन से ग़द्दारी करने वाला संघ परिवार अब धड़ल्ले से देशभक्ति के सर्टिफ़िकेट बाँट रहा है। संघ परिवार के “राष्ट्रवाद” और इनके राजनीतिक पूर्वजों की “देशभक्ति” के इतिहास पर ग़ौर किया जाये तो हक़ीक़त को समझने में देर नहीं लगेगी। क्या कारण था कि जब भगतसिंह और उनके साथी बहादुरी के साथ लड़ते हुए शहादत तक को तैयार थे तब हिन्दू महासभा के “वीर” सावरकर अण्डमान जेल से अंग्रेज़ सरकार के नाम माफ़ीनामे लिख रहे थे? क्या आप जानते हैं कि आर.एस.एस. ने भगतसिंह की शहादत को ‘बेकार की क़ुर्बानी’ बताया था? क्या आप जानते हैं कि आर.एस.एस. के नेता देवरस आपातकाल के दौरान इन्दिरा गाँधी से माफ़ी माँगकर माफ़ीनामे लिखने के रिवाज़ को आगे बढ़ा रहे थे? क्या आपको याद है सेना और देश के नाम पर वोट माँगने वाली भाजपा के अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण रक्षा सौदे में दलाली करते पकड़े गये थे? इतने पुराने इतिहास में क्यों जाना, नोटबन्दी के दौरान बैंकों की क़तारों में खड़ी जनता को सेना का हवाला देकर मनोज तिवारी द्वारा लोगों का मज़ाक़ उड़ाये जाने को ही याद कर लीजिए। जिनका “राष्ट्रवाद” चीन के ख़िलाफ़ उमड़ता है, क्या आपको पता है उनके झण्डे और चीन-विरोधी टोपियों का आयात भी चीन से ही होता है? यह तो महज़ संघ परिवार की मेहनतकश जनता को देशभक्ति के नाम पर बेवक़ूफ़ बनाने की दास्ताँ है। संघ परिवार के आतंकवादियों से जुड़ाव की ख़बरें इसपर चार चाँद लगाने का काम करती हैं!
आतंकी गतिविधियों और भाजपाइयों का है नाता पुराना
2019 में मालेगाँव बम धमाके की आरोपी प्रज्ञा ठाकुर के चुनावी प्रचार में भाजपा नेता राकेश सिंह ने बयान दिया था कि “भगवा कभी आतंकवादी नहीं होता, भगवाधारण करने वाला कभी आतंकवादी नहीं होता, आतंकवाद तो त्याग, तपस्या और बलिदान का प्रतीक होता है।” बिल्कुल दुरुस्त फ़रमाया! भाजपा और संघ परिवार के इस “त्याग, तपस्या और बलिदान” के सैंकड़ों उदाहरण मौजूद हैं। संघ परिवार ने जन्म से ही इस युक्ति का पालन किया है। धर्म और संस्कृति की दुहाई देते हुए साम्प्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देने का काम तो आज़ादी के पहले से ही शुरू हो चुका था। रोज़ी-रोटी, शिक्षा-स्वास्थ्य, महँगाई के सवाल पर मज़दूर-ग़रीब किसान, छात्र मेहनतकश अपने हक़-हुक़ूक़ की बात न सोचें, इसके लिए देश में धार्मिक उन्माद का माहौल बनाना जारी है। 2002 में गुजरात दंगों में हुए नरसंहार की बात करें या कन्धमाल, उड़ीसा के घटनाक्रम का उदाहरण देखें। संघ परिवार के आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के चन्द उदाहरण ही इनके राष्ट्रवाद के चोले को उतार फेंकने के लिए काफ़ी हैं। चन्द प्रतिनिधिक उदाहरण निम्न हैं:- 2004 में महाराष्ट्र के पूर्णा जलाना में हुए मस्जिदों में बम धमाके के तार संघ परिवार से जुड़े थे। 2006 में नान्देड़ में व 2008 में कानपुर में बजरंग दल के चार सदस्यों की बम बनाते हुए धमाके में मौत हो गयी थी। 2007 में ‘समझौता एक्सप्रेस’, अजमेर शरीफ़ व हैदराबाद में मक्का मस्जिद विस्फोटों की ज़िम्मेदार आर.एस.एस. के कार्यकर्ता पाये गये थे। 2008 में ठाणे के गडकरी रंगायन थिएटर में बमबारी के लिए हिन्दू जनजागृति समिति के सदस्य गिरफ़्तार किये गये थे। वहीं उसी वर्ष मालेगाँव में हुए विस्फोट की आरोपी साध्वी प्रज्ञा 2019 में भाजपा का चुनावी चेहरा बनकर उभरी थी। ‘कारवाँ’ पत्रिका को दिये एक साक्षात्कार में स्वामी असीमानन्द ने 2006 से 2008 तक हुए जानलेवा विस्फोटों के पीछे आर.एस.एस. के हाथ की पुष्टि की थी। 2017 में भाजपा के निर्वाचित सदस्य व नेता निरंजन होजाई को आतंकियों की आर्थिक मदद देने के लिए उम्रक़ैद की सज़ा सुनायी गयी थी। असम राज्य के भाजपा प्रवक्ता ने उस दौरान यह बयान भी दिया था कि पार्टी निरंजन होजाई को इस सज़ा से मुक्त कराने के लिए कोशिश में जुटी हुई है। उसी वर्ष भाजपा आईटी सेल के ध्रुव सक्सेना के आईएसआई से सम्बन्ध के ख़ुलासे की ख़बर भी सामने आयी थी। 2018 में त्रिपुरा के चुनाव में भाजपा ने जिस आईपीएफ़टी के साथ सरकार बनायी उसका अलगाववादी-आतंकवादी चरित्र इस “पवित्र” गठबन्धन से निष्कलंक हो गया था। 2020 में एनआईए ने भाजपा उम्मीदवार और पूर्व सरपंच को हिज़्बुल मुजाहिद्दीन व डीएसपी देविन्दर के साथ सम्बन्ध होने के मामले में गिरफ़्तार किया था। 2022 में जम्मू कश्मीर में भाजपा आईटी सेल के सदस्य तालिब हुसैन समेत एक अन्य को लश्कर-ए-तैयबा से सम्बन्धित होने व अमरनाथ यात्रा धमाके के आरोप में गिरफ़्तार किया गया है। 2022 में ही राजस्थान के उदयपुर हत्याकाण्ड में गिरफ़्तार मोहसीन और आसिफ़ के तार भी भाजपा से जुड़े बताये जा रहे हैं। 2022 के दोनों मामलों में भाजपा ने ख़ुद को बेगुनाह घोषित करते हुए अपराधियों के साथ किसी प्रकार के सम्बन्ध से ही इन्कार कर दिया है। भाजपा प्रवक्ताओं के अनुसार इन दोषियों के भाजपा के शीर्ष नेताओं से सम्बन्ध के दावे ग़लत हैं और जारी हो रही तस्वीरें इसका प्रमाण नहीं हैं। ताज्जुब की बात यह है कि ये आरोपी राजस्थान के शीर्ष भाजपा नेताओं के इतने क़रीब कैसे पहुँच जाते हैं?
भाजपा और संघ परिवार जिस फ़ासीवाद की उपज हैं, वह “राष्ट्रवाद” की आड़ में पूँजीपति वर्ग की सेवा करता है। लेनिन ने कहा था कि नस्लवादी अन्धराष्ट्रवादी पागलपन अक्सर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का चोला पहनकर आता है। जिस राष्ट्रवाद का हवाला देकर भाजपा और संघ परिवार ने जनता को बैंक और अस्पतालों की क़तारों में खड़ा कर दिया, उस “राष्ट्र” की रक्षा के लिए कितने नेताओं के सगे-सम्बन्धियों ने इस कठिनाई का सामना किया? संघ परिवार के केन्द्रों में हथियार चलाने के प्रशिक्षण शिविरों में किस नेता की औलाद शामिल रही है? संघ परिवार द्वारा प्रायोजित दंगों और आतंकी गतिविधियों की भेंट चढ़ने वाले आपके बच्चे होंगे या अमित शाह और स्मृति ईरानी के? ऐन चुनावों के मौसम में ही आतंकी हमलों को क्यों और कैसे अंजाम दे दिया जाता है? 56 इंच का सीना होने का दावा करने वाली इस सरकार के नाक के नीचे 2019 में पुलवामा जैसा हमला कैसे सम्भव हो जाता है? आतंकी गतिविधियों में संलिप्त आरोपी, आईएसआई एजेण्ट भाजपा की सदस्यता कैसे पा जाते हैं? “देशभक्ति” और “राष्ट्रवाद” की आड़ में कहीं संघ परिवार और भाजपा झाँसा तो नहीं दे रहे? “झाँसा पट्टी में उनकी आना है, या उनको धता बताना है?” यह हमें तय करना है।
मज़दूर बिगुल से साभार