अग्नि आलोक
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बोधकथा : सिंह- गर्दभ

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 जूली सचदेवा

    _एक गधे ने एक शेर को चुनौती दे दी कि मुझसे लड़ कर दिखा तो जंगल वाले तुझे राजा मान लेंगे | लेकिन शेर ने गधे की बात को अनसुना कर के चुपचाप वहाँ से निकल लिया |_

     एक लोमड़ी ने छुप कर ये सब देखा और सुना तो उस से रहा नहीं गया और वो शेर के पास जा कर बोली : क्या बात है ?

     उस गधे ने आपको चुनौती दी फिर भी उस से लड़े क्यों नहीं ? और ऐसे बिना कुछ बोले चुपचाप जा रहे हो ? 

शेर ने गंभीर स्वर में उत्तर दिया : मैं शेर हूँ – जंगल का राजा हूँ और रहूँगा | सभी जानवर इस सत्य से परिचित हैं | मुझे इस सत्य को किसी को सिद्ध कर के नहीं दिखाना है |

     गधा तो है ही गधा और हमेशा गधा ही रहेगा | गधे की चुनौती स्वीकार करने का मतलब मैं उसके बराबर हुआ .. गधे की बात का उत्तर देना भी अपनी इज्जत कम करना है क्योंकि उसके स्तर की बात का उत्तर देने के लिये मुझे उसके नीचे स्तर तक उतरना पड़ेगा और मेरे उस के लिये नीचे के स्तर पर उतरने से उसका घमण्ड बढ़ेगा|

    मैं यदि उसके सामने एक बार दहाड़ दूँ तो उसकी लीद निकल जायेगी और वो बेहोश हो जायेगा – अगर मैं एक पंजा मार दूँ तो उसकी गर्दन टूट जायेगी और वो मर जायेगा | गधे से लड़ने से मैं निश्चित रूप से जीत जाऊँगा लेकिन उस से मेरी इज्जत नहीं बढ़ेगी बल्कि जंगल के सभी जानवर बोलने लगेंगे कि शेर एक गधे से लड़ कर जीत गया – और एक तरह से यह मेरी  बेइज्जती ही हुई …..

__________

 _आये दिन गधों से वास्ता पड़ता रहता है – और उनसे कन्नी काट कर निकल लेने में भलाई होती है |_

     (चेतना विकास मिशन)

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