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क्या भारत में लीगल है मूनलाइटिंग?कंपनियों की मुसीबत बढ़ गई

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कोविड के बाद से आप कई सारे बड़े बदलावों से रूबरू हुए होंगे। महामारी के बाद कई नए ट्रेंड देखने को मिले हैं। इनमें से एक मूनलाइटिंग भी है। इसमें कर्मचारी एक साथ कई नौकरियां कर रहा होता है। कोरोना के बाद से अभी तक भी बड़ी संख्या में कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को वर्क फ्रॉम होमकी सुविधा दी हुई है। कर्मचारी इसी का फायदा उठा रहे हैं। वे एक ही वक्त पर एक से अधिक कंपनियों में काम कर रहे हैं। देखने में आ रहा है कि कई टेक प्रोफेशनल्स अपनी कंपनी में फुल टाइम जॉब के साथ ही साइड प्रोजेक्ट्स पर भी काम कर रहे हैं। इससे कर्मचारी तो खूब पैसा छाप रहे हैं, लेकिन कंपनियों की मुसीबत बढ़ गई है। साथ ही अब यह बहस भी छिड़ी हुई है कि क्या मूनलाइटिंग गिग इकॉनमी का भविष्य है।

क्या है मूनलाइटिंग
ऑफिस के कामकाजी घंटों के बाद कर्मचारी द्वारा कोई दूसरी जॉब करना ही मूनलाइटिंग कहलाता है। एक कर्मचारी दिन में अपनी कंपनी में 9-5 की जॉब करता है। लेकिन वह एक्स्ट्रा पैसा कमाने के लिए रात में कोई दूसरी जॉब भी करता है। कोरोना महामारी के समय जब कर्मचारी ऑफिस की बजाय घर से काम करने लगे, तो मूनलाइटिंग का ट्रेंड बढ़ा। लोग एक्स्ट्रा पैसा कमाने के लिए जॉब के अलावा दूसरे प्रोजेक्ट्स पर भी काम करने लगे। कुछ लोग कई कंपनियों में एक साथ जॉब करने लगे।

स्विगी लाया मूनलाइटिंग पॉलिसी
हाल ही में फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म स्विगी (Swiggy) ने इंडस्ट्री में सबसे पहले मूनलाइटिंग पॉलिसी की घोषणा की है। कंपनी ने कई शर्तों के साथ अपने कर्मचारियों को कामकाजी घंटों के बाद दूसरे प्रोजेक्ट्स पर काम करने की अनुमति दी है। कंपनी ने कहा, ‘इसमें ऑफिस के कामकाजी घटों के बाद या वीकेंड में की गई गतिविधि शामिल हो सकती है। यह फुल टाइम जॉब पर कर्मचारियों की उत्पादकता को प्रभावित नहीं करेगी। ना ही यह किसी भी तरह से स्विगी के बिजनस के साथ हितों का टकराव है।’ वहीं, फिनटेक यूनिकॉर्न क्रेड (Cred) ने भी हाल ही में टीओआई को बताया था कि वह पैसिव इनकम को प्रोत्साहित करता है।

विप्रो के चेयरमैन ने जताई आपत्ति

जहां कुछ कंपनियां मूनलाइटिंग को प्रोत्साहन दे रही हैं, तो कुछ को इसमें आपत्ति भी है। हाल ही में विप्रो (Wipro) के चेयरमैन रिशद प्रेमजी (Rishad Premji) ने मूनलाइटिंग पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने सीधे-सीधे इसे धोखाधड़ी करार दिया था। रिशद प्रेमजी ने टेक इंडस्ट्री में ‘मूनलाइटनिंग’ यानी वर्क फ्रॉम होम (Work from home) के दौरान कंपनी के काम के अलावा दूसरे काम करने को धोखेबाजी बताया था। प्रेमजी ने ट्वीट कर यह बात कही थी। प्रेमजी ने अपने ट्वीट किया, ‘टेक इंडस्ट्री में लोगों द्वारा अपनी कंपनी के काम के अलावा दूसरे काम भी करने को लेकर काफी चर्चा है। साफ है कि यह धोखेबाजी है।’

स्किल्ड वर्कर्स की कमी से भी बढ़ रहा ट्रेंड

मूनलाइटिंग की एक दूसरी वजह स्किल्ड वर्कर्स की कमी भी है। मूनलाइटिंग का आइडिया व्हाइट कॉलर जॉब्स की बदलती प्रकृति की व्यावहारिक मान्यता को दर्शाता है। ऐसा लगता है कि मूनलाइटिंग ट्रेडिशनल टेक कंपनियों और नए जमाने की टेक कंपनियों को अलग कर रहा है। भारत में अधिकांश ट्रेडिशनल कंपनियों में यह नियम है कि कर्मचारी किसी दूसरी जगह काम नहीं कर सकता। एक कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज सर्वे में आईटी और आईटीईएस क्षेत्र के 400 लोगों से बात की गई थी। इनमें से 65 फीसदी लोगों ने बताया कि वे ऐसे लोगों को जानते हैं जो वर्क फ्रॉम होम के साथ मूनलाइटिंग कर रहे हैं।

क्या लीगल है मूनलाइटिंग

पीएसएल एडवोकेट्स एंड सॉलिसिटर के मैनेजिंग पार्टनर समीर जैन ने कहा, ‘कोई ऐसा कानून नहीं है, जो किसी व्यक्ति को एक साथ कई जगह काम करने से रोकता हो। हालांकि, समान प्रकृति की नौकरियों में व्यक्ति गोपनीयता के मुद्दों का उल्लंघन कर सकता है। कई कंपनियों के एंप्लॉयमेंट एग्रीमेंट में दूसरी जगह काम नहीं करने का नियम होता है। वर्क फ्रॉम होम ने कर्मचारियों को एक साथ कई जगह काम करने की सुविधा दी है। लेकिन यह उनकी काम की प्रकृति, इंडिविजुअल एंप्लॉयमेंट एग्रीमेंट और कंपनी के नियमों पर निर्भर करता है।’
Rishad Premji Reaction: वर्क फ्रॉम होम में एक साथ दो नौकरियां करना धोखेबाजी जैसा : विप्रो चेयरमैन
एक साथ 7 कंपनियों में काम कर रहा था कर्मचारी

कुछ महीने पहले एक मामला सामने आया था, जिसमें एक व्यक्ति सात कंपनियों के लिए एक साथ काम कर रहा था। बिड़लासॉफ्ट (Birlasoft) के सीईओ धर्मेंद्र कपूर को यह शिकायत मिली थी। कर्मचारी के पीएफ रिकॉर्ड में इंप्लॉयमेंट डिटेल्स से यह जानकारी सामने आई थी। कई सक्रिय पीएफ खाते मिलने के बाद कर्मचारी को एक फर्म के एचआर मैनेजर्स द्वारा पकड़ा गया। लेकिन ऐसे मामलों को पकड़ना मुश्किल होता है।

कंपनियों के लिए पता लगा पाना मुश्किल

लॉ फर्म निशीथ देसाई एसोसिएट्स में एचआर लॉ प्रैक्टिस के प्रमुख विक्रम श्रॉफ कहते हैं कि भारत में सेंट्रलाइज्ड डेटाबेस नहीं है। नियोक्ताओं के लिए यह पता लगाना मुश्किल है कि कोई कर्मचारी किसी और कंपनी में भी उसी वक्त पर काम कर रहा है या नहीं। रोजगार की अवधि के दौरान कर्मचारी की अन्य स्रोतों से कोई वेतन या आय है या नहीं, यह पता लगाने के लिए नियोक्ताओं को कर्मचारी के टैक्स फाइलिंग या भविष्य निधि खाते की जांच करने की आवश्यकता हो सकती है। लेकिन बात प्राइवेसी से जुड़ी है।

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