अग्नि आलोक
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कहानी : धूनी

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आरती शर्मा

      _अम्मा जी के मकान में एक डॉक्टर साहब ने अपना क्लिनिक खोला। शहर से पढ़ाई करके गाँव में प्रैक्टिस के उद्देश्य से। अम्मा जी उस डाॅक्टर से किराया नही लेती थीं तथा अपने तीनों युवा होते बेटों को डाॅक्टर साहब की मदद के लिए लगाये रखतीं। ईश्वर की कृपा से  क्लिनिक बहुत अच्छा चलने लगा।_

    आगे चलकर डॉ. साहब ने इमानदारी से अलग अलग जिम्मेवारी और वेतन तय कर दिया सबका।

अम्मा जी बिल्कुल भी पढ़ी-लिखी नही थीं।  सख्त तेवर और पुराने ख्यालों की महिला थीं। उनकी तीनों बहुएं भी गांव की ही थीं। नम्र, आज्ञाकारी पर अशिक्षित।

      _इधर कुछ दिनों से मंझली बहू यह नोटिस कर रही थी कि उसका पति शाम को घर लौटते ही नहा धो कर उसके कमरे में आने के वजाय छत पर जाकर सो जाता है। अपने सिरहाने जाने क्या जलाता है जो आधी रात तक जलता रहता है।_

       एक दिन अपने पति से हिम्मत करके पूछा भी  – ‘आप रोज छत पर क्यूँ चले जाते हैं सोने के लिए ? और अपने सिरहाने धूनी की तरह जलाते क्या हैं?’ 

        _पत्नी के सवालों का आशय समझ कर पहले तो वह मन ही मन हँसा, मगर फिर उसके मजे लेने के उद्देश्य से बोला  ‘यूपी में मुझे एक महात्मा जी मिले थे।_

 उन्होंने ही मुझे एक विशेष धूनी दी है,और कहा है स्नान ध्यान करके अकेले सोने के लिए ,एकदम एकांत में। और सुनो, इस विषय में किसी से कोई चर्चा करोगी तो नुकसान मुझे ही होगा। ऐसा महात्मा जी ने कहा है। 

 पत्नी की जीभ तो जैसे तालू से जा सटी, गुमसुम चुपचुप सी रहने लगी। वैसे भी पुरुष सदस्य  घर पर सिर्फ़ खाने और सोने के वक्त ही आते थे, इसलिए पति इनसब बातों से अनजान हॉस्पिटल के काम में ब्यस्त रहा।    

       _उसका काम भी काफ़ी दौड़भाग वाला था अस्पताल के लिए दवा या अन्य समानों की उपलब्धता की जिम्मेवारी उसी की थी। जिसके लिए कई शहरों में दौड़ भाग करना पड़ता उसे लगभग हरदिन ही।_

       घर लौटते-लौटते वह थक कर चूर हो जाता। गर्मी की उमस भरी रात में वह छत पर खुली हवा में सुस्ताने के लिए लेटता और वहीं कब सो जाता उसे ही भान न रहता। 

दो दिन बाद बड़ी बहू ने अम्मा जी को बताया कि दुल्हीन ठीक से खा पी नही रही है, छुप-छुप कर रोती रहती है। पुछने पर कुछ बताती भी नहीं। दो दिनों से यह हाल बना रखा है अपना।

      _लगता है देवर जी से झगड़ा हुआ है। कई दिनों से वे घर भी नही आ रहे छत पर सोते हैं अकेले। अम्मा जी का पारा सातवें आसमान पर जा चढ़ा। मंझली बहू को डरा-धमका कर सच्चाई उगलवाने की कोशिश होने लगी। पर वह कुछ न बताती, बस रोती रही सुबक सुबक कर।_

        वह अपने बेटे से पुछने की बात कह कर डाॅक्टर साहब के क्लिनिक की ओर जाने लगीं तो मंझली बहू ने पांव पकड़ लिए सास के।

     आप कहीं कुछ हल्ला न करो अम्मा जी आज रात को मैं आप दोनों को भी दिखा दूंगी। आप दोनों खुद ही समझ जाओगी। 

तीनों बेटे अम्मा जी का खूब अदब करते थें। अम्मा जी अगर कुछ पूछें तो ना बताने का तो सवाल ही नही उठता। पर.. मझले बेटे के घर लौटने तक वह सो गयीं, बड़ी बहू ने जिम्मेदारी सम्हाला,खाना खिलाने के बहाने देवर को आंगन में ही रोक लिया, खुद पास की चरपायी पर बैठ गयी और देवरानी से खाना लाने को कहा।

     _उन्हे अंदेशा हो रहा था कि भाभी कुछ कहना या पुछना चाहती हैं पर तीनों चुप रहें, खाना खत्म करके अपने कमरे से कुछ लेने गयें तो दोनों बहुएं ध्यान से देख रही थीं और उन्हें देखते हुए देवर जी न देख लें इसका भी ध्यान रख रही थीं।_

    अपने हावभाव से अनजान बने रहने का उपक्रम भी कर रही थीं।

आज़ फिर  छत पर बिछावन लग चूका था, उस घुप्प अंधेरे में देवरानी जेठानी दबे पाँव सीढ़ियों पर दीवार के आड़ में खड़ी आँखे गड़ाये छुप कर सब देख रही थीं।

      _एक डब्बे से कुछ निकाला दोनों हाथो से जाने क्या कुछ करता रहा कुछ पल तक, फिर माचिस से कुछ जलाया सिरहाने की ओर उस जलती चीज़ को रखकर सो गया। थकान के कारण वह जल्दी ही नींद के आगोश में चला गया।_

       इधर दोनों बहुएं हतप्रभ सी खड़ी देर तक उन्हें देखती रहीं। बड़ी बहू डर के बावजूद हिम्मत करके उनके सिरहाने की जलती चिज को फेकने के लिए आगे जाने लगी तो देवरानी ने रोक लिया। और रोते हुए बताने लगी कि उस चिज को या पति को छू नहीं सकते महात्मा ने मना कर रखा है ऐसा करने से।

      _नहीं तो उन्हें कुछ हो जाएगा। देवरानी को ढांढस बंधाती वह एक पतली लम्बी बांस की बाती (जिसमें गाँव में मच्छदानी बांधते है चारपाई या चौकी पर लगाते हैं )उसे उठा लायी और दीवार की आड़ में छुप कर दूर से ही उसी डंडे से जलती हुई चिज को देवर से दूर करने की कोशिश करने लगी, अचानक हाथ से डंडा छूट गया और उसकी आवाज़ से उनके देवर की नींद खुल गयी, वे उठकर बैठ गयें चारो ओर नजर दौड़ाया अंधेरे में कुछ दिखाई न दिया तो फिर से सो गये।_

         दोनों बहुएं सीढ़ी पर ही छुप गयी। 

इसबार वे कोई रिस्क लेना नहीं चाहती थीं, इसलिए सासूमाँ को जगा लेना उचित समझा गया। नींद में डूबी अम्मा जी का पैर दबा-दबा कर उठाया गया।

        कान में फूसफूसाकर जाने क्या कहा बड़ी बहू ने कि देर तक तीनों महिलाएं पहले तो फुसफुसाते हुए अजीब-अजीब मुद्राएं और हावभाव बनाती रही फिर दबे पाँव सीढ़ियों पर जा पहुंची। और अब वहीं से झांक कर देखने लगीं।

      _मारे भय के किसी का पाँव आगे न बढ़ रहा था। दो बार बेटे को नाम से पुकार कर आवाज़ भी लगाया अम्मा ने, पर गहरी नींद में सो गया था शायद। कोई आवाज नहीं आने पर अम्मा जी घबरा उठीं। किसी साधू महात्मा के चक्कर में बेटे को ऐसे कैसे बर्बाद होने देती।_

       एंटीना वाले बांस को खोल लायीं,(तब लम्बे बाँस में टीवी के एंटिना को बाँधकर खड़ा किया जाता था छतों पर।) और सीढ़ियों पर दीवार की आड़ में खड़ी हो दूर से हीं जोर जोर से जलती हुई चिज को ऎसे पिटने लगीं उस लम्बे से बाँस से जैसे साँप को मार रही हों। 

बेटा घबरा कर उठ बैठा, आसपास के छतों पर भी हलचलें बढ़ गयी ऐसे अजीबोगरीब आवाजें सुनकर। अम्मा जी लगातार बिना रुके बाँस को उस जलती हुई चीज पर पटक रही थी जो कभी निशाने पर लगती कभी नहीं। बेटे ने उठकर उन्हें पकड़ लिया, वो जोरों से रोने लगी कि कौन साधू है? क्या किया है? मुझे सारा कुछ बताओ।

      _बड़े बेटे और छोटे बेटे क्लिनिक पर सो रहे थें, उन्हें किसी ने खबर पहूँचा दिया कि आपके घर में मारपीट हो रही है, डाॅक्टर साहब और कम्पाउंडर भी शोर सुनकर अपने घर से भागते हुए आ गये। अच्छी-खासी भीड़ इकठ्ठा हो गयी।_

       अम्मा जी रो-रो कर सबको साधू की कहानी और जलती हुई धूनी दिखा रही थी टार्च के रौशनी में। बेटे बहू को दूर करने वाली धूनी को वह मारे डर के छू भी नहीं रही थीं। मंझला बेटा अब चाह कर भी कुछ समझा नहीं पा रहा था किसी को ।

सारा माजरा समझ कर डाॅक्टर साहब और बड़े भाई ने स्थिति को पहले काबू किया फिर समझाया उन तीनों महिलाओं को। उस मंझले बेटे को भी डांट पड़ी और यह फरमान भी जारी हुआ कि अपने कमरे से बाहर नहीं सोना है।

      _रात के ढाई बज गयें थें थोड़ी देर पहले की चिल्ला चिल्ली हँसी के ठहाकों में बदल चूके थे। आसपड़ोस सभी मजे ले रहे थे। इधर मंझली बहू अपने कमरे में पति के सिने से लगी अब भी रोये जा रही थी। पति की तो यह स्थिति कि ना हँस सके ना रो सके। जाहिर था यह मजाक काफ़ी मंहगा पड़ा है उन्हें।_

      1993की वह घटना याद करके आज भी सब खूब हँसते हैं। जबकि बात बस इतनी सी थी कि मच्छरों को मारने या भगाने के लिए ‘कछुआ छाप अगरबत्ती’ तब नया नया वजूद में आया था। जिसका परिचय घर की औरतों से इस धमाकेदार तरीके से हुआ।

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