,मुनेश त्यागी
भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बहुत सारे सपने देखे गए थे कि अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद भारत एक कल्याणकारी राज्य बनेगा, सबको शिक्षा मिलेगी, सब को काम मिलेगा, सब को रोजगार मिलेगा, कानून का शासन स्थापित होगा, सरकार जनता के हितों को आगे बढ़ाएगी, किसानों मजदूरों की समस्याएं दूर होंगी, उनको उनके बुनियादी हक मिलेंगे, भारत में एक स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना की जाएगी।
भारत में समता समानता धर्मनिरपेक्षता जनवाद समाजवाद और गणतंत्र की स्थापना होगी, सभी तरह के सामाजिक राजनीतिक आर्थिक शोषण खत्म कर दिए जाएंगे और जनता में आपसी भाईचारा कायम किया जाएगा और सबसे ऊपर भारत का शासन, भारत के कानून से और संविधान से चलेगा, मगर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में देखे गए ये सारे ख्वाब आज लगभग खात्मे की ओर हैं और इन्हें समाप्त करने की, खत्म करने की पूरी मुहिम जारी है।
आज हमारे देश में सरकारों ने कल्याणकारी योजनाओं को छोड़ दिया है, शिक्षा और स्वास्थ्य को बाजारी शक्तियों के हवाले कर दिया गया है, संविधान पर लगातार हमले जारी हैं, केंद्रीय संस्थाओं को लगभग खत्म कर दिया गया है और सरकार उन्हें अब विपक्षियों को डराने और अपने हित पूरे करने के लिए उनका इस्तेमाल कर रही है। न्यायपालिका पर हमले जारी हैं, संसद पर हमला जारी हैं, अब संसद में बहसें नहीं होतीं और हल्ले गुल्ले के बीच कानून पास कराये जा रहे हैं।
आज हम 80 के दशक में पहुंच गए हैं। आज भारत के स्वतंत्र सुप्रीम कोर्ट की पहलकदमी और पहुंच बदल गई है। 1991 के बाद भारत की सर्वोच्च न्यायालय की सोच में काफी तब्दीलियां आ गई हैं। पहले गैरकानूनी रूप से नौकरी से निकाले गए मजदूर को नौकरी पर सवेतन बहाल किया जाता था, मगर अब ऐसा नहीं किया जाता। 1991 में नव उदारवादी नीतियों के लागू होने के बाद, कानून के इंटरप्रिटेशन का तरीका बदल गया है। अब निर्णय हो रहे हैं न्याय नहीं। मजदूरों के हितों की रक्षा करने का तरीका न्यायालय ने बदल दिया है।
नव उदारवादी नीतियों ने सब कुछ बदल दिया है। अब कानूनों का इंटरप्रिटेशन, सामाजिक न्याय की अवधारणा को बढ़ाने के लिए नहीं किया जाता है। 1991 के बाद समाज में सामाजिक और आर्थिक गैरबराबरी बढी है। 2017 में एक परसेंट लोगों के पास 73% धन था और 99% के पास 27% धन था। भारत के संविधान के अनुच्छेद 38 और 39 धन के चंद पूंजीपतियों के हाथों में संकेंद्रण के ख़िलाफ़ हैं। मगर आज हम देख रहे हैं कि एक तरफ चंद पूंजीपतियों की संपत्तियों में दिन रात वृद्धि हो रही है, गौतम अडानी 2015 में दुनिया के फौजी पतियों में 208 में स्थान पर था जो आज तीसरे स्थान पर पहुंच गया है आज अंबानी दुनिया के 11 सबसे बडे अमीरों में स्थान रखता है। वहीं दूसरी ओर 85 परिवारों की आय घट गई है। भारत के करोड़ों लोग गरीबी के घट में समाज गए हैं और करोड़ों नौजवान बेरोजगारी की वजह से दर-दर भटक रहे हैं।
सांप्रदायिक राजनीति सत्ता पाने के लिए वोटों का ध्रुवीकरण कर रही है। अब पैसा एक ही पार्टी के पास रह गया है और वह पैसा कहां से आ रहा है, उसका स्रोत क्या है? इसका भी कोई पता नहीं है। आज हिंदू राष्ट्र के निर्माण का खतरा बढ़ गया है। भारत की जनता की एकता तोड़कर उसके बीच हिंदू मुसलमान की नफरत की राजनीति की जा रही है और उनके बीच की खाई और चौड़ी की जा रही है। भारत के बुनियादी नीति धर्मनिरपेक्षता का खात्मा कर दिया गया है। अब भारत की राजनीति में धर्म और धर्मांधता की दखलअंदाजी बढ़ गई है, हस्तक्षेप बढ़ गया है।
नई आर्थिक नीतियां जनता और किसानों व मजदूरों के हितों को आगे बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि चंद पूंजीपतियों के हितों को आगे बढ़ाने का काम कर रही हैं। शिक्षा का निजीकरण हो गया है। स्वास्थ्य निजी हाथों में धनदौलत वाली ताकतों को सौंप दिया गया है जो आम जनता का शोषण कर रही है। सस्ती शिक्षा और सस्ते स्वास्थ्य के अधिकार जनता से लगभग छीन लिया गया है। आज की नीतियां जरूरत आधारित नहीं है बल्कि भारत के कुछ लोगों की जेब भरने के लिए बनाई जा रही हैं।
वैज्ञानिक संस्कृति का विनाश कर दिया गया है। आज पुनः अंधविश्वास धर्मांधता अज्ञानता और पाखंडों की आंधियां चल रही हैं। बहुत सारे लोग इन आंधियों में बह गए हैं और उन्होंने ज्ञान विज्ञान तर्क लॉजिक और विवेक पर विश्वास करना छोड़ दिया है। आज हालात बदल गए हैं आज वही जिये और आगे बढ़ेगा पड़ेगा जिसके पास पैसा होगा। आज वही इलाज कर आएगा जिसके पास पैसा होगा। आज वही पढ़ पाएगा जिसके पास शिक्षा के ऊपर खर्च करने के लिए पर्याप्त धन होगा, क्योंकि 77 फ़ीसदी जनता लगभग एक अरब की जनता आज इलाज करवाने और पढ़ने की स्थिति में नहीं है क्योंकि सरकारी स्कूल और सरकारी अस्पतालों में सुविधाएं उपलब्ध नहीं है।
कानून के शासन को कमजोर किया जा रहा है सरकारी वकीलों को कम काम करने को कहा जा रहा है, कानून के शासन को जंगल का कानून बना दिया गया है। केंद्रीय संस्थाओं को कमजोर किया जा रहा है। चुनाव आयोग, सीबीआई और ईडी का, सरकारी नीतियों का विरोध करने वाले लोगों के खिलाफ प्रयोग किया जा रहा है।
सरकार झूठ बोल रही है कि 75 सालों में कुछ नहीं हुआ है, यह एकदम झूठ है। आज हम जो कुछ हैं, हमारे यहां की जनता जो कुछ है, वह 75 सालों में हुए विकास के कारण है। 8 साल की मोदी सरकार ने, इस देश की जनता के, किसानों के मजदूरों के विकास के लिए, उनके कल्याण के लिए लगभग कुछ भी नहीं किया है। आज भारत की न्यायपालिका को अंदर और बाहर दोनों तरफ से खतरा है। न्याय पालिका की स्वतंत्रता पर खतरा पैदा हो गया है। न्यायपालिका की जवाबदेही लगभग खत्म कर नहीं रह गई है।
यहीं पर सवाल उठता है कि की हमारी सरकार भारत की न्यायपालिका पर हमले क्यों कर रही है? भारत की केंद्र सरकार और राज्य सरकारें लगभग 5 करोड मुकदमों की अंबार को जिसमें 75000 मुकदमे सर्वोच्च न्यायालय में पेंडिंग हैं 60 लाख मुकदमे विभिन्न हाईकोर्टों में लंबित हैं और चार करोड़ 20 लाख मुकदमें निचली अदालतों में लंबित हैं। हाईकोर्ट में तीस परसेंट पद खाली पड़े हैं और निचली अदालतों में 25 परसेंट जजों के पद खाली पड़े हैं। निचली अदालतों में 80 परसेंट क्लर्क और बाबू के पद खाली पड़े हुए हैं आखिर सरकार इन्हें क्यों नहीं भर रही है? बरसों बरस से इन खाली पड़े पदों पर जज और सरकारी कर्मचारियों की भर्ती क्यों नहीं कर रही है? सरकार के पास इन 20 सवालों का कोई जवाब नहीं है।
उपरोक्त हकीकत और तथ्यों की रोशनी में हम कह सकते हैं कि न्याय सरकार के एजेंडे में नहीं है। वह जनता को सस्ता और सुलभ न्याय नहीं देना चाहती और वह लम्बे समय से खाली पड़े पदों पर भर्तियां ना करके अपनी जिम्मेदारी से भाग रही है। अपने संवैधानिक कर्तव्यों का पालन नहीं कर रही है।
उपरोक्त तथ्यों के आधार पर हम निश्चित रूप से कह सकते हैं कि पिछले 30 साल से सरकार, संवैधानिक उद्देश्यों का, संवैधानिक मूल्यों और संवैधानिक मेंडेट्स का पालन नहीं कर रही है। वह अपनी जिम्मेदारियों से भाग रही है। अब उसकी जनता का कल्याण करने में कोई रुचि और उद्देश्य नहीं रह गया है। उसकी नीतियां और नियत जनविरोधी हो गई है। इस प्रकार हमारी सरकार भारत के संविधान को धाराशाई करने की मुहिम में लग गई है और उसने भारत के संविधान को धराशाई करने की मुहिम को तेज कर दिया है।