अग्नि आलोक
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उतर कर आसमान  से जब  किरन जमीन को छूती हैं

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सरल कुमार वर्मा

उतर कर आसमान से जब किरन जमीन को छूती हैं
बेपनाह मोहब्बत से नजर अल्साई कली को छूती है

कुदरत ने तो किया था जहां सब के लिए रोशन
गुनाह उनने किया जिन्होंने मिलकर रोशनी लूटी है

इंसान है तो लाजिमी है दिल में ख्वाहिश का होना
ख्वाहिशों पर पहरा दौलत का और तसल्ली झूठी है

चाहा जिन्होंने दौलत से इस दुनिया को संवारना
अपने सिर रख ताज कहा सब की किस्मत फूटी है

किसी के हक में न थी कोई वसीयत दुनिया की”सरल”
कहीं मेहरबां है चांदनी चांद की किसी की छत टूटी है
सरल कुमार वर्मा
उन्नाव,वर्मा
9695164945

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