गोपाल राठी,पीपरिया
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कल 16 सितंबर को सुबह लगभग 11 बजे जब मैं सांडिया रोड से तिगड्डा जाने के लिए आनंद बाग रोड की तरफ मुड़ ही रहा था कि आवाज़ आई भैया.. भैया । मैंने पीछे मुड़कर देखा तो एक कार के बाजू में खड़ा होकर छोटू ( प्रशांत दुबे ) मुझे आवाज़ दे रहा था .उसने मिलते ही पांव पड़े और मैंने मज़ाक में पूछा सहारा समय सुबह सुबह पिपरिया में क्यों टपका ? क्या कोई खास स्टोरी है ? प्रशांत ने बताया कि हम सब लोग सुरेला जा रहे है जहां श्राद्ध का कार्यक्रम है । मैंने पूछा कि संजीव भैया ? तो उसने बताया कि वे दूसरी गाड़ी से निकल गए है.कुछ परिवार जन और आ रहे है उनकी प्रतीक्षा कर रहे है । इतने में उनके चचेरे भाई सन्तोष दुबे आ गए वे भी उनके ही साथ जाने वाले थे l कुछ देर खड़े होकर हम जिले और नगर की राजनीति पर चर्चा करते रहे l फिर नरेंद्र कुमार मौर्य और उनके साथ घटी दुर्घटना की बात निकल आई । नरेंद्र सन्तोष दुबे के प्रिय मित्र और दुबे परिवार के घनिष्ठ रहे है l नरेंद्र की पिपरिया पर आई किताब पर भी चर्चा हुई l उन्हें सुरेला जाना था और मुझे सब्जी लेने । अतः दोनों ने अपनी अपनी राह ली लेकिन जाते जाते उसने पूछा भैया होशंगाबाद बहुत दिनों से नहीं आए ? मैंने कहा अबकी आया तो तुम्हारे दफ्तर तक ज़रूर आऊंगा . इस संक्षिप्त मुलाकात से यह पता चला कि अपना छोटू भले ही नर्मदापुरम का बड़ा पत्रकार बन गया हो लेकिन अपने लोगों के प्रति सम्मान और प्रेम का भाव तनिक भी कम नही हुआ , सौजन्यता और सौम्य व्यवहार उसकी शुरू से विशेषता रही .
नर्मदांचल पत्रकार संघ के अध्यक्ष और जिले के वरिष्ठ पत्रकार भाई प्रशांत दुबे आज 17 सितंबर को दोपहर में एक समाचार पत्र के कार्यक्रम में इटारसी आये थे , कार्यक्रम के पूर्व उन्हें सीने में दर्द महसूस हुआ ,उन्हें तत्काल स्थानीय डॉक्टर को दिखाया गया , ECG रिपोर्ट में माइनर अटैक के लक्षण पाए गए . प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें अमृत अस्पताल नर्मदापुरम भेजा गया . जहां डॉक्टरों के अथक प्रयास के वाबजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका. उन्होंने अमृत अस्पताल में अंतिम सांस ली.
दोपहर विश्राम के बाद जब मोबाइल ख़ौला तो पत्रकार भाई नवनीत परसाई की फेसबुक पोस्ट पर प्रशांत के निधन की खबर पढ़कर हक्का बक्का रह गया , शकील भाई Shakeel Niyazi को फोन लगाया तो नो रिप्लाई आया फिर नवनीत परसाई Navneet Parsai को फोन लगाकर बात की तो उन्होंने पुष्टि कर दी । प्रशांत दुबे यानी अपना छोटू नहीं रहा . यह ह्रदय विदारक सूचना विश्वास योग्य न होने के वावज़ूद सही निकली .
प्रशांत हमारे प्रिय मित्र भाई संजीव दुबे Sanjeev Dubey (BEO सोहागपुर) का छोटा भाई था . इस नाते उसने हमेशा बड़े भाई जैसा सम्मान दिया . जब मित्र किशोर डाबर Kishore Dabur ने पिपरिया से पिपरिया हलचल नामक साप्ताहिक पत्र शुरू किया तो उसमें प्रशांत Kailash Sarathe और हम सब मिलकर लिखते थे .एक दूसरे के लिखे हुए की समीक्षा करते थे l तब तक प्रशांत ने पत्रकारिता के क्षेत्र में औपचारिक रुप से प्रवेश नहीं किया था l अपने कैरियर में अनेक पड़ाव पार करते हुए वे वर्तमान में दैनिक हरिभूमि एवं सहारा समय के नर्मदापुरम के ब्यूरो चीफ थे . प्रशांत समय समय पर फोन करके जिले के पुराने नेताओं साहित्यकारों के बारे में मुझसे जानकारी लेकर अपनी जानकारी की पुष्टि किया करते थे l अपनी लेखनी और मिलनसारिता के चलते ही प्रशांत ने नर्मदापुरम के पत्रकार जगत में अपना विशिष्ट स्थान बना लिया. पैसा भले ही न कमाया हो लेकिन यश और कीर्ति उन्हें भरपूर मिली । जिले के शासन प्रशासन और सामाजिक राजनैतिक क्षेत्र में उनका बेहद सम्मान था. रेत माफिया के खिलाफ मैदानी रिपोर्ट करते हुए जब माफिया द्वारा प्रशांत की घेराबंदी हुई तो सब लोग उसके समर्थन में खड़े हो गए थे । पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भी होशंगाबाद आकर पत्रकार वार्ता की थी । उन्हें एक निडर और निर्भीक पत्रकार के रूप में पूरे जिले में अच्छी शौहरत मिली ।
पिछले वर्ष जब हम अपने साथी गजानंद यादव Gajanand Gajanand के साथ नर्मदा परिक्रमा (नर्मदा चेतना यात्रा) पर निकले तब प्रशांत जबलपुर से ही हमे लगातार फोन करता रहा और पूछता रहा भैया होशंगाबाद कब आओगे ? चूंकि हमारा शेड्यूल निश्चित नहीं था इसलिए हम कोई उत्तर नही दे पा रहे थे क्योकि हम रास्ते मे ऐसी जगह भी रुक गए जहाँ हमे नहीं रुकना था . होशंगाबाद जिले में प्रवेश करते ही सांडिया पिपरिया और सोहागपुर के पड़ाव के बाद हम चौथे दिन होशंगाबाद पहुंच पाए । अतः हम अपने होशंगाबाद पहुंचने की निश्चित सूचना मात्र 24 घण्टे पहले दे पाए । होशंगाबाद में प्रशांत ने अपने सभी पत्रकार मित्रों को पूर्व सूचना दे रखी थी । सेठानी घाट पर प्रशांत ने हमारी पत्रकार वार्ता रखी जिसमे सभी प्रमुख अखबारों और न्यूज़ चैनल के संवाददाता उपस्थित थे . रास्ते मे हमे जहां जहाँ पत्रकारों से रूबरू होने का अवसर मिला उनमें होशंगाबाद की पत्रकार वार्ता एक दम व्यवस्थित थी । पत्रकारों ने हमसे कुछ पूछा तो हमने भी पत्रकारों से कुछ सवाल पूछे । मतलब पत्रकार वार्ता एक वार्तालाप में बदल गई । पत्रकार वार्ता में बुलाई गई कुर्सियों और चायपान में जो खर्च हुआ उंसे देने के लिए मैंने जेब मे हाथ डाला तो प्रशांत ने तत्काल मुझे रोक दिया । इतना ही नही उसने हमारे यात्रा खर्च के लिए 500 रुपये देकर कहा कि यह आपकीं यात्रा के लिए छोटे भाई का सहयोग । प्रशांत की देखादेखी उसके साथ खड़े दो अन्य पत्रकारों ने भी अपनी ओर से सौ सौ रुपए की सहयोग राशि प्रदान की ।
प्रशांत के पिताजी स्व. श्यामलाल जी दुबे शिक्षक थे ,वे मूलतः बनखेड़ी विकास खण्ड के ग्राम सुरेला के निवासी थे . एक ईमानदार और कर्तव्य निष्ठ शिक्षक के रुप मे उनकी ख्याति बनखेड़ी और पिपरिया विकास खण्ड में रही .
कल तुम मुस्कुराते हुए मिले थे और आज सबको रोता हुए छोड़कर चले गए ,ये तो तुमने अच्छा नहीं किया मेरे भाई. जिले के पत्रकारिता जगत में इस कम आयु में तुमने जो मुकाम हासिल किया उंसे देख कर हम खुश होते थे और गर्व से कहते थे कि प्रशांत ( छोटू ) तो अपना भाई है । किसी का होशंगाबाद का कोई काम अटकता तो हम कहते थे तुम प्रशांत से मिल लेना ।
हम अभी भी विश्वास नहीं कर पा रहे है कि तुम सचमुच चले गए हो … लेकिन जन्म और मृत्यु के इस कुदरती खेल के आगे हम सब बेबस और लाचार हैं .
तुम्हारी मधुर स्मृतियों को शत शत नमन