शशिकांत गुप्ते
समाचार पत्र हाथों में लेतें ही मुख्य समाचारों की सुर्खियां पढ़ने के पूर्व विशाल विज्ञापन नज़र आतें हैं।
विज्ञापनों को देखकर लगता है कि देश के विरोधी दल अनावशयक विरोध कर रहें हैं।
देश तकरीबन सभी प्रांतों के मुख्यमंत्रियों के चेहरों के साथ प्रांतों की उपलब्धियां पढ़ने को मिलती है।
उक्त उपलब्धियों पर सोचने समझमें पर यकायक सुचितापूर्ण राजनीति के लिए किए गए सँघर्ष की याद आती है।
ग्यारह वर्ष पूर्व पूरा देश ही सफेद टोपी में नजर आ रहा था। एक हजारे ने देश के लाखों लोगों के अंतर्मन में भ्रष्ट्राचार के विरोध में अलख जगाया था।
ऐसे लगता था कि तात्कालिक सरकार जब अपदस्थ होगी तब देश में सिर्फ और सिर्फ प्रामाणिक लोगों ही सत्ता सम्भालेंगें।
देश में भ्रष्ट्राचार जड़मूल से नष्ट हो जाएगा।
इस आंदोलन की एक उपलब्धि ये हुई कि आम आदमी की वकालत करने के लिए एनजीओ संचालित करने वालें कुछ लोगों ने हाथों में झाड़ू थाम ली।
NGO मतलब गैर सरकारी संगठन (Non Governmental Organization)
गैर सरकारी संगठन को संचालित करने वालों के लिए भ्रष्ट्राचार विरोधी आंदोलन बिल्ली के भाग से छींका टूटा वाली कहावत सिद्ध हुआ।
सन 2014 के सत्ता परिवर्तन के बाद देशवासी आश्वश्त हो गए थे कि उन्हें महंगाई से राहत मिलेगी? बेरोजगरों को रोजगार मिलेगा?
बगैर रिश्वत के सारे सरकारी कार्य सम्पन्न होंगें? देश में सुचितापूर्ण माहौल बनेगा?
उसी आंदोलन का नतीजा है कि, देश की राजधानी में दोनों ही सरकारें अपनी अलग पहचान रखने वाली सरकारें हैं।
एक ने भगवान का मंदिर निर्मित करने का वादा पूरा किया तो दूसरें ने मंदिर के निर्माण होने पर दिल्ली से अयोध्या तक लोगों को मुफ्त यात्रा करवाने का वादा कर दिया।
सच में अपना देश आस्थावान लोगों का देश है।
उपर्युक्त सारी उपलब्धियों को जानने के बाद सच में विरोधियों के द्वारा किए जा रहे विरोध की जितनी आलोचना की जाए उतनी कम है?
एक बहुत ही आश्चर्य जनक प्रश्न अंतर्मन में उपस्थित होता है?
भ्रष्ट्राचार विरोधी अलख जगाने वाला वह महान व्यक्तित्व कहाँ खो गया हैं?
इस प्रश्न का उत्तर एक विचारक ने यूँ दिया कि, उस व्यक्ति का कार्य पूरा हो गया है। उसने तात्कालिक भ्रष्ट व्यवस्था को अपदस्थ करने का अपना संकल्प पूरा कर दिया है? कुछ आलोचक उस व्यक्ति पर यह आरोप लगातें हैं कि, उस व्यक्ति का आंदोलन किसी संगठन के द्वारा प्रायोजित था?
आरोप लगाने वालों को उस संगठन की आलोचना नहीं स्तुति ही करना चाहिए।
यदि कोई संगठन भ्रष्ट्राचार विरोधी आंदोलन को प्रायोजित करता है तो यह क़ाबिलेतारीफ मुद्दा है। भ्रष्ट्राचार मुक्त भारत की जय हो।
इस सम्पूर्ण चर्चा पर सीतारमजी ने अपनी विशेष टिप्पणी इस प्रकार की।
विज्ञापनों का हश्र कहीं चाँद की उपमा जैसा ना हो जाए। पचास वर्ष पूर्व जब अपोलो अंतरिक्ष यान में सवार अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग ने जब चाँद की सतह पर कदम रखें और देखा चाँद की सतह पर तो खड्डे ही खड्डे हैं।
दूर के ढोल सुहावने वाली कहावत चरितार्थ हो गई।
शशिकांत गुप्ते इंदौर